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24 नवम्बर: पुण्यतिथि केरल के धर्मरक्षक पूज्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी. 70 के दशक में जब पवित्र सबरीमाला मार्ग में लगा दिया गया था क्रॉस, तब स्वामी जी ने लड़ा था धर्मयुद्ध और प्राप्त की थी विजय

लेकिन देश के बाकी हिस्सों के संतो महंथो का नहीं मिला था साथ.

Rahul Pandey
  • Nov 24 2020 11:14AM
यदि आप सबरीमाला के नाम पर सम्पूर्ण हिन्दू समाज की पवित्र परम्पराओं के ऊपर हो रहे परोक्ष हमले को पहला वार समझ रहे हैं तो आपको पुनर्विचार के साथ इतिहास के गर्भ में जाने की जरूरत है .. दक्षिण भारत मे हिंदुत्व के उस पवित्र केंद्र व शक्तिस्थल के ऊपर इस से पहले भी कई बार वार हो चुके हैं लेकिन हर बार कोई न कोई हिन्दू योद्धा इन सभी साजिशों के खिलाफ सामने आया है और तमाम विदेशी साजिशों को असफल किया है .. 

भगवान अयप्पा के हिंदुओं के सम्मान से जुड़े संघर्ष के पवित्र कार्य व कठिन संघर्ष को देवलोक वासी व केरल में हिंदुओं के रक्षक कहे जाने वाले जगतगुरु स्वामी सत्यानन्द सरस्वती जी 70 के दशक में कर चुके हैं , जबकि तब हालात और भी ज्यादा प्रतिकूल थे ..

आज केरल के उन्ही परमपूज्य धर्मरक्षक स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी की पुण्यतिथि है ..ध्यान देने योग्य है कि केरल भारत का ऐसा तटवर्ती राज्य है, जहाँ विदेशी विचारधाराओं में होड़ है कि वो भारत की मूल संस्कृति कक कैसे जड़ से और कितनी जल्दी खत्म कर लेंगी .. 

इसी में कोई हिंदुओं का नरसंहार कर रहा, कोई धर्मान्तरण करवा रहा , कोई लव जिहाद जैसे कुकृत्य कर रहा तो कोई शक्तिपीठो की परम्पराओ को निशाना बना रहा ..आज स्वर्गवासी हुए स्वामी जी ने इन सभी से अकेले संघर्ष किया था.. वहाँ के हिन्दुओं में धर्म भावना असीम है इसके साथ अनेक साधु सन्त वहाँ हिन्दू समाज के स्वाभिमान को जगाने में सक्रिय हैं।

25 सितम्बर, 1933 को तिरुअनन्तपुरम् के अण्डुरकोणम् ग्राम में जन्मे स्वामी सत्यानन्द उनमें से ही एक थे। उनका नाम पहले शेखरन् पिल्लै था। शिक्षा पूर्ण कर वे माधव विलासम् हाई स्कूल में पढ़ाने लगे। 1965 में उनका सम्पर्क रामदास आश्रम से हुआ और फिर वे उसी के होकर रह गये। 

आगे चलकर उन्होंने संन्यास लिया और उनका नाम स्वामी सत्यानन्द सरस्वती हुआ। केरल में 'हिन्दू ऐक्य वेदी' नामक संगठन के अध्यक्ष के नाते स्वामी जी अपने प्रखर भाषणों से जन जागरण का कार्य सदा करते रहे। 1970 के बाद राज्य में विभिन्न हिन्दू संगठनों को जोड़ने में उनकी भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। 

वे 'पुण्यभूमि' नामक दैनिक पत्र के संस्थापक और सम्पादक भी थे। आयुर्वेद और सिद्धयोग में निष्णात स्वामी जी ने 'हर्बल कोला' नामक एक स्वास्थ्यवर्धक पेय बनाया था, जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। स्वामी जी श्री रामदास आश्रम चेंगोट्टूकोणम (तिरुअनन्तपुरम्) के पीठाधिपति तथा 'विश्व हिन्दू परिषद' द्वारा गठित मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य थे।

उन्होंने देश विदेश में अनेक रामदास आश्रमों की स्थापना की। 'यंग मैन्स हिन्दू ऐसोसियेशन' तथा 'मैथिली महिला मण्डलम्' के माध्यम से उन्होंने बड़ी संख्या में हिन्दू परिवारों को जोड़ा। केरल की राजधानी तिरुअनन्तपुरम् में प्रतिवर्ष लगने वाले रामनवमी मेले का प्रारम्भ उन्होंने ही किया।

स्वामी सत्यानन्द जी के मन में केरल के हिन्दू समाज की चिन्ता सदा बसती थी। एक बार ईसाई मिशनरियों ने केरल के प्रसिद्ध शबरीमला तीर्थ की पवित्रता भंग करने का षड्यन्त्र किया। उन्होंने अंधेरी रात में मन्दिर के मार्ग में नीलक्कल नामक स्थान पर सीमेण्ट का एक क्रॉस लगा दिया। 

उनकी योजना उस स्थान पर एक विशाल चर्च बनाने की थी, जिससे शबरीमला मन्दिर के दर्शनार्थ आने वाले लाखों तीर्थयात्रियों को फुसलाया जा सके। ऐसे षड्यन्त्र वे पहले भी अनेक स्थानों पर कर चुके थे। पर केरल के हिन्दू संगठन इस बार चुप नहीं रहे। 

उन्होंने एक सर्वदलीय समिति बनायी और इतना व्यापक आन्दोलन किया कि मिशनरियों को अपना प्रतीक वहाँ से हटाना पड़ा। हिन्दू समाज की उग्रता को देखकर शासन को भी पीछे हटना पड़ा। अन्यथा अब तक तो वे हर बार ईसाईयों का ही साथ देते थे। स्वामी सत्यानन्द जी की इस आन्दोलन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 

उनके प्रति सभी साधु संन्यासियों तथा हिन्दू संगठनों में इतना आदर था कि सब थोड़े प्रयास से ही एक मंच पर आ गये। यद्द्पि स्वामी जी को डराने, धमकाने के साथ लालच आदि तक देने के सभी संभव प्रयास उस समय किये गए लेकिन अधर्मी उन्हें किसी भी प्रकार से धर्ममार्ग से विचलित नहीं कर पाए थे..

अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण के लिए चले आन्दोलन में भी स्वामी जी बहुत सक्रिय रहे। इसीलिए जब-जब भी कारसेवा या अन्य कोई आह्नान हुआ, केरल से भारी संख्या में नवयुवक अयोध्या गये। हिन्दू समाज को 73 वर्ष तक अपनी अनथक सेवाएँ देने वाले स्वामी जी का 24 नवम्बर, 2006 को देहान्त हो गया। 

आज दक्षिण भारत के उस महान धर्मरक्षक की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारम्बार नमन व वंदन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि देता है साथ ही दक्षिण भारत मे धर्म की रक्षा हेतु उनके संघर्ष को जन जन तक पहुचाने के संकल्प के साथ पवित्र सबरीमाला के साथ दक्षिण भारत मे धर्मरक्षा के उनके अधूरे लक्ष्य को पूरा करने का संकल्प लेता है..

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