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28 सितंबर: जन्मजयंती स्वतंत्रता के असल हकदार, पापी अंग्रेजो के काल, युवाओं के शौर्यपुंज, क्रांतिवीर भगत सिंह जी

वो परम बलिदानी जिसने अपनी जिंदगी ही नहीं बल्कि अपने बलिदान से उन झूठे गानों को गाली के समान घोषित कर दिया.

Rahul Pandey
  • Sep 28 2020 12:27PM
घोड़ी चढ़ दुल्हन लाते सभी , सूली चढ़ आजादी लाये कोई …. वो परम बलिदानी जिसने अपनी जिंदगी ही नहीं बल्कि अपने बलिदान से उन झूठे गानों को गाली के समान घोषित कर दिया जिसमे दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल कहा जाता हो . वो परम बलिदानी जिसके नाम से ही ब्रिटिश सत्ता काँप जाया करती थी बलिदान के उस महकाया का आज जन्म दिवस है जिसको भारत की आज़ादी का सबसे बड़ा क्रांतिदूत माना जाता है … 

उस भगत सिंह जी का जन्म दिवस है जिसको आज़ादी के झूठे ठेकेदारों ने जितना भी भुलाने का प्रयास किया वो नाम उतना ही लोगो की जुबान पर आता गया और भगत सिंह के तेज से झूठों का मुह काला होता गया. अमर बलिदानी भगत सिंह का जन्म  आज ही के दिन अर्थात 27 सितंबर 1907 को लायलपुर, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में सिख परिवार में हुआ था, भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था, इनकी माँ का नाम विद्यावती कौर था। 

भगत सिंह जी के जन्म दिन को कुछ लोगों ने 28 सितम्बर भी घोषित केवल इसलिए कर रखा है जिस से उस अमरता के सर्वोच्च पुंज को मानने वाले कहीं ना कहीं संदेश में रहें. वीर भगत सिंह सिंह, भारत के महान क्रांतिकारियों में से एक थे, भगत सिंह आज भी युवाओं के आदर्श हैं, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच को बहुत ज्यादा प्रभावित किया था.

 जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के समय भगत सिंह 12 साल के थे, इस हत्याकांड की खबर मिलते हीं वे अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए थे, वे 14 वर्ष की आयु से ही क्रान्तिकारी समूहों से जुड़ने लगे थे। D.A.V. स्कूल से उन्होंने 9वीं की परीक्षा पास की, लाला लाजपत राय द्वारा लाहौर स्थापित में नेशनल कॉलेज में भगतसिंह ने भी अपना नाम लिखवा लिया.

वर्ष 1923 में उन्होंने इंटर की परीक्षा पास की, कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी, असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर भगतसिंह भी असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे, लेकिन असहयोग आन्दोलन को रद्द कर देने के कारण भगत सिंह ने क्रांति का रास्ता अपना लिया। ये वही अमर बलिदानी हैं जिन्हें आज़ादी के ठेकेदारों ने बिना उफ़ किये फांसी पर झूल जाने दिया था.

काकोरी काण्ड में 4 क्रान्तिकारियों की फाँसी और व 16 क्रान्तिकारियों को जेल की सजा ने भगत सिंह के अंदर अंग्रेजों के प्रति और गुस्सा भर दिया, उसके बाद वे चन्द्रशेखर आजाद की पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गए और दोनों ने मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया, 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार जुलुस के दौरान अंग्रेजों ने लाठी चार्ज किया, इस लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय जी बलिदान हो गये थे. 

लाला लाजपत राय जी के बलिदान का बदला लेने के लिए, भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सांडर्स को गोली मार दी, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को बम और पर्चे फेंके थे, बम धमाकों के लिए उन्होंने वीर सावरकर के संगठन अभिनव भारत की भी सहायता ली थी। बम फेकने के बाद वे लोग भागे नहीं।

जेल में भगत सिंह लगभग २ वर्ष रहे, इस दौरान वे लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे, जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिन तक भूख हड़ताल की थी, भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों पर ‘लाहौर षड़यंत्र’ का मुक़दमा भी जेल में रहते ही चला, 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दे दी गई। 

फाँसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु मस्ती से गा रहे थे – “मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे; मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।” इन तीनों की फाँसी के बाद कोई आंदोलन न भड़क जाए इसलिए अंग्रेजों ने पहले इनके शव के टुकड़े करके बोरियों में भरवा कर फिरोजपुर के पास मिट्टी का तेल डालकर जलाया जाने लगा, गाँव वालों ने आग जलती देखी तो, अंग्रेजों ने जलती लाश को सतलुज नदी में फेंक दिया, बाद में गाँव वालों ने शव के टुकड़े एकत्रित करके उनका दाह संस्कार किया।

वीरता के उस शौर्यपुंज , अमरता के उस महाकाया को , भारत की आज़ादी के उस असली हकदार भगत सिंह जी को आज उनके पावन जन्म दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन , वंदन और अभिनन्दन करता है और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.

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