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18 जनवरी- 1857 के 18 क्रांतिवीरों ने आज ही रायपुर में काट लिया था अत्याचारी मेज़र सिडवेल का सिर, जिनके मुखिया थे हनुमान सिंह.. इन सबको बाद में उड़ा दिया गया तोप से

आज 18 जनवरी को उन सभी वीर बलिदानियों को उनके बलिदान दिवस पर बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनके यशगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Rahul Pandey
  • Jan 18 2021 10:49AM
नकली कलमकारों की साजिश के शिकार गुमनाम बलिदानियों की जिस गौरवगाथा को सुदर्शन न्यूज हर दिन आपके सामने लाता है आज उसी क्रम में नम्बर है वर्ष 1858 में रायपुर के उन 18 शूरवीरों का जिन्होंने मंगल पांडेय के स्वप्न को आगे बढाया और स्वतंत्रता संग्राम की घोषणा कर दी उस क्रूर ब्रिटिश शासन के खिलाफ जो भारत को 200 वर्षों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए थी.. 

इस 18 शूरवीरों की टोली में बाद में 17 वीरो को मृत्युदंड के रूप में तोप से उड़ा देने की सज़ा मिली पर वो भारत माता की जय के नारों के साथ मृत्यु पर विजय पा गए और कहना गलत नहीं होगा कि अंत मे मृत्यु को भी उनसे डरना पड़ा था..आईये जानते हैं इस पूरे गौरवगान को विस्तार से ..

वीरनारायण की शहादत ने ब्रिटिश शासन में कार्य कर रहे सैनिक हनुमान सिंह में विद्रोह का भाव जगा दिया. नारायण सिंह के बलिदान स्थल पर इन अमर बलिदानियों के नेता हनुमान सिंह ने नारायण सिंह को फाँसी पर लटकाए जाने का बदला लेने की प्रतिज्ञा की. 

रायपुर में उस समय फौजी छावनी थी जिसे तृतीय रेगुलर रेजीमेंट का नाम दिया गया था. ठाकुर हनुमान सिंह इसी फौज में मैग्जीन लश्कर के पद पर नियुक्त थे. सन् 1857 में उनकी आयु 35 वर्ष की थी. विदेशी हुकूमत के प्रति घृणा और गुस्सा था. रायपुर में तृतीय रेजीमेंट का फौजी अफसर था मेजर सिडवेल.

दिनांक 18 जनवरी 1858 को रात्रि 7:30 बजे हनुमान सिंह अपने साथ दो सैनिकों को लेकर सिडवेल के बंगले में घुस गये और तलवार से सिडवेल पर घातक प्रहार किये. सिडवेल वहीं ढेर हो गया. हनुमान सिंह के साथ तोपखाने के सिपाही और कुछ अन्य सिपाही भी आये. 

उन्हीं को लेकर वह आयुधशाला की ओर बढ़े और उसकी रक्षा में नियुक्त हवलदार से चाबी छीन ली. बंदुको में कारतूस भरे. दुर्भाग्यवश फौज के सभी सिपाही उसके आवाहन पर आगे नहीं आये. इसी बीच सिडवेल की हत्या का समाचार पूरी छावनी में फैल चुका था. 

लेफ्टिनेंट रैवट और लेफ्टिनेंट सी.एच.एच. लूसी स्थिति पर काबू पाने के लिये प्रयत्न करने लगे. हनुमान सिंह और उसके साथियों को चारों ओर से घेर लिया गया. हनुमान सिंह और उसके साथी साथ छ: घंटों तक अंग्रेजों से लोहा लेते रहे. किन्तु धीरे-धीरे उनके कारतूस समाप्त हो गये. 

अवसर पाकर हनुमान सिंह फरार होने में सफल हो गये. किन्तु उनके 17 साथियों को अंग्रजों ने गिरफ्तार कर लिया. इस क्रांति के नायक बने सत्रह भारतीय सिपाहियों को फिरंगियों ने पुलिस लाइन रायपुर में खुलेआम तोप से उड़ा दिया था.हनुमान सिह फिर कभी किसी को नही दिखे. 

आज 18 जनवरी को उन सभी वीर बलिदानियों को उनके बलिदान दिवस पर बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनके यशगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है ..साथ ही सवाल करता है उन तमाम स्वघोषित इतिहासकारों व नकली कलमकारों से कि उन्होंने किस के निर्देश पर इन वीरो को विस्मृत किया और उन्हें क्यों नही दिया गया भारत के गौरवशाली इतिहास में स्थान ?

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