बीते अप्रैल-मई में हुए पश्चिम बंगाल चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने काफी हुंकारे भरी, "खेला होबे" का नारा भी दिया, जिसके कमोवेश तृणमूल कांग्रेस ने जीत तो दर्ज की, लेकिन ममता बनर्जी को बीजेपी के "सुवेंदु अधिकारी" के खिलाफ 1900 वोटो के अंतर से हार का सामना भी करना पड़ा था, जिसके कारण दीदी की काफी थू-थू हुई और लोगो ने तो उनके अति-उत्साहित होने को ही उनकी हार का जिम्मेदार माना।वही, नंदीग्राम सीट में हार के बाद दीदी ने कहा था की-" मै अपनी हार स्वीकार करती हूँ, लेकिन मैं न्यायलय का रुख जरूर करुँगी"
2 मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों में ममता बनर्जी को नंदीग्राम सीट से हार का मुंह देखना पड़ा था. इसके बावजूद ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. ममता बनर्जी फिलहाल विधानसभा की सदस्य नहीं है. ऐसे में मुख्यमंत्री बनने के छह माह के भीतर उनके लिए सदस्यता प्राप्त करना अनिवार्य है. वहीं भवानीपुर के विधायक रहे सोभन देब चट्टोपाध्याय अब खरदाहा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. जिन्होंने ममता के चुनाव लड़ने के लिए भवानीपुर सीट से इस्तीफा दिया था. भवानीपुर से ममता बनर्जी दो बार पहले भी जीत चुकी हैं. भवानीपुर के अलावा 30 सितंबर को शमशेरगंज और जंगीपुर विधानसभा सीट पर भी वोटिंग होगी, जिसकी मतगणना तीन अक्टूबर को होगी.
ममता ने बीजेपी पर लगाया था आरोप
ममता बनर्जी ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा था , कि बीजेपी ने उन्हें चुनाव में जानबूझकर हरवाया। इसी कारण उन्हें उपचुनाव के लिए मजबूर होगा पड़ा है. बंगाल भाजपा प्रमुख दिलीप घोष ने बनर्जी के आरोपों को "निराधार" करार दिया. उन्होंने कहा कि भवानीपुर में मुकाबला पूरी तरह से भाजपा और टीएमसी के बीच होगा. उन्होंने सीपीआई और कांग्रेस की घोषणा को ज्यादा तरजीह नहीं दी. घोष ने कहा, "उपचुनाव में कितने भी उम्मीदवार हो सकते हैं, हमारे मतदाता हमारे साथ हैं." उन्होंने कहा, “माकपा और कांग्रेस द्वारा अपने उम्मीदवारों की घोषणा करना या न करना पश्चिम बंगाल चुनावों में एक कारक नहीं है. पिछले चुनाव में उन्हें विधानसभा में प्रवेश नहीं मिला था.
उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग ने बरती कड़ाई
कोविड को देखते हुए, चुनाव आयोग ने उपचुनावो ने कई प्रतिबन्ध भी लगाए है, चुनाव आयोग ने नामांकन से पहले किसी भी प्रकार के जुलूस पर पाबंदी है,प्रचार के लिए बहरी स्थानों पर 50 फीसदी लोगो की ही उपस्थिति होंगी।