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DGP नागालैंड ने दिखाया वो गाँव जहाँ नेताजी सुभाष मात्र 2 माह रह कर भी सीख गये थे वहां का रहन सहन, भाषा - बोली और तौर - तरीके

DGP ने बताने की कोशिश की वो विलक्षण प्रतिभा जो सिर्फ नेता जी में थी..

Rahul Pandey
  • Jan 25 2021 8:46PM

जितना मुश्किल किसी इंसान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसी विलक्षण प्रतिभा का होना है, लगभग उतना ही मुश्किल उन धरोहरों को सहेजना और उनको जीवंत रखना भी है.. जिस नागालैंड को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी ने क्रूर और अत्याचारी अंग्रेजो के खिलाफ सामरिक रूप से मोर्चा स्थल जैसा बना रखा था वहां उनकी कई स्मृतियाँ सहेजने का कार्य कर रहे हैं DGP Border affairs IPS रुपिन शर्मा जी. 

विदित हो कि स्वतंत्र भारत के असल शिल्पकार महान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कितनी विलक्षण और अद्वतीय प्रतिभाओं के स्वामी थे इसको बताने और जताने के लिए IPS रुपिन शर्मा जी ने एक ट्विट किया है जिसमे उन्होंने नागालैंड के PHEK जिले के गाँव Chesuzu का वर्णन किया है..

ट्विट में बताया गया है कि इस गाँव में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी वर्ष 1944 के अप्रैल व् मई माह में रहे थे. लेकिन सबसे खास बात ये रही कि मात्र 2 माह के अंदर ही उन्होंने इस गाँव के रहन सहन , खान पान और सामान्य जीवन शैली में स्वयं को विधिवत रूप से ढाल लिया था और यहाँ के स्थानीय लोगों से पूरी तरह से घुल मिल गये थे.

इसके प्रमाण के तौर पर ट्विट किये गये फोटो को समझने की जरूरत है. उस गाँव में नेताजी सुभाष जी की मूर्ति मौजूद है जो एकदम वहां के पारम्परिक ढंग को आत्मसात करती दिख रही है. गाँव के लोगों ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी की उस मूर्ति को अभी भी सुरक्षित कर के रखा हुआ है जो उनके लिए वहां के स्थानीय लोगों के प्रेम और सम्मान को दर्शाता है.

गाँव में मौजूद इस मूर्ति के असल अर्थ में ये है कि जब नेताजी phek में रहे थे तब इस मूर्ति के आकार में स्थानीय कलाकार ने नेताजी के रूप में ढाला था. इसी रूप में स्थानीय नागा लोगों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को वहां रहते हुए देखा था.. वो सभी नेताजी के मिलनसार स्वाभाव से भी प्रभावित थे.

गाँव में मौजूद इस मूर्ति में नेताजी बैठ कर खाना खा रहे हैं जो वहां के स्थानीय लोगों का परम्परागत ढंग भी है. वहां की स्थानीय शैली के अनुसार नागा जनसमुदाय अक्सर अपने रसोई, जिसे चौका भी कहते हैं, उसमे इसी तरह बैठकर खाना खाते है . यहाँ तक कि उस गांव में अभी भी इसी तरह बैठ कर भोजन किया जाता है ।

इस स्थिति से लगता है कि नेताजी ने बहुत जल्दी अपने आप को स्थानीय लोगों के रहन सहन के तरीके अपना लिए थे. यहाँ प्रसंशा के पात्र IPS रुपिन शर्मा भी हैं जिन्होंने इन धरोहरों को न सिर्फ सहेजा है बल्कि देश और दुनिया को दिखाने और उनके संरक्षण हेतु भी प्रेरित कर रहे हैं.

समाज की रक्षा करने के साथ अमूल धरोहरों की रक्षा के लिए उनका प्रयास पूरे देश में सराहना का विषय भी बन रहा है.. देखिये एतिहासिक धरोहरों से परिचित करवाता उनका ट्विट -

 

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