उत्तर प्रदेश में स्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लमान छात्रों ने 6 दिसंबर को बाबरी ढांचे को गिराने की बरसी को काला दिवस के रूप में मनाया था. इसी के साथ कॉलेज के परिसर में आपत्तिजनक नारे भी लगाए गए थे. बता दें कि छात्रों ने जब अरजे खुदा के काब से, सब बुत उतरवाए जाएँगे’ की तख्तियाँ लेकर ‘मस्जिद वहीं थी, वहीं है और आगे भी वहीं रहेगी के नारे लगाए थे.
कैंटीन में हुए एकजुट, मनाया काला दिवस
दरअसल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र नेता मोहम्मद फरीद के नेतृत्व में बीते 6 दिसंबर को बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्र कॉलेज की कैंटीन में एकजुट हुए और वहां से डक प्वाइंट पहुंचे थे. बता दें कि इस दौरान छात्रों ने कहा कि बाबरी मस्जिद अभी जिंदा है. मस्जिद वहीं थी, वहीं है और इंशाअल्लाह आगे भी वहीं रहेगी.
बाबरी मस्जिद कभी खत्म नहीं हो सकती- छात्र
वहीं प्रदर्शन क दौरान छात्रों के हाथों में पोस्टर भी थे जिसमें लिखा था कि जब अरजे खुदा के काब से, सब बुत उतरवाए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद कभी खत्म नहीं हो सकती है और वह हमेशा वहीं रहेगी. वहीं उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ियों को बता कर जाएंगे कि बाबरी मस्जिद वहीं है.
कश्मीर के आतंकियों जैसे नारे
वहीं इसपर छात्रों ने तेरा-मेरा रिश्ता क्या, ला इलाहा इलल्लाह के नारे लगाए थे. बता दें कि यह वहीं नारे है जो कश्मीर में किसी समय आतंकी लगाया करते थे. वहीं जब अरजे खुदा के काबे से, सब बुत उतरवाए जाएंगे का नारा एक विवादित नारा माना जाता है. इसका मतलब यह है कि एक दिन अल्लाह की इस ज़मीन से सभी बुत यानी मूर्तियाँ उठवा दी जाएँगी और सिर्फ अल्लाह का ही नाम रहेगा.
इस्लाम में मूर्ति पूजन को माना जाता है अपराध
बता दें कि हिंदू धर्म में मूर्तियों की पूजन का विशेष स्थान है लेकिन इस्लाम में मूर्ति पूजन को अपराध माना जाता है. इसलिए इस नारे को हिंदूओं के विरोध में प्रदर्शित किया जाता है. वहीं इस नारे को शायर फैज अहमद ने पाकिस्तान के कट्टरपंथी तानाशाह जिया उल हक के जमाने में लिखा था.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी काला दिवस मनाने से रोक
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को काला दिवस मनाने पर रोक लगा रखी है. इसके बाद भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों द्वारा इसे काला दिवस के रूप में मनाया गया है. इस मामले पर भाजपा के जिला उपाध्यक्ष गौरव शर्मा ने जांच की मांग की है.
2019 में आईआईटी कानपुर में हुई थी ऐसी ही वारदात
वहीं दिसंबर 2019 में आईआईटी कानपुर में भी ऐसा ही एक विवाद हुआ था. उस समय भी इस नारे को लगाया गया था. उस समय IIT के निदेशक ने शिकायत में कहा था कि यह नारे सभी मूर्तियों को नष्ट करने का आह्वान करती हैं क्योंकि मूर्ति पूजन इस्लाम में वर्जित है. वहीं यह भी कहा गया कि सिर्फ अल्लाह की पूजा होनी चाहिए.
लोगों ने उठाए थे कई सवाल
वहीं लिबरल गैंग ने इस पर लीपापोती करने की कोशिश की थी और फैज को नास्तिक और वामपंथी बताकर इन लोगों का बचाव किया था. इसको लेकर लोगों ने कई सवाल उठाए थे जैसे अगर फैज नास्तिक थे तो मजहब के आधार पर बने पाकिस्तान में वे क्यों चले गए थे.