ये वो घटना है जिसमे न्याय अभी बाकी है.. पहले तो इसको दबाने के हर सम्भव प्रयास किये गये और जब सच को छिपा नहीं पाए तो धमकी दी जाने लगी कि इसमें किसी प्रकार का एंगल न निकाला जाय. कुल मिला कर एक दमन का प्रयास था लेकिन सुदर्शन न्यूज़ ने निर्भीकता से अपनी आवाज को बुलंद रखा और आखिरकार देश और दुनिया तक ये बात चली ही गई कि महाराष्ट्र के पालघर में २ हिन्दू संत बेरहमी से मार डाले गये हैं. इतना ही नहीं सुदर्शन न्यूज़ के प्रयासों से ही हर किसी ने ये भी देखा कि किस प्रकार से महाराष्ट्र की पालघर पुलिस ने संतो को अपने हाथो से ले जा कर भीड़ को सौंप दिया था. अब उसी पर आक्रोशित है देश , हिन्दू समाज और संत भी.
महाराष्ट्र के पालघर में बीते 16 अप्रैल को दो संतों व एक वाहन चालक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर निर्मम हत्या कर दी गई। इस प्रकार संतों की निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। आश्चर्य की बात यह रही की भीड़ द्वारा संतों पर आक्रमण के समय पुलिस बल वहां मौजूद था। जिसके बावजूद संतो की हत्या कर दी गई। संतों की इस प्रकार से हत्या ने संतों और सन्यासियों के देश कहे जाने वाले भारत के सामने एक बढ़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। क्या भारत में संत और सन्यासी सुरक्षित नहीं है? महाराष्ट्र के पालघर में भीड़ द्वारा किए गए इस हमले में 70 वर्षीय संत कल्पवृक्ष गिरी तथा 35 वर्षीय संत सुशील गिरी अपने वाहन चालक निलेश तेलगड़े के साथ परमात्मा में लीन हो गए। ये तीनों अपने गुरु रामगिरी जी की अकस्मात मृत्यु हो जाने के कारण उनके अंत्येष्टि में शामिल होने मुंबई से गुजरात जा रहे थे। लेकिन महाराष्ट्र के पालघर जिले के कासा थाना क्षेत्र के गढ़चिंचले गांव के पास भीड़ द्वारा आक्रमण करके इनकी पीट-पीटकर निर्मम हत्या कर दी गई।
सन्त सुशील गिरी के पैतृक ग्राम चांदा में शोक की लहर दौड़ गई है।संत सुशील गिरी उर्फ शिव नारायण दूबे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद के चांदा में स्थित ग्रामसभा प्रतापपुर कमैचा चांदा बाजार के मूल निवासी थे। सन् 1997 में इनका मन ईश्वर से ऐसा जुड़ा कि ईश्वर की भक्ति में लीन होने और सन्यास लेने के उद्देश्य से अपने घर का त्याग कर दिया। इसके बाद उन्होंने कुछ समय पंजाब में व्यतीत किया। फिर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में दीक्षा ले ली और मुंबई के कांदिवली ईस्ट में स्थित शिव मंदिर में महंत का जीवन व्यतीत करने लगे। संत सुशील गिरी अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। इनके बचपन का नाम रिंकू था।इनके बड़े भाई शेष नारायण दूबे ने बताया कि सुशील गिरी जी कभी-कभी घर भी आते थे और परिवारजनों से मुलाकात करके वापस चले जाते थे। शेष नारायण ने बताया कि उनसे अंतिम बार मुलाकात दिसंबर 2019 में हुई थी,जब सुशील गिरी एक विवाह समारोह में शामिल होने आए थे और लगभग एक घंटा घर पर रहे थे।
परिवारी जनों को उनके देहांत की सूचना फेसबुक पोस्ट के माध्यम से मिली। सूचना मिलते ही पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। हर कोई इस घटना से स्तब्ध रह गया।पहली बार में इस बात पर विश्वास करना किसी के लिए भी संभव नहीं था। लोगों के मुख से सिर्फ इतना ही निकल पा रहा है कि यह कैसे हो गया?वहीं परिवारजनों जनों ने इसे स्थानीय पुलिस की लापरवाही करार देते हुए घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। वही श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अध्यक्ष प्रेमगिरि ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक,पालघर को पत्र लिखकर पुलिस की भूमिका पर संदेह जताते हुए मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।