उत्तराखंड
में मॉनसून माह का खत्म होते ही बाबा केदार के दरबार यानि केदारनाथ धाम में भक्तों
की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर दिन करीब 18 हजार भक्त केदारनाथ पहुंचकर बाबा केदर के दर्शन कर रहे हैं। अभी तक 14 लाख 50 हजार से ज्यादा भक्त बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं। अभी एक महीने से भी ज्यादा की यात्रा बची हुई है। ऐसे
उम्मीद की जा रही है कि पिछले साल के रिकॉर्ड टूटेंगे और 16 लाख से ज्यादा भक्त
केदारनाथ धाम पहुंचेंगे।
घंटों इंतजार के बाद दर्शन करने की बारी
आपको
बता दें कि भैयादूज यानि 15 नवंबर को केदारनाथ के कपाट बंद होंगे। ऐसे में भक्त
पैदल, घोड़े-खच्चर, डंडी-कंडी और हवाई सेवा से केदारनाथ की
यात्रा कर रहे हैं। आठ हेली सेवाएं भी केदारनाथ यात्रा के लिये संचालित हो रही हैं।
देश-विदेश
से भक्तों के पहुंचने का सिलसिला लगातार जारी है। बाबा केदार के मंदिर परिसर में
पैर रखने तक की जगह नहीं है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए मंदिर के गर्भगृह में दर्शन
को फिलहाल रोक दिया गया है। अक्सर देखा जाता है कि मई और जून माह में 15 हजार श्रद्धालु
केदारनाथ धाम पहुंचते हैं।
बद्री-केदार
मंदिर समिति ने भक्तों को मंदिर के सभा मंडप से दर्शन करने की अनुमति दी गई है।
मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने में हो रही देरी को देखते हुए व्यवस्था बदली गई है।
बद्री-केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने बताया कि केदारनाथ धाम में
भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए सभा मंडप से दर्शन कराने का
निर्णय लिया गया है।
क्यों प्रसिद्ध है उत्तराखंड का यह मंदिर?
गिरिराज
हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक
तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा
खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि
पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में
से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है।
इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में
जबरदस्त पानी रहता है। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों
को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे
पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का
माना जाता है।