हम सभी जानते हैं कि भारतमाता के मणिमुकुट कहे जाने वाले कश्मीर में धारा 370 लगाये जाने का महानायक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कड़ा विरोध किया तथा अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इसके बाद भी जम्मू कश्मीर में धारा 370 बरकरार रही, जिसे 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने हटाया तथा श्यामाप्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि देने के साथ कश्मीर को पूरी तरह से भारत का हिस्सा बना दिया. श्यामा प्रसाद जी को याद करने वालों के लिए आज का दिन विशेष है क्योंकि उन्होंने आज के ही दिन इस धारा की खुली खिलाफत की थी जिसको नेहरु ने गंभीरता से नहीं लिया और उस समय धारा 370 हटाने के बजाय सीधे सीधे श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को निशाने पर ले लिया था और उनका निशाना उनके बलिदान के बाद ही जा कर खत्म हुआ था.
इनके नाम को तो दबाया ही गया इनके कामों को भी दबाया गया . ये दूरदृष्टा थे , इन्हे पता था की जिस नीति पर उस समय की तुष्टिकरण की सरकार चल रही थी उस नीति पर आने वाले समय में उसका अंजाम क्या होगा . आज बार बार पाकिस्तान की घुसपैठ और कश्मीर के लोगों का ही सेना के खिलाफ रक्तरंजित संघर्ष निश्चित तौर पर टाला जा सकता था अगर आज ही के दिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी की उठी आवाज को जवाहर लाल नेहरू ने गंभीरता से लिया होता तो .. लेकिन उन्होंने बस बातों को मज़ाकिया अंदाज़ में हंस कर टाल दिया और वही टालना बन गया था देश के कई कश्मीरी हिन्दुओ और जांबाज़ सैनिको का काल.
ज्ञात हो की अगर इतिहास के पन्नो में झाँका जाय तो आज ही के दिन डा. मुखर्जी ने 7 अगस्त 1952 को लोकसभा में एक जोरदार भाषण दिया और राष्ट्रीय एकता से संबंधित कई ऐसे प्रश्रों को उभारा जिनका श्री नेहरू और कई अन्य के पास कोई उत्तर न था. इस भाषण को अंग्रेजी के एक दैनिक समाचार पत्र ने इस सुर्खी के साथ प्रकाशित किया : बंगाल के शेर की संसद में गर्ज (Bengal Lion Roars in Parliament) इस भाषण में डा. मुखर्जी ने कई प्रश्नों को प्रमुखता से उभारा था.
उन्होंने उस समय जिन प्रश्नों को उभारा उनमें यह भी शामिल था कि अगर भारत का संविधान देश के करोड़ों लोगों के लिए लाभदायक हो सकता है तो कश्मीर के कुछ लाख लोगों के लिए हानिकारक कैसे बन सकता है? उन्होंने यह भी कहा कि विचित्र बात है कि कश्मीर के लोगों को देश के सभी भागों में समान अधिकार प्राप्त होंगे किन्तु शेष भारत के लोगों को अधिकार तो दूर की बात, वहां जाने के लिए वीजा प्राप्त करना पड़ेगा.
डा. मुखर्जी के इन प्रश्नों का कोई उत्तर न था। अंतत: श्री नेहरू को यह कहना पड़ा कि राज्य के लोगों को अलग दर्जा देने वाली धारा 370 समय के साथ घिसते-घिसते घिस जाएगी। किन्तु इसे विडम्बना ही कहना चाहिए कि छ: दशकों से भी अधिक का समय बीत जाने के पश्चात भी यह अस्थायी धारा भारत के संविधान में मौजूद थी और अलगाववाद के स्वर ऊंचा करने वाले इस धारा को राज्य और भारत के बीच एक पुल का दर्जा देने में लगे थे। इनमें कई कांग्रेसी नेता भी शामिल थे जो इसको हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं ।
लोकसभा में अपने लाजवाब विचारों को प्रकट करने के पश्चात डा. मुखर्जी ने स्वयं जम्मू में आकर परिस्थितियों का जायजा लेना चाहा क्योंकि लोगों के साथ अन्याय से संबंधित कई शिकायतें उनके पास पहुंच रही थीं और पं. प्रेमनाथ डोगरा श्यामा बाबू के साथ लगातार सम्पर्क बनाए हुए थे. लेकिन बाद में उनकी जेल में संदिग्ध मौत हो गयी जिसका असली इतिहास आज तक किसी को नहीं पता चला है. आज उस दिन को हुई ऐतिहासिक भूल को करने वाले और उसको याद दिलाने वाले दोनों को याद करने का समय है और विचार करने का समय है की किस ने देश के लिए क्या किया?