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Musical Instrument: भारत की शिल्प संस्कृति को विलुप्त होने से बचाने की कयावाद शुरु, अब विदेशों तक पहुंचाए जाएंगे वाद्यंत्र

अगर देखा जाए तो हमारे आपके बीच के कई सारे ऐसे वाद्ययंत्र है जो समय के साथ विलुप्त होते जा रहे हैं अथवा उनके बारे में नई पीढ़ी को बताने वाला कोई नहीं है.

Geeta
  • Feb 22 2022 12:09PM

हमारे भारत की सभी संस्कृति बेहद ही अनोखी है... लेकिन कहीं न कहीं हमारी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है...देश की युवा पीढ़ी वेस्टर्न कल्चर की ओर जा रही है.... युवा पीढ़ी का आकर्षण भारत की शिल्प संस्कृति की तरफ कहीं न कहीं कम हो रहा है... जिसे बचाने के लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं...इसी कड़ी में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) (ICCR) की ओर से आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के हिस्से के रूप में भारत की शिल्प संस्कृति को बचाने की नई कवायद शुरू की गयी है.

अगर देखा जाए तो हमारे आपके बीच के कई सारे ऐसे वाद्ययंत्र है जो समय के साथ विलुप्त होते जा रहे हैं अथवा उनके बारे में नई पीढ़ी को बताने वाला कोई नहीं है. इसी पर आईसीसीआर के अध्यक्ष्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्दे ने एक मीडिया संस्थान से बातचीत में बताया कि बनारस, महाराष्ट्र और कुछ जगहों पर ऐसे कारीगरों का चयन किया गया है जो तानपुरा, दिलबहार और इस तरह के तमाम वाद्यंत्रों को कैसे प्रसारित किया जाए इसके लिए नई योजना शुरू कर रही है.

आपकों यह तो मालूम ही होगा कि विदेश मंत्रालय 21-27 फरवरी 2022 तक आजादी का अमृत महोत्सव सप्ताह के रूप में चलने वाले समारोहों का आयोजन कर रहा है. उन उत्सवों के हिस्से के रूप में आईसीसीआर के इतिहास में पहली बार, प्रसिद्ध भारतीय शिल्पकार का शिल्प प्रदर्शन और प्रदर्शनी विशेष रूप से राजनयिक समुदाय के लिए आयोजित की गई है.

आईसीसीआर के अध्यक्ष्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्दे ने बताया कि इस तरह की प्रदर्शनी के पीछे का मकसद यह है कि देसी हिन्दुस्तानी वाद्ययंत्रों को कैसे विदेशों तक लोगों को पहुंचाया जाए. यही वजह है कि इस बार की प्रदर्शनी में राजनयिकों को अधिक तरजीह दी गयी है.

डॉ विनय सहस्त्रबुद्दे ने कहा कि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि विदेशी मेहमान ऐसे वाद्ययंत्रों को खरीद के जब लेकर अपने देश जाते हैं और बाद में उनमें किसी भी तरह की कोई खराबी आती है तो उसे ठीक करना काफी मुश्किल हो जाता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए ऐसे कारीगरों की टोली तैयार की जा रही है जिनके माध्यम से विदेशों में इन वाद्ययंत्रों के लिए वर्कशॉप के माध्यम से लोगों को जानकारी दी जाए और ठीक भी किया जाए.

डॉ विनय सहस्त्रबुद्दे ने बताया कि शिल्पकार अपने सर्वोत्तम कार्यों का प्रदर्शन कर रहे हैं जो उनके निरंतर नवाचार और प्रयासों का परिणाम है गैर-प्रदूषणकारी तरीकों से उत्पादित प्राकृतिक और जैविक सामग्री हैं. इस तरह के कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारत की शिल्प प्रथाएं भारत की सांस्कृतिक विरासत, स्थानीय आजीविका को बनाए रखना यह सब शामिल है.

उन्होंने बताया कि.... हाल ही में जिला उद्योग विभाग द्वारा जिले के हस्त शिल्पकारों की आयोजित कार्यशाला में कलेक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने उपस्थित सभी हस्तशिल्पियों से उनके उत्पाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक-एक से उनके द्वारा तैयार किए जाने वाले उत्पाद, कच्चा माल एवं विक्रय की प्रक्रिया के संबंध में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हुए कहा कि बुनकरों को अपने आर्टीजन कार्ड बनवाने होंगे तथा यदि पूर्व में जारी आर्टीजन कार्डों में त्रुटि रह गई है तो उनका सुधार विभाग के माध्यम से शीघ्र ही करवाया जाएगा.

नागफणी है लुप्त होने के कगार पर

उत्तराखंड (Uttarakhand) लोक गीतोंलोक नृत्यों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों (Folk songs, folk dances and traditional instruments) का खजाना है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों (mountainous areas) के वाद्य यंत्र हों या उनसे निकलने वाला संगीत (music), दोनों बेहद विशिष्ट हैं. उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना में पर्वतीय क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति (specific culture) एक महत्वपूर्ण बिंदु थापरन्तु यह दुर्भाग्य है कि उत्तराखंड बनने के बाद यह बिंदु होते होते गायब होने लगा है.

बता दें कि उत्तराखंड के अधिकांश लोक वाद्य आज या तो लुप्त होने को हैं या लुप्त हो चुके हैं. नागफणी (Hawthorn) उत्तराखंड का एक ऐसा लोक वाद्य यंत्र है जो अब लुप्त हो चुका है. पहाड़ की नई पीढ़ी ने तो कभी इसका नाम भी नहीं सुना होगा. शिव (Shiv) को समर्पित यह कुमाऊं का एक महत्वपूर्ण लोक वाद्य यंत्र है, जिसका प्रयोग पहले धार्मिक समारोह (religious ceremony) के अतिरिक्त सामाजिक समारोह में भी खूब किया जाता था. लगभग डेढ़ मीटर लम्बे इस लोक वाद्य में चार मोड़ होते हैं, कुछ नागफणी में यह चारों मोड़ पतली तार से बंधे होते थे. नागफणी का आगे का हिस्सा या सांप के मुंह की तरह का बना होता है, इसी कारण इसे नागफणी कहा जाता है.

 

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