विजयादशमी पर नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शस्त्र पूजा के बाद अपने भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं से संगठित होने की अपील की। उन्होंने कहा कि वह हिंदू ही है जो आतंक, कट्टरता, द्वेष और स्वार्थ के समय में दुनिया को बचा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति ही सबको अपनाने की है। हमको किसी को अपनाते समय डर नहीं लगना चाहिए लेकिन हम कमजोर हैं, इसलिए डर लगता है। हमको ताकतवर होना होगा। जो हाथ उठाए, उसका हाथ न रहे, इतना सामर्थ्य रहना चाहिए लेकिन सामर्थ्य का उपयोग कमजोरों की रक्षा के लिए होना चाहिए।
आपको बता दें संघ प्रमुख का कहना था कि संघ प्रमुख ने कहा जिस शत्रुता और अलगाव के कारण विभाजन हुआ उसकी पुनरावृत्ति नहीं करनी है। पुनरावृत्ति टालने के लिए, खोई हुई हमारे अखंडता और एकात्मता को वापस लाने के लिए उस इतिहास को सबको जानना चाहिए। खासकर नई पीढ़ी को जानना चाहिए. खोया हुआ वापस आ सके, खोए हुए बिछड़े हुए को वापस गले लगा सकें. उन्होंने कहा अपने मत, पंथ, जाति, भाषा, प्रान्त आदि छोटी पहचानों के संकुचित अहंकार को हमें भूलना होगा।
आगे संघ प्रमुख ने कहा कि आज हिंदुओं के मंदिरों की जमीनों को हड़पा जा रहा है। इसलिए यह जरूरी है कि हिंदू मंदिरों का संचालन हिंदू भक्तों के ही हाथों में रहे तथा मंदिरों की सम्पत्ति का उपयोग हिंदू समाज की सेवा में ही हो। इसके लिए हमें सब प्रकार के भय से मुक्त होना होगा। दुर्बलता ही कायरता को जन्म देती है। बल, शील, ज्ञान तथा संगठित समाज को ही दुनिया सुनती है। सत्य तथा शान्ति भी शक्ति के ही आधार पर चलती है। 'ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप...' ऐसे हिन्दू समाज को खड़ा करना पड़ेगा। जागरुक, संगठित, बलसंपन्न व सक्रिय समाज ही सब समस्याओं का समाधान है।
उन्होंने कहा कि यह साल हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है. 15अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए. स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वो प्रारंभ बिंदु था। हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली है. संघ प्रमुख ने कहा कि स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो इसकी भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएं मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खडे किये हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि ‘स्वाधीनता’ से ‘स्वतंत्रता’ तक का हमारा सफर अभी पूरा नहीं हुआ है. दुनिया में ऐसे तत्व हैं जिनके लिए भारत की प्रगति और एक सम्मानित स्थान पर उसका उदय उनके निहित स्वार्थों के लिए हानिकारक है। उन्होंने कहा कि विश्व को खोया हुआ संतुलन और परस्पर मैत्री की भावना देने वाला धर्म का प्रभाव ही भारत को प्रभावी करता है। यह ना हो पाए इसीलिए भारत की जनता, इतिहास, संस्कृति इन सबके विरुद्ध असत्य कुत्सित प्रचार करते हुए, विश्व को और भारत के जनों को भी भ्रमित करने का काम चल रहा है।
मोहन भागवत ने कहा जनसंख्या नीति पर एक बार फिर से विचार किया जाना चाहिए। 50 साल आगे तक का विचार कर नीति बनानी चाहिए और उस नीति को सभी पर समान रूप से लागू करना चाहिए. जनसंख्या का असंतुलन देश और दुनिया में एक समस्या बन रही है।