एकतरफ इस्लामिक जिहादी देश के विभिन्न हिस्सों में धर्मांतरण जिहाद की फैक्ट्री चलाकर हिंदुओं को मुसलमान बनाने की कोशिशों में जुटे हैं, जिसका खुलासा जून माह में UP ATS ने किया था तो वहीं दूसरी तरफ ईसाई मिशनरियां भी धर्मांतरण का घिनौना खेल रही हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शासित बिहार ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे धर्मांतरण का अड्डा बनता जा रहा है. पिछले दिनों ही सुदर्शन ने खुलासा किया था कि किस तरह गौतम बुद्ध की भूमि गया तथा सारण जिले में ईसाई मिशनरियां हिंदुओं को धर्मांतरित करने का अभियान चला रही हैं.
लेकिन ये खबर बिहार के बांका जिले की है जहां 10000 लोगों को ईसाई बना दिया गया है. खबर के मुताबिक, बांका जिले के चार प्रखंडों में पिछले दो-तीन साल के दौरान 10 हजार से अधिक हिंदू/संताली ईसाई मत को अपना चुके हैं. धर्मांतरण के लिए उनके बीच ईसाईयत के प्रचार के लिए हर रविवार चर्च के प्रतिनिधि के माध्यम से बैठकें हो रही हैं. बस्ती में धर्म बदलने वाले लोगों की हर रविवार को जीसस की प्रार्थना सभा भी आयोजित हो रही है.
पता चला है कि बांका के चांदन, कटोरिया और बौंसी में चर्च, धर्मांतरण के कार्य में संलिप्त हैं. चर्च, धर्मांतरण के लिए ऐसी बस्तियों का चयन कर रहे हैं जहाँ संसाधनों की कमी है. इन जगहों पर ईसाई मत के प्रचार के लिए हर रविवार को चर्च के प्रतिनिधि बैठक का आयोजन करते हैं. साथ ही धर्म बदलने वालों के लिए हर रविवार को जीसस की एक प्रार्थना सभा का आयोजन भी होता है. जयपुर, भैरोगंज, बाबूमहल, बेलहरिया, आमगाछी, बसमत्ता, चांदन सहित कई अन्य इलाकों के चर्च वर्षों से ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार और धर्मांतरण का केंद्र बने हुए हैं.
वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के कारण जब देश में लॉकडाउन लगाया गया तो ईसाई मिशनरियों ने इस आपदा को अवसर के रूप में देखा तथा धर्मांतरण के घिनौने खेल को और अधिक तेज कर दिया. लॉकडाउन में जब लोगों की परेशानियां बढ़ीं तो यहां चापाकल अर्थात पानी पीने के नल लगाए जाने लगे. चर्च द्वारा इन्हें जीसस वेल का नाम दिया गया. लोगों को बताया गया कि इस चापाकल में जीसस प्रवेश कर गए हैं. इसका पानी कभी नहीं सूखेगा, यह सोता(पानी का प्राकृतिक स्रोत) बन जाएगा.
मिशनरियों द्वारा लोगों को बताया जा रहा है कि जीसस ही असली भगवान हैं. इनके झांसे में आकर जिस परिवार के सभी लोग ईसाई मत को स्वीकार कर लेते हैं, उसे विशेष जीसस वेल दिया जाता है. ईसाई धर्म स्वीकार करने के लिए उस परिवार के बच्चों को पढ़ाई के लिए चर्च में बुलाया जाता है। उन्हें पुस्तकें व अन्य पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराई जाती हैं। इन परिवारों की लड़कियों की शादी में भी आर्थिक सहायता दी जाती है. मिशनरियों की कोशिश यही है कि किसी भी तरह ज्यादा से ज्यादा लोगों को ईसाईयत में धर्मांतरित किया जाए.