भारत के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को कोलकाता में हुआ था। विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वैसे तो उनका पूरा जीवन ही युवाओं के लिए प्रेरणा है। एक 25 साल का नौजवान सांसारिक मोह माया छोड़ आध्यात्म और हिंदुत्व के प्रचार प्रसार में जुट गया। संन्यासी बन ईश्वर की खोज में निकले विवेकानंद के जीवन में एक दौर ऐसा आया, जब उन्होंने पूरे विश्व को हिंदुत्व और आध्यात्म का ज्ञान दिया। 11 सितंबर 1893 में अमेरिका में धर्म संसद का आयोजन हुआ था। भारत की ओर से स्वामी स्वामी विवेकानंद शिकागो में हो रहे धर्म सम्मेलन में शामिल हुए।
यहां उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में 'अमेरिका के भाइयों और बहनों' के साथ की। उनके भाषण पर आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो पूरे दो मिनट तक तालियों से गूंजता रहा। भारत के इतिहास में यह दिन गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गया।
मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।
उन्होंने कहा कि यह बताते हुए मुझे गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर में तब्दील कर दिया था। इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत प्रिय बहनो और भाइयो से की थी। इसके बाद उन्होंने कहा, 'आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आप सभी को दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से शुक्रिया करता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं।'
उन्होंने कहा, 'मेरा धन्यवाद उन लोगों को भी है जिन्होंने इस मंच का उपयोग करते हुए कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार भारत से फैला है।' स्वामी विवेकानंद ने आगे बताया था कि उन्हें गर्व है कि वे एक ऐसे धर्म से हैं, जिसने दुनियाभर के लोगों को सहनशीलता और स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि सभी धर्मों के लोगों को शरण दी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं जिस धर्म से हूं, उसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी। इसके बाद अभी भी उन्हें पाल रहा है। इसके बाद विवेकानंद ने कुछ श्लोक की पंक्तियां भी सुनाई थीं।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।। अर्थात - जैसे नदियां अलग अलग स्रोतों से निकलती हैं और आखिर में समुद्र में जाकर मिलती हैं। वैसे ही मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग रास्ते चुनता है।