7 जनवरी - 1857 में क्रूर कैरी, मिल्स, कॉनेल व मानसन को मारने वाले अमीन सयाजीराव को आज उड़ा दिया गया था तोप से. पर चर्चा में चरखा रहा
1857 ने सिद्ध कर दिया था कि देश का कोई भाग ऐसा नहीं है, जहां स्वतन्त्रता की अभिलाषा न हो तथा लोग स्वाधीनता के लिए मर मिटने का तैयार न हों।
ये भारत के वो गुमनाम वीर हैं जिनके गुमनामी के दोषी अंग्रेजो से ज्यादा वो नकली कलमकार हैं जिन्होंने इतिहास को मात्र कुछ गिने चुने लोगों की जागीर बना कर सैकड़ो पन्नो की मोटी मोटी किताबे मात्र 2 या 3 लोगों के ऊपर ऐसे लिख डाली कि उनका इस देश की स्वतंत्रता में कोई योगदान ही न हो..
ये एक साजिश है देशवासियों के विरुद्ध उन्हें उनके सच्चे वीरों की स्मृति से दूर रख कर उनके बारे में सीमित रखने की जिसके बाद उन्हें क्रांति नही बल्कि वो अदृश्य शांति दिखे जो असल मे होती ही नही है .. उन साजिशों के शिकार हुए तमाम ज्ञात अज्ञात क्रांतिकारियों में से एक हैं आज ही अमरता को प्राप्त करने वाले अमीन सयाजीराव जी..
इनके बलिदान का भी कारण वो चाटुकार व गद्दार रहे जो आज भी अक्सर अपने उन्ही रूपों में दिख जाते हैं. 1857 ने सिद्ध कर दिया था कि देश का कोई भाग ऐसा नहीं है, जहां स्वतन्त्रता की अभिलाषा न हो तथा लोग स्वाधीनता के लिए मर मिटने का तैयार न हों।
मध्य प्रदेश में इंदौर और उसके आसपास का क्षेत्र मालवा कहलाता है। 1857 में यह पूरा क्षेत्र अंग्रेजों के विरुद्ध दहक रहा था। यहां का महिदपुर सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र था। इसलिए अंग्रेजों ने यहां छावनी की स्थापना की थी, जिसे 'यूनाइटेड मालवा कांटिनजेंट, महिदपुर हेडक्वार्टर' कहा जाता था।
इंदौर में नागरिकों ने जुलाई 1857 में जैसा उत्साह दिखाया था, उसका प्रभाव महिदपुर छावनी के सैनिकों पर भी साफ दिखाई देता था। वे एकांत में इस बारे में उग्र बातें करते रहते थे। यह देखकर अंग्रेजों ने बड़े अधिकारियों तथा अपने खास चमचों को सावधान कर दिया था।
वो चमचे जिनकी विचारधारा वालेकुछ लोग आज भी देश विरोधी बातें करते देखे जा सकते हैं.. छावनी में भारतीय सैनिकों के कमांडर शेख रहमत उल्ला तथा उज्जैन स्थित सिंधिया के सरसूबा आपतिया की सहानुभूति क्रांतिकारियों के साथ थी।
महिदपुर के अमीन सदाशिवराव की भूमिका भी इस बारे में उल्लेखनीय है। उन्होंने क्रांति के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों की भर्ती की तथा उन्हें हर प्रकार का सहयोग दिया। अंग्रेज चौकन्ने तो थे; पर उन्हें यह अनुमान नहीं था कि अंदर ही अंदर इतना भीषण लावा खौल रहा है।
8 नवम्बर, 1857 को निर्धारित योजनानुसार प्रातः 7.30 बजे दो हजार क्रांतिकारियों ने ऐरा सिंह के नेतृत्व में मारो-काटो का उद्घोष करते हुए महिदपुर छावनी पर हमला बोल दिया। इन सशस्त्र क्रांतिवीरों में उज्जैन व खाचरोद की ओर से आये मेवाती सैनिकों के साथ ही महिदपुर के नागरिक भी शामिल थे।
यह देखकर छावनी में तैनात देशप्रेमी सैनिक भी इनके साथ मिल गये। अंग्रेज अधिकारी सावधान तो थे ही, अतः भीषण युद्ध छिड़ गया; पर भारतीय सैनिकों का उत्साह अंग्रेजों पर भारी पड़ रहा था। कई घंटे के संग्राम में डा0 कैरी, लेफ्टिनेंट मिल्स, सार्जेण्ट मेजर ओ कॉनेल तथा मानसन मार डाले गये।
मेजर टिमनिस की पत्नी को उसके दर्जी ने अपनी झोंपड़ी में छिपा लिया, इससे उसकी जान बच गयी। इस युद्ध में भारतीय वीरों का पलड़ा भारी रहा। जो अंग्रेज अधिकारी बच गये, उन्हें इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होल्कर ने शरण देकर उनके भोजन तथा कपड़ों का प्रबन्ध किया।
परन्तु संगठन एवं कुशल नेतृत्व के अभाव, अधूरी योजना तथा समय से पूर्व ही विस्फोट हो जाने के कारण 1857 का यह स्वाधीनता संग्राम सफल नहीं हो सका। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने फिर से सभी छावनियों पर कब्जा कर लिया। जिन सैनिकों ने अत्यधिक उत्साह दिखाया था, उन्हें नौकरी से हटा दिया।
कुछ को जेलों में ठूंस दिया तथा बहुतों को फांसी पर लटकाकर पूरे देश में एक बार फिर से आतंक एवं भय का वातावरण बना दिया। महिदपुर के इस संघर्ष में यद्यपि जीत भारतीय पक्ष की हुई और अंग्रेजों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा; पर अंग्रेजो की तरह ही बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुए।
आगे चलकर इस युद्ध के लिए वातावरण बनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अमीन सयाजीराव भी गिरफ्तार कर लिये गये। अंग्रेजों ने उन्हें देशभक्ति का श्रेष्ठतम पुरस्कार देते हुए सात जनवरी, 1858 को तोप के सामने खड़ाकर गोला दाग दिया।
वीर अमीन सयाजीराव की देह एवं रक्त का कण-कण उस पावन मातृभूमि पर छितरा गया, जिसकी पूजा करने का उन्होंने व्रत लिया था। आज आज़ादी के उस शक्तिपुंज को उनके बलिदान दिवस पर बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है ..साथ ही सवाल करता है उन नकली कलमकारों से कि उन्होंने ऐसे शूरवीर को क्यों नही दिया इतिहास के पन्नो में उचित सम्मान व स्थान .
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