जहाँ आज भारत के जांबाज़ सैनिको ने पाकिस्तान को उसके घर में घुस कर औकात बता दी है और देश को गौरवान्वित किया है वही आज भारत के उस महान सपूत की जयंती है जिन्होंने अपने जीवन को राष्ट्रप्रेम और धर्मरक्षा में लगा दिया था . तथाकथित सेकुलरिज्म की आंधी में अगर हिन्दू , हिंदुत्व , भगवा जैसे शब्द बचे रहे , तो उसमे वीर सावरकर जी का बहुत बड़ा योगदान था जिसको आज तक स्वीकार भी किया जाता है . लेकिन उनसे जुड़े तमाम सच को झूठ बना कर पेश किया जाता रहा .
विदित हो कि विदेशी धरती पर विदेशी आक्रान्ता पर हुए उस वार को भी एक प्रकार की सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा सकता है जिसमे सावरकर जी को अपना गुरु मानने वाले क्रांतिकारी मदनलाल धींगरा ने लन्दन में जा कर क्रूर अंग्रेज अफसर कर्जन वाईली को ढेर कर दिया था . कर्जन वाईली को जहाँ मारा गया था वो स्थान ब्रिटेन के अतिसुरक्षित स्थलों में से एक था लेकिन उस स्थल को भी भेद गये थे भारत के वो लाल जिनको नहीं मिला इतिहास में स्थान.
यदि मदनलाल धींगरा को इतिहास में स्थान दिया जाता तो पहले तो स्वघोषित अहिंसा के सिद्धांत झूठे साबित होते .. इतना ही नहीं मदनलाल धींगरा की चर्चा बिना वीर सावरकर जी के सदा ही अधूरी रहती . बी.ए. करने के बाद मदनलाल को उन्होंने लन्दन भेज दिया। वहाँ उसे क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित ‘इण्डिया हाउस’ में एक कमरा मिल गया। उन दिनों विनायक दामोदर सावरकर भी वहीं थे। 10 मई, 1908 को इण्डिया हाउस में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अर्द्धशताब्दी मनायी गयी। उसमें बलिदानी वीरों को श्रद्धा॰जलि दी गयी तथा सभी को स्वाधीनता के बैज भेंट दिये गये। सावरकर जी के भाषण ने मदनलाल के मन में हलचल मचा दी।
अगले दिन बैज लगाकर वह जब क१लिज गया, तो अंग्रेज छात्र मारपीट करने लगे। ढींगरा का मन बदले की आग में जल उठा। उसने वापस आकर सावरकर जी को सब बताया। उन्होंने पूछा, क्या तुम कुछ कष्ट उठा सकते हो ? मदनलाल ने अपना हाथ मेज पर रख दिया। सावरकर के हाथ में एक सूजा था। उन्होंने वह उसके हाथ पर दे मारा। सूजा एक क्षण में पार हो गया; पर मदनलाल ने उफ तक नहीं की। सावरकर ने उसे गले लगा लिया। फिर तो दोनों में ऐसा प्रेम हुआ कि राग-रंग में डूबे रहने वाले मदनलाल का जीवन बदल गया।
सावरकर की योजना से मदनलाल ‘इण्डिया हाउस’ छोड़कर एक अंग्रेज परिवार में रहने लगे। उन्होंने अंग्रेजों से मित्रता बढ़ायी; पर गुप्त रूप से वह शस्त्र संग्रह, उनका अभ्यास तथा शस्त्रों को भारत भेजने के काम में सावरकर जी के साथ लगे रहे। ब्रिटेन में भारत सचिव का सहायक कर्जन वायली था। वह विदेशों में चल रही भारतीय स्वतन्त्रता की गतिविधियों को कुचलने में स्वयं को गौरवान्वित समझता था। मदनलाल को उसे मारने का काम सौंपा गया।
मदनलाल ने एक कोल्ट रिवाल्वर तथा एक फ्रैच पिस्तौल खरीद ली। वह अंग्रेज समर्थक संस्था ‘इण्डियन नेशनल एसोसिएशन’ का सदस्य बन गया। एक जुलाई, 1909 को इस संस्था के वार्षिकोत्सव में कर्जन वायली मुख्य अतिथि था। मदनलाल भी सूट और टाई में सजकर म॰च के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये। उनकी जेब में पिस्तौल, रिवाल्वर तथा दो चाकू थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही मदनलाल ने मच के पास जाकर कर्जन वायली के सीने और चेहरे पर गोलियाँ दाग दीं। वह नीचे गिर गया। मदनलाल को पकड़ लिया गया। 5 जुलाई को इस हत्या की निन्दा में एक सभा हुई; पर सावरकर ने वहाँ निन्दा प्रस्ताव पारित नहीं होने दिया। उन्हें देखकर लोग भय से भाग खड़े हुए। ये वो सर्जिकल स्ट्राइक के जैसा ही था जो इतिहास में हमारे गौरवशाली पूर्वज करते आये हैं लेकिन न जाने किस सोच से ग्रसित कुछ कलमकारों ने उसको विकृत किया , वो भी विदेशियों को खुश करने के चक्कर में .