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कानपुर में जीका वायरस संक्रमित मिलने पर यूपी के सभी जिलों में एलर्ट जारी…एडीजी प्रजाति के मच्छरों के काटने से होता है रोग

जीका वायरस संक्रमित एडीज प्रजाति के मच्छरों के काटने के कारण होता है। जीका वायरस से पीड़ित मरीज को तेज बुखार, शरीर पर लाल रंग के दाने, आंखों में जलन और मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द होता है। तीन से 14 दिनों के अंदर इसके लक्षण दिखने लगते हैं।

Prem Kashyap Mishra
  • Oct 26 2021 8:26PM

 जीका वायरस का मरीज कानपुर में पाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश के सभी जिलों को अलर्ट जारी कर दिया गया है। जीका वायरस का रोगी मिलने पर मरीज के घर के इर्द-गिर्द तीन किलोमीटर के क्षेत्र की मैपिंग की जाएगी। यहां स्वास्थ्य विभाग की टीमें घर-घर जाकर बुखार से पीड़ित लोगों को चिन्हित करेंगी। ऐसे लोग जिनमें जीका वायरस से संक्रमित होने के लक्षण मिलेंगे उनकी जांच कराई जाएगी। अस्पतालों में भी पर्याप्त इंतजाम किए जाएंगे। स्वास्थ्य महानिदेशक डा. वेदब्रत सिंह की ओर से सभी जिलों को निर्देश जारी किए गए हैं कि वह रैपिड रिस्पांस टीम का गठन करें और मरीजों को चिन्हित करें।

यह टीमें बुखार पीड़ित मरीजों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं और जीका वायरस प्रभावित राज्य केरल और राजस्थान से आने वाले लोगों को चिन्हित करेंगी। वहीं विदेश यात्रा खासकर अफ्रीकी देशों से आने वालों पर नजर रखी जाएगी। संदिग्ध मरीजों की जांच के लिए सैंपल जांच के लिए भेजे जाएंगे। निर्देश दिए गए हैं कि सरकारी और निजी अस्पतालों में जहां बुखार से पीड़ित रोगी भर्ती हैं, वहां इसके लक्षण वाले मरीजों के सैंपल जांच के लिए भेजे जाएंगे। अगर किसी मरीज में जीका वायरस की पुष्टि होती है तो उसे 14 दिनों तक अस्पताल में भर्ती किया जाएगा। सभी जिलों की निगरानी के लिए स्वास्थ्य महानिदेशालय में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है।‌

जीका वायरस संक्रमित एडीज प्रजाति के मच्छरों के काटने के कारण होता है। जीका वायरस से पीड़ित मरीज को तेज बुखार, शरीर पर लाल रंग के दाने, आंखों में जलन और मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द होता है। तीन से 14 दिनों के अंदर इसके लक्षण दिखने लगते हैं। फिलहाल मच्छरों से बचाव के पर्याप्त इंतजाम किए जा रहे हैं। जीका वायरस के संक्रमण से सबसे बड़ा खतरा गर्भस्थ शिशुओं को होता है। अगर मां को संक्रमण हो गया तो यह वायरस शिशु के शरीर में पहुंच जाता है और उसके न्यूरो सिस्टम को प्रभावित कर देता है। बच्चे का सिर छोटा हो जाता है। कोशिकाएं नहीं बन पाती और उसके स्पाइनल कार्ड में सूजन आ जाती है, जिससे उसका मस्तिष्क प्रभावित होता है।

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