मध्यप्रदेश के रतलाम प्रशासन की हिन्दू विरोधी करतूत सामने आई है। मंदिर में चढ़े चढ़ावे पर हक़ वहां के पुजारियों का होता है। लेकिन वही पुजारी अगर मंदिर में चढ़े दक्षिणा को अपने पास रखे तो विवाद आखिर क्यों? आखिर हिन्दू विरोधी कारनामे को अंजाम क्यों दिया जा रहा है ? पुजारी अपने हक़ को ले तो क्या SDM को इसपर नोटिस भेजने का हक़ है ? हिंदू विरोधी ताकतों को क्या इससे मजबूती नहीं मिलेगी? सवाल बहुत हैं लेकिन आप पहले मुद्दे को जानिए।
आपको बता दें सुदर्शन हमेशा से मांग कर रहा है कि मंदिर पर सरकार का मालिकाना हक़ न हो, क्योंकि मंदिर समाज का होता है लोगों का होता है उस पुजारी का होता है जो दिन रात वहां बैठकर प्रभु की आराधना करता है। फिर सरकार के मालिकाना हक़ की तो बात ही नहीं आनी चाहिए। मामला मध्यप्रदेश के रतलाम शहर में पांच दिवसीय दीपोत्सव के दौरान माणक चौक स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने पहुंचे थे।
भक्तों ने जो दक्षिणा दी, वो सरकारी दान पात्र के बजाए आरोप है कि पुजारी ने अपनी जेब में रख लिया, इसका वीडियो कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के बाद पहुंचा जिसके बाद मामले की जांच शुरु कर दी गई। जांच में शहर एसडीएम अभिषेक गेहलोत ने पुजारी संजय कुमार को नोटिस जारी किया ।
अब आप यह बताये की आखिर यह किस तरीके की तानाशाही को दर्शाता है। हिन्दू धर्म और संस्कृति में हिन्दुओं का धर्म मंदिरों में दक्षिणा देना बताया गया है तथा पुजारियों का यह धर्म है की उस दक्षिणा को आस्था पूर्वक ग्रहण करे। लेकिन इसके बावजूद अगर प्रशाशन इसपर करवाई करे तो यह एक विशेष विचारधारा को पुर्णतः वर्णित करता है।
यही नहीं प्रशासकीय अधिकारियों के अनुसार संजय पुजारी को नोटिस थमा दिया गया है व तय समय सीमा में जवाब देने को कहा गया है। इस नोटिस में दक्षिणा को दान पात्र के बजाए जेब में क्यों रखा गया इस बारे में सवाल किए गए है। इसके अलावा पुजारी को क्यों न मंदिर में सेवा पद से हटाया जाए इस बारे में कहा गया है। हम लगातार देख रहे है की सजिश्तम हिन्दू धर्म, संस्कृति, तथा संस्कारों पर कुठाराघात किया जा रहा है।
पुजारी जो अपना जीवन मंदिरों को समर्पित कर देता है जो सभ्यता तथा संस्कृति को बचाने के लिए कर्तव्यनिष्ठा से समर्पित रहता है। क्या उसका परिवार नहीं है? क्या उसके बच्चे नहीं है? मंदिर के चढ़ावे से उसका परिवार चलता है लेकिन अगर वह थोड़े पैसे या फिर अपने हक़ के पैसे लेता है तो उसके ऊपर क़ानूनी हंटर आखिर क्यों ?
लेकिन असल कारण इसके पीछे कुछ और ही है रियासत समय में इस मंदिर का निर्माण शहर के संस्थापक तत्कालीन राजा रत्न सिंह ने करवाया था। राजा के साथ जोधपुर से श्रीमाली ब्राहमण समाज भी बड़ी संख्या में आया था। तब समाज के वरिष्ठ द्वारा ही मंदिर में पूजा की जाती थी। बाद में मंदिर को कोर्ट्स ऑफ वार्ड्स में ले लिया गया। सामान्य भाषा में बताया जाए तो मंदिर सरकारी हो गया। इसके बाद इसमें आने वाले चढ़ावे पर सरकार का हक होता है।