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26 अक्टूबर : जन्मजयंती महान क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी जी...जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपने पत्रकारिता से लोगों के दिलों में जगाई राष्ट्र भक्ति की ज्वाला

आज उस वीर बलिदानी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है

Sumant Kashyap
  • Oct 26 2024 8:08AM

आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारें में नहीं बताया होगा, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने के साथ ही सदा के लिए मिटाने की कोशिश की ,, उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे महान क्रांतिकारी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी. आज उस वीर बलिदानी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को फतेहपुर जिले के हथगांव/हथगाम में एक हिंदू कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता जय नारायण जी, मुंगावली में एंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल नामक एक मिडिल स्कूल में शिक्षक थे, जो अब मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले की तहसील है. वह गरीब थे लेकिन गहरे धार्मिक हिंदू थे और उच्च आदर्शों के प्रति समर्पित थे. 

उन्हीं के अधीन गणेश शंकर जी ने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त की और मुंगावली और विदिशा में अध्ययन करने के बाद 1907 में निजी तौर पर हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की. उनका प्रवेश रजिस्टर इस विद्यालय में उपलब्ध है. गरीबी के कारण वे आगे नहीं पढ़ सके और मुद्रा कार्यालय में क्लर्क और बाद में कानपुर के हाई स्कूल में शिक्षक बन गये. 16 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी पहली पुस्तक हमारी एटमोग्सर्गार्ट भी लिखी और 4 जून 1909 को अपनी पत्नी चंद्रप्रकाशवती विद्यार्थी जी से विवाह किया. 

जानकारी के लिए बता दें गणेश शंकर विद्यार्थी जी कि रुचि पत्रकारिता और सार्वजनिक जीवन में थी और वे देश में हो रहे राष्ट्रवादी विद्रोह के प्रभाव में जल्दी आ गये. वह प्रसिद्ध क्रांतिकारी हिंदी और उर्दू पत्रिकाओं - कर्मयोगी और स्वराज्य - के एजेंट बन गए और उनमें योगदान देना भी शुरू कर दिया. उन्होंने उपनाम 'विद्यार्थी' अपनाया - ज्ञान का साधक. गणेश शंकर विद्यार्थी जी पंडित का ध्यान आकर्षित किया.

बता दें कि हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा महाबीर प्रसाद द्विवेदी जी ने उन्हें 1911 में अपने प्रसिद्ध साहित्यिक मासिक "द सरस्वती" में उप-संपादक की नौकरी की पेशकश की. हालांकि, गणेश शंकर विद्यार्थी जी को वर्तमान मामलों और राजनीति में अधिक रुचि थी और इसलिए वे इसमें शामिल हो गए. हिन्दी साप्ताहिक "अभ्युदय" उस समय की एक राजनीतिक पत्रिका. इस प्रकार उन्होंने उस समय के हिंदी साहित्य और पत्रकारिता की दो महानतम हस्तियों के अधीन अपनी प्रशिक्षुता प्रदान की.

वहीं, 1913 में गणेश शंकर विद्यार्थी जी वापस कानपुर आये और एक सक्रिय पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपना करियर शुरू किया, जो 18 साल बाद उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हुआ. उन्होंने अपने प्रसिद्ध क्रांतिकारी साप्ताहिक 'प्रताप' की स्थापना की, जिसने खुद को उत्पीड़ितों के हितों के साथ जोड़ा, चाहे वे कहीं भी हों और प्रताप व्यापक साबित हुआ क्योंकि इसका प्रसार 1913 में पांच सौ से बढ़कर 1916 में छह सौ हो गया.

इस अखबार के माध्यम से उन्होंने रायबरेली के उत्पीड़ित किसानों , कानपुर मिलों के मजदूरों और भारतीय राज्यों के दलित लोगों के लिए अपनी प्रसिद्ध लड़ाई लड़ी. इन लड़ाइयों के दौरान, उन्हें कई मुकदमों का सामना करना पड़ा, भारी जुर्माना भरना पड़ा और पाँच जेल की सज़ाएं भुगतनी पड़ीं. 11 जनवरी 1915 को, उन्होंने निम्नलिखित उद्धरण कहा.

1920 के दशक में शुद्धि आंदोलन के जोर पकड़ने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिकता फैल गई और कानपुर भी इसका अपवाद नहीं था.  फरवरी 1927 में, गणेश शंकर विद्यार्थी जी और अन्य कांग्रेस नेताओं ने मूलगंज मस्जिद पर एक प्रदर्शन का आयोजन किया था और चालीस मिनट तक संगीत बजाया था. बता दें कि यह एक मुस्लिम भीड़ द्वारा एक हिंदू विवाह जुलूस के साथ जा रहे एक संगीत बैंड पर हमला करने के प्रतिशोध में था.  

गणेश शंकर विद्यार्थी जी की मृत्यु कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में निसहायों को बचाते हुए 25 मार्च सन् 1931 ई. में हो गई. विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए थे. उनका शव अस्पताल की लाशों के मध्य पड़ा मिला. वह इतना फूल गया था कि, उसे पहचानना तक मुश्किल था. नम आंखों से 29 मार्च को विद्यार्थी जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. गणेश शंकर विद्यार्थी जी एक ऐसे साहित्यकार रहे, जिन्होंने देश में अपनी कलम से सुधार की क्रांति उत्पन्न की.आज उस वीर बलिदानी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनके शौर्य गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

 

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