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उधर ओमप्रकाश राजभर लगा रहे थे ओवैसी को गले और इधर राजभर परिवार की नाबालिग बेटी का अपहरण कर रहा था मैसूर आलम.. राजभर परिवार के काम आई तो केवल वाराणसी पुलिस

कितना अंतर है जमीनी सच्चाई और राजनैतिक बयानबाजी में , देखने को मिला वाराणसी में.

Rahul Pandey
  • Mar 3 2021 9:08PM

ज्यादा समय नहीं बीता है जब उत्तर प्रदेश की राजनीति में चर्चा थी एक नए गठबंधन की. वो गठबंधन जो सालार गाजी के समर्थक और उसका वध करने वाले महान हिन्दू सम्राट राजा सुहेलदेव के नाम पर पार्टी चला रहे 2 राजनेताओं के बीच हुआ था. इतिहास को विस्मृत कर के बाकायदा गले मिले गये और संदेश दिया गया नये युग का..

सालार गाजी के उस समर्थक का नाम अपने दंगाई बयानों के लिए चर्चित असदुद्दीन ओवैसी है और महान हिन्दू सम्राट राजा सुहेलदेव के नाम से पार्टी चला रहे हैं ओम प्रकाश राजभर. कहना गलत नही होगा कि ओवैसी के लिए UP में इन्होने ही एक आसान राह बनाने की पूरी जिम्मेदारी ले रखी है. 

कुछ दिन पहले ही गले मिल कर इन दोनों ने राजभर समुदाय और ओवैसी के समुदाय की एकता का नारा दिया था..लेकिन अचानक ही उत्तर प्रदेश के वाराणसी में घटी ऐसी घटना जो ऐसा सवाल खड़ा कर गई इस नई नई दोस्ती पर जो संभवतः सिर मुडाते ही ओले पड़ने जैसी वारदात कही जा सकती है. 

विदित हो कि वाराणसी में मैसूर आलम नाम के एक अपहरणकर्ता ने मिर्जामुराद क्षेत्र की 15 वर्ष की एक नाबालिग बच्ची का अपहरण कर लिया और उसको ले कर दिल्ली भाग निकला.. उस समय रोते और बिलखते राजभर परिवार के साथ ये नया गठबंधन कहीं भी दिखाई नहीं दिया और आलम से पीड़ित राजभर परिवार का सहारा बनी मात्र वाराणसी पुलिस.

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अमित पाठक ने इस मामले में तत्काल सक्रियता दिखाई और उन्होंने इंस्पेक्टर मिर्जामुराद सुनील दत्त दुबे को इस मामले को निबटाने का बेहद महत्वपूर्ण जिम्मा सौंपा.. फ़ौरन ही टीमो का गठन किया गया और पुलिस टीम की पहली चुनौती थी अपहर्ता की पूर्ण सुरक्षा.

यद्दपि राजभर परिवार की तरफ से मुकदमा किसी अज्ञात अपहरणकर्ता के विरुद्ध लिखवाई गई पर पुलिस ने बेहद कम समय में ये जान लिया कि ये कुकृत्य फख़रे आलम के बेटे मैसूर आलम का है. पुलिस ने आगे की जांच में पाया कि अपने नापाक मंसूबे के साथ मैसूर आलम बच्ची को ले कर दिल्ली की तरफ कदम बढाये हैं.

बिना एक पल देर किये वाराणसी की मिर्जामुराद पुलिस ने रेलवे पुलिस से सम्पर्क किया और स्टेशनों पर चेकिंग अभियान छेड़ दिया. मैसूर आलम इतना शातिर था कि वो अलीगढ़ , कानपुर और गाजियाबाद जैसे स्टेशनों को पार करता हुआ निजामुद्दीन स्टेशन दिल्ली तक पहुच गया था..

शाबाशी देनी होगी यहाँ वाराणसी की मिर्जामुराद पुलिस की जो मैसूर आलम से पहले ही निजामुद्दीन पर मौजूद मिली और स्टेशन परिसर से निकलने से पहले ही मैसूर को उस बच्ची के साथ दबोच लिया. पहले तो मैसूर ने इधर उधर की बात की पर पुलिसिया अंदाज़ के आगे तो टूट गया.

आख़िरकार मैसूर आलम को पकड कर मिर्जामुराद पुलिस दिल्ली से वाराणसी लाई और उसको उसके गुनाहों की सजा देने के लिए कानून सम्मत कार्यवाही कर के जेल की यात्रा पर रवाना किया.. इसी के साथ नाबालिग बच्ची को भी सही सलामत खोज निकाला गया जिसे पा कर उस घर के सदस्यो की आँखों से आंसू थम नही रहे थे.

लडकी के परिवार ने खाकी वर्दी पहने पुलिस वालों को भगवान के रूप में देखा और उसे हाथ जोड़ कर अपनी बेटी को नया जीवन देने के लिए धन्यवाद किया.. इस मामले में वाराणसी की मिर्जामुराद पुलिस की सक्रियता की हर तरफ प्रशंसा की जा रही और माना गया कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के पुलिस बल ने उसी स्तर की सक्रियता दिखाई जैसी जनअपेक्षा थी.

फिलहाल अभी तक राजभर परिवार के समर्थन में और उस 15 साल की बेटी का अपहरण करने वाले के खिलाफ नए समीकरण की राजनीति करने वालों का एक भी बयान नहीं आया है. कही से भी एक भी राजनैतिक शब्द ऐसा नही बोला गया जो मैसूर आलम को कड़ी सज़ा दिलाने की मांग पर अड़े राजभर परिवार को सहयोग का संकेत दे.

इस मामले में पुलिस बिना किसी राजनैतिक दबाव के और बिना किसी के सहयोग के वैधानिक कार्यवाही कर रही है और मैसूर आलम को कड़ी सजा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है पर वोटबैंक की जातिवादी राजनीति करने वालों की चुप्पी इस विषय में बहुत कुछ बयान कर रही है. 

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