अगर आज हम सीना ठोंक कर बोल रहे हैं कि महाराणा प्रताप महान जी थे और अकबर आतताई थे. अगर आज हम कह पा रहे हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज देवतुल्य थे और औरंगजेब हत्यारा तो इसके पीछे नींव के उस पत्थर का जन्मदिवस है. आज जिसे वीर सावरकर जी के नाम से आज और हमेशा जाना जाएगा .
ये संघर्ष उस समय किया गया जब स्वाधीनता के तमाम तथाकथित ठेकेदारों द्वारा खुद के गढ़े जा रहे धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांतो की सुनामी थी. इस वीर ने सबसे पहले अंग्रेजो की प्रताड़ना झेली और उसके बाद स्वाधीनता के इन नकली ठेकेदारों के आक्षेप पर वो अडिग रहे हिमालय की तरह विरोधियों की चाहत सिर्फ एक थी कि असल हिदुत्व को सदा सदा के लिए दफन कर दिया...जाय पर वो महायोद्धा केवल सावरकर जी थे. जिन्होंने पहले अंग्रेजों से देश के लिए संघर्ष किया और उसके बाद धर्मविरोधियो से आज संघर्ष के उस महास्तंभ का पावन जन्मदिवस है जिस दिन गौरवान्वित है ये राष्ट्र...
स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक जिले के भागूर ग्राम में हुआ था. उनके पिताजी का नाम दामोदर पन्त सावरकर जी था और उनकी माताजी का नाम राधाबाई था. वीर सावरकर जी एक देशभक्त क्रांतिकारी थे और वह हिन्दुत्व के हिमायती थे. उन्होंने अपनी पढाई फर्ग्युसन कॉलेज ,पुणे से पूरी की थी. गांधी की हत्या में जिन 8 लोगों पर आरोप लगे, सावरकर जी उनमें से एक थे. मगर उन्हें बरी कर दिया गया था.
भले ही उस समय के स्वाधीनता के तमाम तथाकथित ठेकेदार अंग्रेजो के साथ बैठ कर चाय नाश्ता कर रहे थे लेकिन ठीक उसी समय महान क्रांतिवीर सावरकर जी पर अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की कोशिश का भी आरोप लगा था. सावरकर जी पर पहली बार हत्या का आरोप 1909 में लगा. मदनलाल ढींगरा जी ने सर विलियम कर्जन वाइली की लंदन में हत्या कर दी थी. ढींगरा को फांसी हुई. सावरकर जी पर दोष तय नहीं हो पाया. स्वाधीनता के बाद प्रकाशित उनकी जीवनी सावरकर एंज हिज टाइम्स में इस बात का खुलासा है कि उन्होंने ढींगरा को ट्रेनिंग दी थी.
ये भारत के उस शौर्य का प्रदर्शन था जिसमे दुश्मन को उसके घर में घुस कर मारने का दम दिखाया जाता है .अर्थात सर्जिकल स्ट्राइक जैसा जो उस समय भी हुआ था. उन्हें मिली कालापानी की सजा बेहद ही भयावह सजा थी. वीर सावरकर जी को कोल्हू में जानवरों की जगह लगाया गया लेकिन इसके बाद भी आज़ादी के नकली ठेकेदार उनके त्याग पर ऊंगली उठाते रहे.
इस जेल में भी दीवारों पर नाखून से खुरच कर उन्होंने राष्ट्र और धर्म प्रेम की वो इबादत लिखी थी जो आज भी भारत के सच्चे और स्वर्णिम इतिहास में सदा सदा के लिए अमिट है. जिस जेल में वीर सावरकर जी ने यातना झेली उस जेल में कुल 693 कमरे थे. सेल बहुत छोटा था और बस छत के पास एक रोशनदान हुआ करता था. जहां कैदियों को जंजीरों में जकड़ कर रखना एक सामान्य बात थी .क़ैदियों से नारियल का तेल निकालने जैसे काम करवाए जाते थे और उन्हें बाथरूम जाने के लिए भी इजाज़त लेनी होती थी.
उनके साथ डॉ. दीवान सिंह, योगेंद्र शुक्ल, भाई परमानंद, सोहन सिंह, वामन राव जोशी और नंद गोपाल जैसे लोग भी इसी जेल में क़ैद रहे थे. हिन्दुओं के सैन्यकरण के प्रबल समर्थक इस वीर योद्धा के हिदुत्व के लिए संदेश था - " 'जहां तक भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिंदू समाज को भारत सरकार के युद्ध संबंधी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिंदू हितों के फायदे में हो.
इसी के साथ उन्होंने आगे कहा कि हिंदुओं को बड़ी संख्या में थल सेना, नौसेना और वायुसेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद, और जंग का सामान बनाने वाले कारखानों वगैरह में प्रवेश करना चाहिए. हिन्दुओं का सैन्यकरण और हिन्दुओं की एकता मुख्य लक्ष्य था उनका .
आज वीरता की उस अमर गौरवगाथा , राष्ट्र प्रेम और धर्मरक्षक वीर सावरकर जी के जन्म दिवस पर उनको बारम्बार नमन और वन्दन करते हुए उनकी यशगाथा को अनंत काल तक जन जन को सुनाते रहने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.. धर्म के इस महान रक्षक को सुदर्शन परिवार का बारम्बार प्रणाम .. वीर सावरकर जी अमर रहें .