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क्यो छिटक रहे पत्ते बाबूजी के राजनीतिक बरगद से, क्या बाबूजी की विरासत को नहीं संजो पा रही मृगांका सिंह

मृगांका सिंह को जीत के लिए सब को साथ लेकर चलना होगा। नाराज़ लोगों को मनाना होगा। बाबूजी की विरासत को संभालना तभी संभव होगा।

पंकज चौहान, सुदर्शन न्यूज़,संवाददाता शामली
  • Jan 29 2022 8:15AM
कैराना में स्वर्गीय बाबू हुकुम सिंह ने राजनीति का ऐसा बरगद का पेड़ लगाया था जिसे वर्षों तक कोई नहीं उखाड़ सकता था। जब से मृगांका सिंह ने बाबू जी की विरासत को संभाला है तब से कहीं ना कहीं उस बरगद के पत्ते झड़ते दिखाई दे रहे हैं बताया जाता है कि एक वक्त ऐसा था कि हिंदू गुर्जरों के गांव में एक तरफा बाबू जी की वोट डाली जाती थी विरोध करने के लिए एजेंट तक नहीं हुआ करते थे लेकिन मृगांका सिंह के आने के बाद कहीं ना कहीं यह परम्परा खत्म होती दिखाई दे रही है। हालांकि भाजपा बाबू जी की विरासत को बचाने के लिए बार बार बाबू जी की बेटी मृगांका सिंह पर ही दांव लगा रही है इस बार भी कैराना विधानसभा से भाजपा ने मृगांका सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है।


लेकिन बाबू जी के द्वारा बनाए गए राजनीतिक बरगद के पत्ते धीरे-धीरे झड़ते जा रहे हैं इनमें बाबू जी के खास कहे जाने वाले कुछ लोग धीरे-धीरे मृगांका सिंह को छोड़ दूसरे दलों में जा रहे हैं। जिससे बाबूजी की विरासत को आगे बढ़ाना कठिन हो रहा है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो बाबूजी के स्वर्गवास के बाद इस राजनीतिक बरगद के पत्तों की तरह अलग हो चुके हैं हाल ही में बाबूजी का गढ़ कहे जाने वाले ऊंचा गांव के दो दिग्गज गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में जा चुके हैं



आपको बता दें कि हाल ही में ऊंचा गांव के मोनू प्रधान व अमिता प्रधान गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में जा चुके हैं। इससे पहले वो स्वर्गीय बाबू जी के साथ थे। पर जब से मृगांका सिंह ने बाबू जी की विरासत को संभाला है तब से जाने क्यों ये लोग एक-एक कर बाबू जी की विरासत से अलग होते दिखाई दे रहे हैं हालांकि बाबूजी के राजनीतिक बरगद के पत्तों के अलग होने की लिस्ट बहुत लंबी है। ऊंचा गांव की अगर बात करें तो ऊंचा गांव में प्रधान पद के लगभग 5 मजबूत उम्मीदवार है पांच मे से सिर्फ दो मृगांका सिंह के साथ खुल कर दिखाई देते हैं जिस मे एक पूर्व प्रधान है तो दूसरा वो जिसे मृगांका सिंह ने जिला पंचायत का टिकट दिलाया था। ऊंचा गांव की राजनीति के उभरते युवा नेता है मोनू प्रधान जो अब सपा प्रत्याशी के साथ खडे है तो ऐसे मे मृगांका सिंह की जीत आसान नहीं होने वाली।



जो लोग बाबूजी द्वारा बनाए गए राजनीतिक बरगद के पत्ते हुआ करते थे वह अब धीरे-धीरे बरगद से दूर हो चुके हैं कहीं ना कहीं कोई ऐसी कमी रह गई है जो इतने पुराने राजनीतिक बरगद से लोग दूर होते नजर आ रहे हैं इन लोगों का जाना कहीं ना कहीं मृगांका सिंह के लिए हार का कारण भी बन सकता है।


नाराज़ होकर जाने वाली लोगों को क्यों नहीं जा रहा मनाया।


कहीं ना कहीं यह सवाल भी सामने आ रहा है कि जो लोग बाबूजी के साथ जुड़े हुए थे वह लोग धीरे-धीरे मृगांका सिंह को छोड़कर दूसरे लोगों के साथ जा रहे हैं और कहीं ना कहीं क्षेत्र में इस बात की भी चर्चा है कि जो लोग मृगांका सिंह को छोड़कर जा रहे हैं उन्हें मनाया क्यों नहीं जा रहा।ऐसी क्या बात है कि जो इतने दिन से साथ थे वह आज दूर हो गए और उन्हें मनाने में मृगांका सिंह व उनके सहयोगी क्यों सफल नहीं हो पा रहे।


क्या गांव की राजनीति का शिकार हो रही है बाबूजी की विरासत।


स्वर्गीय हुकुम सिंह जब इस दुनिया में मौजूद थे तब तक गांव में होने वाली राजनीति का विधानसभा व लोकसभा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था लेकिन बाबूजी के स्वर्गवास के बाद कहीं ना कहीं गांव की राजनीति बाहर निकल कर आ रही है। बाबूजी के वक्त में सभी प्रधान पद के दावेदार एकजुट होकर बाबूजी का साथ दिया करते थे लेकिन उनके जाने के बाद जाने कौन सी कमी के कारण वह लोग अब विरोध करने लगे हैं।कहीं ऐसा तो नहीं है कि मृगांका सिंह प्रधान पद के दावेदारों में से किसी एक दावेदार पर विश्वास दिखाते हुए दूसरे लोगों को दरकिनार कर रही है। यही सबसे बड़ा कारण हो सकता है कि गांव की राजनीति लोकसभा और विधानसभा पर असर डाल रही है।कहीं ना कहीं बाबूजी अपनी विरासत और अपने कार्यों से मृगांका सिंह के लिए एक सुरक्षित जगह बना कर गया था लेकिन बाबूजी के जाने के बाद कहीं ना कहीं वह सुरक्षित सीट और सुरक्षित जगह खतरे में दिखाई दे रही है। इससे पहले इन्हीं वजह से मृगांका सिंह दो बार चुनाव भी हार चुकी है। उसके बावजूद भी मृगांका सिंह व उनके करीबी रूठ कर जाने वाले लोगों को वापस लाने में असफल क्यों दिखाई दे रहे हैं। जो लोग बाबूजी के साथ थे वह दोबारा मृगांका सिंह के साथ आने से क्यों परहेज़ कर रहे है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बाबूजी के जाने के बाद बाग में कार्यकर्ताओं को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा जो बाबूजी के समय पर मिलता था।
सवाल बहुत है लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है।

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