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8 मार्च- आज ही मेवाड़ की बलिदानी रानी कर्णावती जी ने किया था जौहर जिन्हें प्राण से ज्यादा प्रिय था धर्म. International Womens Day पर दुनिया में नारी शक्ति का सर्वोच्च समर्पण

आज हिन्दू नारी के शौर्य की प्रतीक रानी कर्णावती के बलिदान दिवस पर उनको बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है ..

Rahul Pandey
  • Mar 8 2021 2:09PM
आज पूरी दुनिया अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है लेकिन इस महिला दिवस में बहुत कम महिलाओं को आज के इतिहास के बारे में पता होगा. खैर women empowerment के इस सर्वोच्च प्रतीक के बारे में उन सबको पता भी कैसे हो जब कुछ बिकी कलम और दूषित सोच के लोगों ने वो सभी चीजे स्याही से पोत दी जो असल में थी और उन सब पर लिख डाला जो थी ही नहीं , तो ऐसे में आने वाली पीढ़ी का भटकना स्वाभाविक है ही .. 

चलिए जाते हैं आज women power का सबसे बड़े प्रतीक के बारे में.. आज बलिदान दिवस है प्राण से प्यारा धर्म रखने वाली रानी कर्णावती जी का जो मेवाड़ की रानी थी .. रानी कर्णावती कौन थी? अक्सर यह प्रश्न रानी कर्णावती की जीवनी, और रानी कर्णावती का इतिहास के बारे मे रूची रखने वालो के मस्तिष्क मे जरूर आता है। 

रानी कर्णावती जिन्हें एक और नाम रानी कर्मवती के नाम से भी जाना जाता है। रानी कर्णावती मेवाड़ के राजा राणा संग्राम सिंह की पत्नी थी। जिन्हें राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है। उनके विवाहिक जीवन का इतिहास, शौर्य, साहस, वीरता, पराक्रम से भरा है। 

यही राणा सांगा थे जिन्होंने बाबर और हुमायु को हिन्दुओं के साम्राज्य से सदा दूर रखा था . एक वो रानी जिसने अपने ससुराल में कदम रखते ही युद्ध और वीरगातियो के कई उदहारण अपनी आँखों के आगे देखे थे . लेकिन वो उनको मजबूत बनाता चला गया अपनी मातृभूमि के लिए और अपने धर्म के लिए . 

उन्होंने विधर्मियो के सभी साजिशों और दांव पेंच को समझ और जान लिया था. राजस्थान में मेवाड़ नामक एक प्रसिद्ध स्थल है, जहां कभी राणा संग्राम सिंह राज्य करते थे। कुछ हिन्दू राजाऔं को उनका संरक्षण भी प्राप्त था। उनके संरक्षण में हिन्दू राजा अपने को सुरक्षित समझते थे।

राणा संग्राम सिंह के अंतर्गत सात बड़े राजा थे। वे सभी राणा के अधीन माने जाते थे। राणाजी भारतवर्ष में हिन्दू राज्य स्थापित करना चहाते थे। इसी के चलते इतिहासकारों ने उन्हें सम्मानित किया। सम्मान में उन्हें 'हिन्दूपत 'की उपाधि प्रदान की गई थी। राणा संग्राम सिंह की पत्नी का नाम रानी कर्मवती (कर्णावती) था। 

रानी कर्मवती एक राजनीतीज्ञ थी, वे राजनीति में माहिर थी। समय के साथ रानी कर्णावती के दो पुत्र हुए थे। एक का नाम राजकुमार रतन सिंह तथा दूसरे का नाम राजकुमार विक्रमजीत था।

राजस्थान की महिलाएं युद्ध कला में दक्ष थी। उन्ही महिलाओं में एक रानी कर्मवती भी थी। जो बडी सहासी थी। उनके दिल में अपार धेर्य था। उनकी सूझबूझ का कोई जवाब नहीं था। एक दिन ऐसा आया, जब समय के क्रूर हाथों ने राणा सांगा को रानी से हमेशा हमेशा के लिए छीन लिया। 

30 जनवरी 1528 को संग्राम सिंह दुनिया से चल बसे। दुख की इस घडी मे रानी ने साहस से काम लिया। और उन्होंने जिंदगी से हार नहीं मानी क्योंकि हालात से लड़ना उन्होंने जन्म से ही सीखा था . बल्कि इस दुखद समय का डटकर मुकाबला किया। रानी कर्मवती उन महिलाओं में से नही थी, जो संकट के समय घबरा जाती है। 

राणा सांगा के गुजर जाने के बाद राजकुमार विक्रमजीत राजगद्दी पर बैठा। मेवाड राज्य कठिनाई के दौर से गुजरने लगा। वहां कलह का माहौल बन गया था। वहां की जनता मे वो एकता नही रही, जो राणा संग्राम सिंह के जीवित रहने तक थी। 

यद्दपि हिन्दुओ की यही आपसी कलह अक्सर उनके पतन का कारण भी बनी थी जो इतिहास में कई जगह साबित भी हुई थी . उस समय गुजरात का बादशाह बहादुर शाह था। उसे मेवाड़ की कमजोरी का पता चला। अब तो मेवाड की सैन्य शक्ति भी कमजोर हो गई थी। बहादुरशाह ने वहां की कमजोरी का फायदा उठाया। 

यह उसके लिए सुनहरा मौका था। मौका मिलते ही उसने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। उसकी नजर न सिर्फ हिन्दू राज्य की धन सम्पत्ति पर थी बल्कि वो कामुक और वासना में लिप्त रहने वाला भी हवसी प्रवित्ति का शासक था .. उसके हमले में हिन्दू नारियो के शील भंग की भी कुचेष्ठा थी .

