क्रांतिकारियों के साथ-साथ इनके इतिहास को भी दबाया गया. किसी ने नहीं बताया कि इन्होंने कितने दर्द सहे और क्या नहीं झेला. अगर बताते तो बहुत कुछ सामने आता और कईयों की कई धारणा ही बदल जाती. कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन् 1869 ई. में गाँधी की तरह काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था.
इस प्रकार कस्तूरबा गाँधी आयु में गाँधी जी से 6 मास बड़ी थीं। कस्तूरबा गाँधी के पिता 'गोकुलदास मकनजी' साधारण स्थिति के व्यापारी थे। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था.
इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के गांधी के साथ उनकी सगाई कर दी गई. तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया. एक दिन मोहनदास और कस्तूरबा के बीच इतनी ठन गई कि आवेश में मोहनदास ने वह कह दिया जिसकी कस्तूरबा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
उन्होंने कहा था कि - 'तू तो एकदम बुद्धिहीन है. एक बात कहे देता हूं ऐसी अनपढ़ पत्नी से मेरा मेल नहीं बैठ सकेगा.' अब जो जिसको जितना चाहता है उसकी कठोर बातों का दुःख भी उसे उतना ही होता है. आत्मसम्मानी कस्तूरबा ने भी कह दिया- 'सुन लिया. यदि मुझसे मेल नहीं बैठ सकता, तो जाने दीजिए. संभालिये अपना घर-बार.' कस्तूरबाई सचमुच अपने पीहर चली गई.
एक बार ऐसा मौका आया था जब गांधी के कदम बुरी डगमगाए थे और अपनी बेटी की उम्र से भी छोटी रवींद्रनाथ टैगोर की भाँजी सरला देवी चौधरानी के लिए उनके मन में कोमल भावनाएं पैदा हो गई थीं. लेखक प्रमोद कपूर बताते हैं, "उन्होंने ये किस्सा न्यूयॉर्क की एक बर्थ कंट्रोल एक्टिविस्ट मारग्रेट सेंगर को बताया था.
मैं दावे से नहीं कह सकता कि गाँधी उनके साथ सोए थे, लेकिन उनके लिखे पत्रों और दूसरे सूत्रों से पता चलता है कि गांधी सरला देवी को बहुत मानते थे और उनकी वजह से उनका वैवाहिक जीवन ख़तरे में पड़ गया था." ..गांधी के पोते और उन पर किताब लिखने वाले राजमोहन गांधी ने भी इसकी पुष्टि की.
एक बार की बात है जब आये दिन मुस्लिमों को उच्च स्थल दिलाने की हर पल कोशिश करने वाले गांधी उड़ीसा के दौरे पर गए थे. उनके साथ उनके सचिव महादेव देसाई भी थे..गांधी की पत्नी कस्तूरबा भगवान में अटूट आस्था रखती थीं इसलिए उन्हें हिंदुओं के अति पावन जगन्नाथ पुरी मन्दिर जाने की इच्छा हुई जिसके लिए उन्होंने महादेव देसाई की पत्नी को साथ लिया.
गांधी को ये पता चला तो उन्हें लगा कि उनकी पत्नी के मंदिर में मत्था टेकने की खबर से उन से जुड़े मुस्लिमों के मन मे गलत भावना पैदा कर सकती है, ठीक उसी प्रकार से जैसे राहुल गांधी के मंदिर जाने के बाद टी वी डिबेट पर मौलाना इसको वोटबैंक की राजनीति घोषित कर देते हैं लेकिन अपनी इफ्तारी में शामिल होना एक पुण्य का कार्य ..
यकीनन ये परंपरा व सोच उस समय भी कायम रही होगी इसलिए गांधी ने कस्तूरबा को साफ मना कर दिया मन्दिर न जाने के लिए .. इसके लिए उन्होंने बाकायदा अपने सचिव महादेव देसाई को भी आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी को भी समझाएं कस्तूरबा के साथ न जाने की , लेकिन परमात्मा को राजनीति, तुष्टिकरण आदि से सदा ऊपर रखने वाली धर्मपरायण कस्तूर बा गांधी के लाख मना करने के बाद भी समय निकाल कर पुरी मन्दिर गईं जो उनके लिए लौट कर आने के बाद भारी पड़ा ..
जब गांधी को पता चला कि उनकी पत्नी मन्दिर उनके लाख मना करने के बाद भी गयी हैं तो उनके गुस्से की सीमा न रही और उन्होंने इसको अपने लिए सदमा बताया . वो बीच सभा मे कई लोगों के बीच ही कस्तूरबा पर चीखने लगे और लोगों के समझाने के बाद तो और भी भड़क गए .
यद्द्पि ऐसा कर के वो मन्दिर के विरोधियों को एक परोक्ष सन्देश दे रहे थे लेकिन अफसोस इसके लिए उन्होंने अपनी धर्मपरायण पत्नी की भरी सभा मे इज्जत की धज्जी उड़ा दी .. कुछ जगहों पर तो यहां तक लिखा मिलता है कि गांधी कस्तूरबा के मंदिर जाने पर पर इतना गुस्सा हुए थे कि कि उन्होंने उन्हें बुरी तरह पीटा भी था ..
15 अगस्त 1942 को जब हार्ट अटैक से उन्हें मन्दिर दर्शन करवाने वाले महादेव देसाई की मृत्यु हुई थी तब रोती हुई कस्तूरबा देसाई की समाधि पर गईं और बोलीं थी कि "जाना तो मुझे था महादेव कैसे चला गया". धीरे धीरे कस्तूरबा को ब्रॉन्काइटिस की शिकायत हो गयी जिसके चलते उन्हें दो दिल के दौरे पड़े और इसके तुरन्त बाद निमोनिया भी हो गया.
इन तीन बीमारियों के चलते बा की हालत बहुत खराब हो गई.डॉक्टर कस्तूरबा को पेंसिलिन का इंजेक्शन दे कर जल्द ठीक करना चाहते थे लेकिन गांधी ने न जाने क्यों इसको मना कर दिया ..डॉक्टरों ने बार बार कहा कि जल्द आदेश दीजिये लेकिन गांधी नहीं माने , जब कस्तूर बा ने भी पेंसिलिन लेने की गुजारिश की तो उन्हें भी एकतरफा बोला कि तुम्हारी मर्जी हो ले लो बिना मेरी इच्छा के .
आखिर में कस्तूरबा का बेटा देवदास तक अपने पिता को पेंसिलिन का इंजेक्शन अपनी माँ को लगवाने की गुजारिश करने आया , लेकिन उसको भी गांधी ने मना कर दिया और इसी के चलते आज ही अर्थात 22 फरवरी सन 1944 को धर्मपरायण कस्तूरबा इस संसार को छोड़ कर चली गई.. अपने पति की मर्जी के खिलाफ प्रभु के दर्शन करने वाली इस धर्मपरायण नारी की मृत्यु के दिन हिंदुओं का सबसे पावन दिन "महाशिवरात्रि" था .. आज उस कर्तव्यपरायणता की और धर्मपारायणता की प्रतिरूप कस्तूरबा को उनकी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि .