"एक गाल पर थप्पड़, तो दूसरा गाल आगे करने का समय गया.. चाहे देश के गद्दार हों या सीमा पार के हमलावर".. क्योंकि अब युवाओं के आदर्श भगत सिंह हैं
भगत सिंह की जयंती पर पूरा देश बोला - "मेरा रंग दे बसंती चोला'..
आज गांधी भगत सिंह में कौन ज्यादा प्रसांगिक है?
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा.
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा..
ये ऊपर की दो पंक्तियां एक पूरे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती हैं...वो महान व्यक्तित्व था आजादी का सपना देखने वाले भगत सिंह का...जिन्होने ये सपना तब देखा था जब एक थप्पड खाने के बाद एक और थप्पड मांग कर खाने की प्रथा थी... इस दौर में लाठी, गोली, फांसी सब खुद तो ले सकते थे पर ये आप आजादी के लिये अपने दुश्मनो को नही दे सकते थे ...क्योकि ये राष्ट्र के लिए हिंसा है जो कि आहिंसा के पुजारी जी को पसंद नही आती थी..
उसी समय एक युवा जो इस तरह की बैचारगी से निकलना चाह रहा था, वो इस सब का जवाब उसी भाषा में देना चाहता था, जिस भाषा में उन्हे समझ आये, वो जानता था कि गंदगी को साफ करने लिये थोडा तो गंदा होना ही पडेगा, पर कुछ साफ सुथरे लोग सफाई तो चाहते थे. पर खुद के ऊपर एक भी दाग नहीं चाहते..क्योंकि उन्हे लगता था कि इतिहास तो साफ सुथरे लोगों का बनता है...
लेकिन उन्हे इस बात का आभास तक नही था कि ऐसे लोगों को बस दीवारो पर लिखकर याद किया जाता है जबकि भगत सिंह जैसे लोगों को सार्वजनिक जीवन में जिया जाता है, एक समय था जब हर कोई चाहता था भगत सिंह तो पैदा हो पर पडोसी के घर में, क्योंकि 23 वर्ष की उम्र में कोई परिवार अपने बेटे को नही खोना चाहता, जिसे कुछ सफाई पसंद अहिंसा वाले लोगो के आगे कुछ सम्मान न मिले..
पर आज के समय में तमाम घरों से भगत सिह को अपना आदर्श मानने वाले निकल रहे है जो देश की सुरक्षा देश के सम्मान के लिये खुद के बलिदान देने में पल भर भी नही सोचते...आज देश भगत सिंह की उस सोच को याद रखता है जो एक सर के बदले दस सर लाने की बात करे ,उसको नही जो एक थप्प़ड के बदले दूसरा थप्पड खाने के लिए गाल आगे कर दे...
समय की विडंबना ये है कि सफाई पंसद लोगों की बकरियों की रस्सियां भी संभालकर रखी जाती और देश के लिए हंसते हंसते फांसी चढने वाले की रस्सी को कोई याद तक नहीं करता क्योकि वो उन सफाई पसंद लोगो के बताये सफाई वाले मार्ग पर नही चले. 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में, जो कि अब जिन्ना के साथ कुछ सत्ता के हवसी लोगों की भूल के चलते टुकड़े में बंटे और इस्लामिक मुल्क बने पाकिस्तान में है, वही भारत का हिस्सा जिसको भारत में फिर से मिलाने की इच्छा रखने वाले आज वामपंथी तत्वों द्वारा भगवा आतंकी तक कह डाले जाते हैं. वही पाकिस्तान जिसको बाँट कर भी कुछ लोग चाचा बन गये और साथ ही भारत की आज़ादी के तथाकथित ठेकेदार भी.
वही शहीद भगत सिंह का उनका जन्म हुआ था. गुलाम भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा. छोटी उम्र से ही उसके लिए संघर्ष किया और फिर देश में स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया. वह बलिदान हो गए लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करता है. आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं के लिए किसी प्रतीक की तरह बने हुए
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