आज पानीपत युद्ध का शौर्य दिवस है. धर्म और अधर्म की इस लड़ाई में धर्म ने अपनी रक्षा के बदले माँगा था बलिदान और ये बलिदान हिन्दू समाज के मराठा वीरों ने दिया था. छत्रपति शिवाजी महराज के साथ उन सभी वीरों के स्मरण की जरूरत है जिनके नाम का डंका किसी क्षेत्र या वर्ग में नहीं पूरे भारत में बजा था ..
हर वो वीर भारत भूमि की थाती है जिसने धर्म ध्वजा उठा कर विधर्म के खिलाफ आवाज उठायी और आपने शौर्य के साथ अभूतपूर्व पराक्रम का परिचय दूर देशों से आये उन विधर्मियो को दिया जो भारत में विधर्म की स्थापना के उद्देश्य और लूट मार करने ही आये थे ..
उन सभी ज्ञात अज्ञात वीरों में से एक नाम है सदाशिव राव भाऊ जी. इस नाम का वो वीर महाराष्ट्र की पावन भूमि से जन्मा था जिसने विधर्म कोई ललकार पर वहां से हजारों मील दूर पानीपत में जा कर विधर्मी की चुनौती स्वीकार किया था और अपने रक्त से वीरता और पराक्रम की अमर गाथा लिख डाली थी ..
सदाशिव राव भाऊ जी पेशवा के बलिदान के बाद ही अब्दाली के पाँव हिलने शुरू हो गए थे और उसने अपनी मरी हुई अंतरात्मा में ये मान लिया था की भारत भूमि को जीतना इतना आसान नहीं जितना वो समझ रहा था.. महावीर का सदाशिवराव भाऊ महान योद्धा पेशवा बालाजी बाजीराव के चचेरे भाई थे .. अपने शासन प्रशासन में बेहद निपुण व् कुशल होने के कारण मराठा साम्राज्य का समस्त शासन भार पेशवा ने उन्ही पर छोड़ दिया था.
सदाशिवराव की व्यूह रचना ऐसी हुआ करती थी जिस से सीख ले कर यूरोपीय शासकों ने अपनी सेना और व्यूह रचना करनी शुरू कर दी थी . इनके पास सैन्य बल के अतिरिक्त एक विशाल तोपख़ाना भी था।इस महायोद्धा का इतिहास उस तथाकथित मजहबी ठेकदार को भी याद रखने की जरूरत है जो आये दिन किसी ना किसी को हैदराबाद आने की चुनौती दिया करता है .
क्योंकि इस महावीर के नाम अपनी इसी सैन्य शक्ति व् अपने पराक्रम के बलबूते हैदराबाद के निज़ाम सलावतजंग को भी उदयगिरि के प्रसिद्ध युद्ध में हारने का गौरव प्राप्त है . इस युद्ध में हैदराबाद का वो निज़ाम घुटनो के बल बैठ गया था इन योद्धाओ का पराक्रम देख कर.
इस विजय से बिना प्रफुल्लित हुए उन्होंने धर्म की सत्ता को पंजाब प्रांत में ललकार रहे अहमदशाह अब्दाली को धर्म सिखाने की जिम्मेदारी ली और कूच कर दिया हजारों मील दूर पानीपत में .. हिन्दुओं की फूट वहां एक बार फिर दुष्परिणाम दिखाई और ये महायोद्धा एक बेहद गौरवशाली वीरगति पाया जबकि उसके युद्ध को देख कर अहमदशाह अब्दाली ने एक बार मैदान छोड़ कर भागने का फैसला कर लिया था.
अहमदशाह अब्दाली की वो तथाकथित जीत का श्रेय कतई उसके युद्ध कौशल को नहीं अपितु हिन्दुओं की आपस में कुछ कारणों से पड़ी फूट को जाता है जिसमे सब सामूहिक रूप से युद्ध नहीं लड़ सके ..एक लम्बे सफर और तत्काल हैदराबाद के निज़ाम से लड़े गए युद्ध के बाद तत्काल नए युद्ध के चलते थोड़ी युद्ध नीति में भी बदलाव हुआ जो बाद में घातक साबित हुआ.
इतिहास से अब तक हिन्दुओ के इसी बिखराव में खुद आगे बढ़ कर शत्रु दल पर हमला कर के तहस नहस कर देने वाला ये महापराक्रमी योद्धा शत्रु विधर्मी अब्दाली के हमले का इंतज़ार करता रहा जिसका परिणाम अंत में नकारात्मक ही रहा .. आखिर में अपने बाहुबल का अद्वितीय शौर्य दिखाते हुए विधर्म से लड़ता ये महायोद्धा सदाशिव राव भाऊ पानीपत के मैदान में वीरगति पाया जिसने अपनी वीरता को अमरता में बदल दिया..
जुड़े रहिये आज रात 8 बजे बिंदास बोल में हमारे साथ जब हम विस्तार से दिखायेगे पानीपत के एक एक वीर का सच्चा इतिहास जिसको साजिश कर के वामपंथी तत्वों ने महज इसलिए दबवा दिया था, जिस से हिन्दू समाज क्षेत्रवाद , भाषावाद में बंटा रहे..