आज यानी 20 अक्टूबर को नवरात्र का छठा दिन है. नवरात्रि के सभी नौ दिन माता के नौ स्वरूपों को समर्पित होते हैं. ऐसे में आज यानी नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के षष्ठ स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. मां कात्यायनी बृहस्पति ग्रहको नियंत्रित करती हैं. मां अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती हैं. कात्यायनी माता की तेजोमयी छवि भक्तों के हृदयों को सुख और शांति का अनुभव करवाती हैं.
मां कात्ययनी की चार भुजाएं हैं, एक हाथ में माता के खड्ग है तो दूसरे में कमल पुष्प. अन्य दो हाथों से माता वर मुद्रा और अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं. माता का यह स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाला है.
पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि कात्यायनी ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने उन्हें उनकी पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया. देवी दुर्गा का जन्म महर्षि कात्यायन के आश्रम में ही हुआ. मां का पालन पोषण ऋषि कात्यायन ने ही किया. उस समय त्रिदेवों के तेज से देवी दुर्गा की उत्पत्ति हुई. कुछ समय बाद जब महिषासुर राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब मां कात्यायनी ने ही उसका वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाई थी.
मां कात्यायनी की पूजा विधि
मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि को होती है। इस दिन प्रातः काल में स्नान आदि से निवृत्त होकर मां की प्रतिमा की स्थापना करें। सबसे पहले मां का गंगा जल से आचमन करें। इसके बाद मां को रोली,अक्षत से अर्पित कर धूप, दीप से पूजन करें।
मां कात्यायानी को गुड़हल या लाल रंग का फूल चढ़ाना चाहिए तथा मां को चुनरी और श्रृगांर का सामान अर्पित करें। इसके बाद दुर्गा सप्तशती, कवच और दुर्गा चलीसा का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही मां कात्यायनी के मंत्रों का जाप कर, पूजन के अंत में मां की आरती की जाती है। मां कात्यायनी को पूजन में शहद को भोग जरूर लगाएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं।
मां कात्यायनी के मंत्र
मां कात्यायनी के मंत्रो का जाप लाल चंदन की माला या फिर रुद्राक्ष की माला से करें। जाप करने के बाद माला को गले में धारण कर लें। शीघ्र ही आपकी इच्छा पूरी होगी।
1. ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः।
2. या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
3. कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
4. चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।