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DUTA ने डीयू अधिनियम में संशोधन के लिए राष्ट्रपति और केंद्रीय शिक्षा मंत्री को लिखा पत्र

DUTA ने शनिवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निंशक को पत्र लिखकर डीयू अधिनियम-1922 में संशोधन की मांग की है, ताकि यहां नए कॉलेज और विश्वविद्यालय खोले जा सकें।

Abhishek Lohia
  • Oct 17 2020 5:51PM

दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए) ने शनिवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और  केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निंशक को पत्र लिखकर डीयू अधिनियम-1922 में संशोधन की मांग की है, ताकि यहां नए कॉलेज और विश्वविद्यालय खोले जा सकें।

डीटीए ने शनिवार को लिखे पत्र में कहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में उच्च कट-ऑफ के कारण दिल्ली के अधिकांश छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाता है। ऐसे में दिल्ली सरकार नए कॉलेज व विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहती है लेकिन वह तभी संभव है जब दिल्ली विश्वविद्यालय अधिनियम-1922 में संशोधन हो।

डीटीए के प्रभारी प्रो. हंसराज सुमन ने पत्र में लिखा है कि संसद में एक प्रस्ताव पारित कर डीयू अधिनियम--1922 में संशोधन किया जाना चाहिए क्योंकि यह अधिनियम अंग्रेजों द्वारा बनाया गया कानून पिछले 98 वर्षो से चला आ रहा है। हमें अपने संविधान व भारतीय परिवेश के अनुसार इसमें संशोधन कर अधिनियम बनाने चाहिए। पत्र में प्रोफेसर सुमन ने बताया है कि राजधानी दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय) की स्थापना आजादी से पूर्व सन् 1922 में हुई थी। उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था इसलिए उन्होंने ही दिल्ली विश्वविद्यालय अधिनियम-- 1922 में बनाया था और तभी से यह अधिनियम लागू किया गया है। इस अधिनियम में स्पष्ट लिखा है अगर कोई नया कॉलेज दिल्ली में खुलेगा तो वह सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय से ही एफिलिएशन ले सकता है।

उन्होंने कहा कि बीते 30 वर्षों से एक भी नया कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से नहीं खोला गया है जबकि दिल्ली में दिनों दिन बढ़ती छात्रों के प्रवेश की समस्या को देखते हुए दिल्ली सरकार यहां नए कॉलेज खोलना चाहती है।

सुमन ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में हाई कट-ऑफ के चलते दिल्ली के छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिल पाने के कारण उन्हें दूसरे राज्यों में या प्राइवेट शिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों में एडमिशन लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है। उनका कहना है कि जहां छात्रों के माता -पिता अपने बच्चों के एडमिशन को लेकर तनाव में है वहीं मोटी फीस और दूसरे राज्यों में किराये के मकानों में रहने को मजबूर छात्रों में तनाव देखने को मिला है।

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