मेवाड़ की परिस्थिति बडी विकट हो गई, ऐसी दशा में राजमाता ने अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया। भारत की राजनीति उनकी रग रग में समाई हुई थी। वे राजनीतिक स्थिति से अच्छी तरह अवगत थी। राजमाता ने मेवाड़ के जागीरदारों और सूरवीर सामंतों को एकत्र किया। 

राजमाता ने उन्हें भारत मां की रक्षा करने के लिए कहा। उन्हें जी जान से तैयार रहने को कहा। राजमाता ने मेवाड़ के सामंतों का आह्वान करते हुए कहा था कि -

"चित्तौड़ का किला किसी राजा का नही है। किसी रानी का भी नही है। वह किला हम सबका है। हम सब की मान मर्यादा का प्रतीक है।अकेला राजा उसकी रक्षा नही कर सकता। अकेली रानी उसकी रक्षा नही कर सकती। हे वीर सपूतो! जागो! सब एक जुट होकर आगे आओ। 

आगे कहा कि किले की रक्षा के लिए अपना सहयोग दो। वह किला हमारी धरोहर है। उसे हाथ से मत जाने दो। उसकी रक्षा करो! उसकी रक्षा करो!"। वह दिन दूर नही, जब हम पर विपत्ति पडेगी, इसलिए अभी से अपनी कमर कस लो। याद करो अपने पूर्वजों को, जिन्होंने अपना बलिदान देकर किले की रक्षा की है। किले को सुरक्षित रखा है। 

फिर आह्वान किया कि हे! देशवासियों आज तुम्हारा कर्तव्य बनता है, कि तुम उसकी रक्षा करो। उसे दुश्मन के हाथ से बचाओ!"।"राजमाता ने उन्हें एकजुट करने का प्रयास किया। जो उनके पुत्र विक्रमजीत के कारण राजपूत अलग थलग हो गए थे। राजमाता ने उन्हें एक सूत्र मे बांधने की पुरजोर कोशिश की। 

अपनी ओजस्वी भाषा से मवाड की इस पराक्रमी रानी कर्णवती ने राजपूतों को ललकारते हुए कहा- "बहादुर राजपूतों! युद्ध तुम्हारे सामने है। तुम्हें मैदान मे आना है। केसरिया चोला पहनकर आना है। दुश्मन का सामना करना है। हर मां चाहती है उसका बेटा विजयी हो। 

हम सब भी उसी मां के बेटे है, जिसने हमें अपने दूध की ताकत से इतना बडा किया है। हमें अपनी मां के दूध की लाज बचानी है। युद्ध में विजयी होना है"। मेवाड़ की सेना मुठ्ठी भर थी। बहादुरशाह के साथ विशाल सेना थी। मुठ्ठी भर सेना, विशाल सेना का मुकाबला थोडी देर तक ही कर पाई।

मैदान मे खून की धारा बहने लगी। मेवाड़ के शूरवीर अपने प्राणों की बलि देने लगे। मेवाड़ की सेना अपने प्राणों की आहुति दे चुकी थी। राजमाता सेना के आभाव मे अकेली हो गई। समय का चक्र चलता रहा। पूरा मेवाड़ युद्घ मे तहस नहस हो गया। 

लेकिन जब तक अंतिम हिन्दू सैनिक जीवित था तब तक उसने घुटने नहीं टेके और वो लड़ता रहा . नीच बहादुरशाह की नीयति को जानते हुए अब रानी के पास राज्य के अलावा अपने सतीत्व की रक्षा भी करनी थी . उनके साथ उन तमाम महिलाओं को भी जिनके पति , पिता और भाई उस युद्ध में बलिदान हो गये थे . 

वो तमाम वीरांगनाये और खुद रानी कर्णावती अग्नि को समर्पित हो गई। वे दुश्मन के हाथो मरना नही चाहती थी, अन्य राजपूत महिलाओं ने भी अपने को अग्नि की ज्वाला मे समर्पित कर दिया। वे अपने महलो से बाहर नहीं निकली अंदर ही अंदर जलकर राख हो गई। 

रानी कर्णावती के जौहर की वो तारीख आज ही अर्थात 8 मार्च की थी और वर्ष था 1535 का . लेकिन इस महान बलिदान की चर्चा बहादुरशाह के विचारधारा वालों ने कभी नहीं की . आज हिन्दू नारी के शौर्य की प्रतीक रानी कर्णावती के बलिदान दिवस पर उनको बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है ..

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