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चौरीचौरा क्रांति में अंग्रेजो को मारने वाले क्रांतिकारियों के ही खिलाफ खड़े हो गये थे गांधी, और यही से भगत सिंह ने छोड़ दिया था गांधी का साथ

जानिये वो इतिहास जो आज तक नहीं आने दिया गया सामने.

Rahul Pandey
  • Sep 28 2020 1:57PM
आज़ादी का असल इतिहास वो नहीं है जो आप जानते हैं , आज़ादी का असल इतिहास वो भी है जो हमें बताया नहीं गया . बहुत कम लोगों को उस पीड़ा के बारे में पता होगा जिसको चौरी चौरा के क्रांतिकारियों ने झेली है . उन्होंने 22 अंग्रेजी पुलिसकर्मियों को क्या मार दिया था गांधी ने अपना असहयोग आन्दोलन ही वापस ले लिया था .

सके बाद पूरे देश में ये संदेश गया था कि चौरी चौरा में अंग्रेजो को मार देने वाले लोग ही भारत की आज़ादी के दुश्मन है . उनका साथ सभी ने छोड़ दिया था और वो जेलों में इंतजार करते रह गये थे अपने किसी एक समर्थक का आ कर ये कहने और सुनने के लिए कि उन्होंने अंग्रेजी पुलिस को मार कर कुछ गलत नहीं किया .

उस समय अगर किसी ने उन वीरों का साथ दिया था तो वो थे महामना मदन मोहन मालवीय . ये वो नाम है जिसको बहुत ज्यादा चर्चा में नहीं लाया गया जबकि ये भारत में शिक्षा के वो स्तम्भ थे जो विदेशी शिक्षा के बजाय भारतीय शिक्षा पद्धित को जीवित रखने के लिए कार्य कर रहे थे. 

उन्होंने जैसे ही चौरी चौरा क्रान्ति के क्र्नातिकरियो की दुर्दशा सुनी वो फ़ौरन ही उनका केस लड़ने के लिए तैयर हो गये और तमाम विरोधों के बाद भी उन्होंने उन सभी क्रान्तिकारियो के लिए हर सम्भव प्रयास किया..महामना मदन मोहन मालवीय जी के ही प्रयासों से कुछ क्रान्तिकारियो को फांसी होने से बची थी और उन्हें रिहा कर दिया गया था .. 

इस कार्य में क्रांतिकारियों का साथ देना कहीं न कहीं गांधी की इच्छा के खिलाफ जाना था क्योंकि गांधी चौरी-चौरा कांड से बहुत नाराज थे. जिसके कारण उन्होंने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था. गाँधीजी इस निर्णय से रामप्रसाद बिस्मिल और उनके नौजवान साथियों से नाराज थे. जिसके कारण कांग्रेस दो विचारधाराओ में विभाजित हो गई. 

एक था नरम दल और दूसरा गरम दल. शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल और अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद जैसे कई क्रांतिकारी गरम दल के नायक बने. गरम दल के नायक शहीदे आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्र शेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारी बने। 

सेंट्रल असेंबली पर हमला करने का इनका एक मात्र मकसद था कि इनकी राह अलग है, 23 मार्च, बलिदान दिवस के अवसर पर चौरीचौरा में देश की आजादी के नायक, महान क्रांतिकारी शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु और शुखदेव के बलिदान पर न तो किसी दल ने कोई कार्यक्रम आयोजित किया और न ही सार्वजनिक स्थान पर कोई सभा हुई।

लेकिन ये हमारे लिए दुर्भाग्य का विषय था कि चौरी-चौरा थाने में 23 पुलिसवालों की स्मृति में तो पार्क बनाया गया मगर इन शहीदों की याद में लंबे समय तक कोई स्मारक नहीं था. इस क्रांति के सूत्रधारों में ब्रिटिश हुकूमत ने 19 को फांसी और 14 को काला पानी की सजा सनाई थी। आजाद भारत में आज उन्हीं सपूतों का सिर कहीं और धड़ कहीं और पडा हुआ है। उनकी याद में बना शहीद स्मारक अपनों की लापरवाही से उपेक्षा का शिकार है।

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