गुजरात सरकार ने हाल ही में लव जिहाद व धर्मांतरण रोकने के लिए क़ानून बनाया था, उसे लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है. गुजरात हाईकोर्ट ने ये नोटिस उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया है, जो शादी के माध्यम से जबरन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने के मामले में सजा देता है. मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.
गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या अंतर धार्मिक विवाह करने वाले को पहले जेल जाना पड़ेगा तथा अदालत को इस बात के लिए संतुष्ट करना पड़ेगा कि शादी और धर्म परिवर्तन जबरदस्ती नहीं किया गया है. गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ व न्यायाधीश बीरेन वैष्णव की खंडपीठ के समक्ष दाखिल याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार की ओर से लाया गया गुजरात धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2021 संविधान विरुद्ध है, इसमें नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है. देश का कोई भी वयस्क युवक-युवती अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन गुजरात सरकार के धर्म स्वतंत्रता कानून के अस्तित्व में आने के बाद अंतर धार्मिक विवाह करने वाले युवक को पहले जेल जाना पड़ेगा.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर जोशी ने मामले की वर्चुअल सुनवाई के दौरान कहा कि अगर मैं कहता हूं कि शादी के बाद बेहतर जीवन का आनंद उठाएंगे तो क्या यह प्रलोभन है, जैसा कि कानून में कहा गया है और जिसे अपराध के समान बताया गया है? कानून कहता है कि किसी भी शख्स का जबरन, प्रलोभन, धोखे के जरिये या शादी कर धर्मांतरण नहीं कराया जाएगा, इसलिए अगर विभिन्न धर्मों के दो लोग शादी करते हैं तो यह अपराध है. यह कानून परिवार के दूरस्थ सदस्यों को भी आपराधिक शिकायत दर्ज कराने की अनुमति देता है.
इस पर जस्टिस वैष्णव ने सरकारी वकील मनीषा लवकुमार से कहा कि अगर कोई शख्स किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करता है, तो आप पहले उसे जेल भेजेंगे और फिर जांचेंगे कि क्या यह शादी जबरन की गई या नहीं? इस पर सरकार के वकील ने जवाब पेश करने के लिए पर्याप्त समय की मांग की. इसके बाद अदालत ने आगामी 17 अगस्त को इस मामले की सुनवाई रखी है तथा सरकार को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है.