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धर्मनिरपेक्ष भारत में शायद गोली सिर्फ बाबरी बचाने के लिए चलेगी.. वो बेचारे तो भगवाधारी संत थे ... बाकी, फर्क भी है उद्धव ठाकरे और मुलायम सिंह यादव में

इस देश में हिन्दू और हिंदुत्व के प्रतीकों का ये है हाल..

Sudarshan News
  • Apr 24 2020 9:32PM
महाराष्ट्र के पालघर में जब संतों के ऊपर निर्ममता से बरसते लाठी-डंडे और भाले व अन्य घातक हथियार देश ने देखें उसके बाद कभी हिंदू हृदय सम्राट बाला साहब ठाकरे के बेटे व वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान सुने तो देश और दुनिया के मन में एक सवाल जरूर आने लगा कि क्या उन संतो को बचाने का सच में कोई भी रास्ता नहीं बचा था. यह सवाल तब और गहरा होता है जब उसी महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख स्वयं में जानकारी देते हैं कि हां वहां पर चार - पांच पुलिस वाले पहले थे और 10 - 12 बाद में भी आए.  डेढ़ दर्जन पुलिस वाले मिल कर दो भगवाधारी साधु और उनके एक सहयोगी, कुल मिलाकर 3 लोगों को नहीं बचा पाए . इसका अर्थ क्या निकाला जाए कि क्या अब उस क्षेत्र, उस इलाके से कोई भी साधु कोई भी संत दोबारा ना गुजरे ? क्या गारंटी है कि वही घटना बार बार नहीं दोहराई जायेगी ? क्या इस बार किसी विशेष पुलिस बल की तैनाती होगी वहां जो संतो को मौत के हवाले न करे ?

आगे सवाल ये है कि क्या अब वहां उसी पालघर क्षेत्र में कोई नया बोर्ड लगेगा कि इस इलाके में भगवा वस्त्र धारियों का प्रवेश वर्जित है ? या सीधे-सीधे तथाकथित सख्त कानून को एक किनारे कर के यह कह दिया जाएगा कि इस क्षेत्र में हिंदू संतों का घुसते ही मार दिया जाएगा ? जिस प्रकार से लाचारी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री महाराष्ट्र और उसी महाराष्ट्र के गृहमंत्री और महाराष्ट्र की पुलिस ने दिखाई उसके बाद ऊपर ऐसा नहीं होगा यह शायद बिल्कुल नहीं कहा जा सकता.  अगर इतिहास का मंथन किया जाए कि क्या कभी सच में ऐसी घटना हुई है जब पुलिस वालों किसी परिस्थिति में भीड़ पर गोली चलाई है तो इसमें सबसे ज्यादा जिस घटना का जिक्र आता है वह घटना है अयोध्या की अभी भी है. वो समय ठीक उसी प्रकार से सेकुलरिज्म के बोलबाले का था जैसे आज महाराष्ट्र में है.. शरद पवार जिस प्रकार से महाराष्ट्र में धर्मनिरपेक्षता के स्तम्भ हैं, ठीक वैसे ही उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव भी हैं. 

हर किसी के जेहन में घटना ज्यों की त्यों है जब भगवान राम का भजन करते हुए अपने प्रभु श्री राम के जन्मस्थली में घूम रहे कारसेवकों को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सीधे-सीधे गोली मारने का आदेश दिया था. उन्ही के आदेश के बाद उन रामभक्तों पर गोलियां बरसाईं गई और उस घटना में कितने श्री रामभक्त बलिदान हुए थे इसका अब तक सटीक आंकड़ा कोई नहीं दे पाया है.. फ़िलहाल इस मामले में कुछ लोग ऐसा बताते हैं कि गलियों ही नहीं बल्कि बगल बहती नदियों में भी लाल खून साफ दिखाई दे रहा था उस समय . मुलायम सिंह के खुद के अनुसार यह गोलियां उन्होंने देश के भाईचारे को बचाने के लिए चलवाई थी जिसमे बाबर के बनवाये किसी मीनार आदि का जिक्र भी आया था. मुलायम सिंह यादव के लिए वो मीनार इतनी ज्यादा मायने रखती थी कि उन्होंने ये भी कहा कि और भी मरते तो मारता लेकिन उसको बचाता. अब यह सवाल जरूर उठता है कि दो निरीह संतों के प्राण एक आक्रान्ता के ढाँचे से कहीं न कहीं कम कीमती देश के राजनेताओं के एक विशेष वर्ग को लगती ही होगी ..

हालात तो यहां तक बने हैं कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अपने पुलिस बल की लाचारगी का रोना बार-बार रो रहे हैं और बता रहे हैं कि उन्होंने हवाई फायर किए . महाराष्ट्र पुलिस के 17 सशस्त्र पुलिस बल सिर्फ हवाई फायर कर के और संतों से हाथ छुड़ाकर उन्हें उसी भीड़ को सौंप देते है. वो एक इशारा था कि जाओ जो करना है इनका करो.. लेकिन मुलायम सिंह यादव ने बाबर के ढाँचे वाले कांड के में चलाई गई गोली की जिम्मेदारी बार बार ली और लगातार ली. इतना ही नहीं , उन्होंने सीना ठोक के बार-बार कहा कि हां मैंने गोली चलवाई और उसमें और भी मरते हैं तो भी मैं मारता.  अब सवाल यह जरूर बनता है कि एक बार सनातन समाज संत समाज इस विषय पर पूरा आत्ममंथन करें और उत्तर प्रदेश के धर्मनिरपेक्ष नेता मुलायम सिंह की बार बार ली गई उस जिम्मेदारी को सुन कर फिर अब महाराष्ट्र के सेक्युलर नेता उद्धव ठाकरे से सवाल करें कि क्या संतों के प्राण आक्रान्ता बाबर के उस कलंक से भी कम मूल्य के थे ? 

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