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26 मई- उधर पति बालमुकुन्द अत्याचारी ब्रिटिश अफसर हार्डिंग को मार कर चढ़ रहे थे फांसी, इधर आज ही सती हो गईं हमारी पूर्वजा माँ रामरखी देवी जी.. आज़ादी ऐसे ही नही आई

वे दिन भर पूजा-पाठ में लगी रहती थी. इस तरह कई महीने बीत गए. 8 मई 1915, को भाई बालमुकुंद और साथियों को फांसी दे दी गयी. फांसी वाले दिन से रामरखी ने अन्न-जल त्याग दिया था.

Sudarshan News
  • May 26 2020 12:00PM

ये माँ रामराखी कौन है इस से इन कलमकारों और तथाकथित धर्मनिरपेक्षो को कोई मतलब नहीं है . यहाँ रोहिंग्या की चर्चा हो सकती है , यहाँ पाकिस्तानियो को लाने की मांग हो सकती है लेकिन माँ रामरखी जी की नहीं जो सतीत्व की एक ऐसी निशानी हैं जिसे अगर सहेज कर रखा जाता तो पवित्रता का असल रूप दुनिया को पता चलता .. अफ़सोस की नकली कलमकारों और चाटुकार इतिहासकारों के चलते ऐसी महान हस्तियां जो हमारी पूर्वजा है उनसे हम अनजान हैं . सुदर्शन न्यूज बता रहा है वो सच जो जान कर आप गौरवान्वित होंगे और नमन कर्नेगे अपनी उस महान पूर्वजा पर जिनका नाम था माँ रामरखी ..

ज्ञात हो की दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब के बन्दीगृह में जब गुरु तेगबहादुर जी ने देश और हिन्दू धर्म की रक्षार्थ अपना शीश कटाया, तो उससे पूर्व उनके तीन अनुयायियों ने भी प्रसन्नतापूर्वक यह हौतात्मय व्रत स्वीकार किया था। वे थे भाई मतिदास, भाई सतीदास और भाई दयाला। इस कारण इतिहास में उन्हें और उनके वंशजों को नाम से पूर्व 'भाई' लगाकर सम्मानित किया जाता है। मुगल शासक औरंगजेब ने 1675 में, "गुरु तेगबहादुर" जी का शीश काटकर शहीद किया था. तब उसने उनसे पहले उनके तीन शिष्यों भाई मतिदास, भाई सतीदास और भाई दयाला जी को भी बुरी तरह से तड़पा तड़पा कर शहीद किया था. इन बलिदानियों के परिवार की, देश और धर्म के लिए बलिदान देने की परम्परा आगे भी चलती थी.

भाई मतिदास जी के एक वंशज, भाई बाल मुकुंद ने भी 8 मई, 1915 को अपने साथियों के साथ देश के लिए बलिदान दिया था. अंग्रेजो के शासनकाल में 23 दिसम्बर 1912, को चार क्रांतिवीरों ( भाई बालमुकुंद, अवधबिहारी, वसंत कुमार विश्वास तथा मास्टर अमीरचंद) ने दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर बम फेंका था. इस मामले में उन चारों को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा सुना दी गई. 8 मई, 1915 को चारों को फांसी पर चढ़ा दिया गया. ये गाथा है एक ऐसी सती महिला की जो उस घटना से जुडी हुई है और जिसने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए अपना बलिदान दिया था. भाई बालमुकुंद का विवाह कम आयु में ही, लाहौर की "रामरखी" से हो गया था.

उन दिनों विवाह कम आयु में हो जाते थे लेकिन गौना ( लड़की का ससुराल जाना ) कई साल बाद होता था. भाई बालमुकुंद और रामरखी का गौना होने से पहले ही, भाई बालमुकुंद जेल चले गए. जेल में रामरखी भी अपने परिवार वालों के साथ उनसे मिलने आई. रामरखी ने अपने पति बालमुकुंद से पूछा कि- वे क्या खाते हैं और कहां सोते हैं ? तब बालमुकुंद जी ने बताया कि - सोने के लिए उन्हें दो कम्बल मिले हुए हैं और भोजन केवल एक समय मिलता है. रामरखी ने उनसे अपनी रोटी दिखाने का आग्रह किया. रोटी दिखाने पर रामरखी ने उसका एक टुकडा तोड़कर अपने पल्लू से बाँध लिया. दिल्ली से लाहौर आने के बाद रामरखी ने भी अपने घर में, सभी सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया और केवल दो कम्बल ले लिए. वे घर की एक कोठरी में, कैदियों की तरह जमीन पर एक कम्बल बिछाने तथा एक कम्बल ओढकर सोने लगी. इसके अलावा जैसी रोटी का टुकडा वे जेल से लाइ थी बैसी ही मोटी रोटी ( वो भी केवल एक टाइम) खाने लगी. इस प्रकार उन्होंने अपने आपको अपने पति से आत्मसात कर लिया.

वे दिन भर पूजा-पाठ में लगी रहती थी. इस तरह कई महीने बीत गए. 8 मई 1915, को भाई बालमुकुंद और साथियों को फांसी दे दी गयी. फांसी वाले दिन से रामरखी ने अन्न-जल त्याग दिया. वे केवल पूजा में ही बैठी रहती. इस प्रकार की कठोर तपस्या में 17 दिन बीत गये. 26 मई को उन्होंने अपनी कोठरी की सफाई की, फिर स्नान किया और साफ वस्त्र पहने. उसके बाद अपने घर के सभी बड़ों को प्रणाम करने के बाद अपने स्थान पर लेट गईं. उन्होंने अपनी सांस को ऊपर चढ़ा लिया और उनकी आत्मा परमात्मा में समा गई. इस प्रकार रामरखी ने अपना नाम भारत की महान सती नारियों की परम्परा में लिखा लिया.यद्यपि गौना न होने के कारण वह अभी कुमारी अवस्था में ही थी; पर उसने जो किया, उससे भारत की समस्त नारी जगत गौरवान्वित है। आज उन देवीस्वरूपा पवित्रता हमारी पूर्वजा सती माँ के चरणों में उनके सतीत्व दिवस के दिन वंदन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है .

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