भले ही चरखा चलता रहा लेकिन उधर लहू निकलता रहा ..उन तमाम असंख्य वीरो में से एक थे क्रान्तिवीर राम प्रसाद बिस्मिल जिनका आज जन्मदिवस है .. ये पावन दिन शायद आज़ादी के नकली ठेकेदारों के लिए खास मायने नहीं रखता है लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल को फाँसी शताब्दियों की पराधीनता के बाद भारत के क्षितिज पर स्वतंत्रता का जो सूर्य चमका, वह अप्रतिम था। इस सूर्य की लालिमा में उन असंख्य देशभक्तों का लहू भी शामिल था, जिन्होंने अपना सर्वस्व क्रान्ति की बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया। इन देशभक्तों में रामप्रसाद बिस्मिल का नाम अग्रगण्य है। संगठनकर्ता, शायर और क्रान्तिकारी के रूप में बिस्मिल का योगदान अतुलनीय है। ‘काकोरी केस’ में बिस्मिल को दोषी पाकर फिरंगियों ने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया था। इनका बलिदान ऐसी गाथा है, जिसे कोई भी देशभक्त नागरिक गर्व से बार-बार पढ़ना चाहेगा। इन्हें स्मरण करते समय रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ मन में गूँजती रहती हैंदृ सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू ए क़ातिल में है।
प्रिवी कौन्सिल से अपील रद्द होने के बाद फाँसी की नई तिथि १९ दिसम्बर १९२७ की सूचना गोरखपुर जेल में बिस्मिल को दे दी गयी थी किन्तु वे इससे जरा भी विचलित नहीं हुए और बड़े ही निश्चिन्त भाव से अपनी आत्मकथा, जिसे उन्होंने निज जीवन की एक छटा नाम दिया था,पूरी करने में दिन-रात डटे रहे,एक क्षण को भी न सुस्ताये और न सोये। उन्हें यह पूर्वाभास हो गया था कि बेरहम और बेहया ब्रिटिश सरकार उन्हें पूरी तरह से मिटा कर ही दम लेगी तभी तो उन्होंने आत्मकथा में एक जगह यह शेर लिखा था –
“क्या हि लज्जत है कि रग-रग से ये आती है सदा,… दम न ले तलवार जब तक जान ‘बिस्मिल’ में रहे।”
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा भी,और उनकी यह तड़प भी थी कि कहीं से कोई उन्हें एक रिवॉल्वर जेल में भेज देता तो फिर सारी दुनिया यह देखती कि वे क्या-क्या करते? बिस्मिलजी का जीवन इतना पवित्र था कि जेल के सभी कर्मचारी उनकी बड़ी इज्जत करते थे ऐसी स्थिति में यदि वे अपने लेख व कवितायें जेल से बाहर भेजते भी रहे हों तो उन्हें इसकी सुविधा अवश्य ही जेल के उन कर्मचारियों ने उपलब्ध करायी होगी,इसमें सन्देह करने की कोई गुन्जाइश नहीँ। अब यह आत्मकथा किसके पास पहले पहुँची और किसके पास बाद में, इस पर बहस करना व्यर्थ होगा..
बिस्मिल के जीवन में ११ का अंक बड़ा ही महत्वपूर्ण रहा। ११ जून १८९७ को दोपहर ११ बजकर ११ मिनट पर उनका जन्म हुआ। संयोग से उस दिन भारतीय तिथि ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी थी जिसे हिन्दू पंचांग में निर्जला एकादशी भी कहा जाता है। उनकी मृत्यु जो कि एक दम अस्वाभाविक योग के कारण फाँसी के फन्दे पर झूल जाने से हुई थी वह तिथि भी भारतीय पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी ही थी जिसे सुफला एकादशी भी कहते हैं। देखा जाये तो उनके जीवन का एक-एक क्षण परमात्मा के द्वारा पूर्व-निश्चित था, उसी के अनुसार समस्त घटनायें घटित हुईं। उन्होंने १९ वर्ष की आयु में क्रान्ति के कण्टकाकीर्ण मार्ग में प्रवेश किया और ३० वर्ष की आयु में कीर्तिशेष होने तक अपने जीवन के मूल्यवान ११ वर्ष देश को स्वतन्त्र कराने में लगा दिये। अपने जीवन को पल पल आग में तपा कर राष्ट्र को आज़ादी दिलाने वाले महायोद्धा , अमर बलिदानी राम प्रसाद बिस्मिल जी को उनके जन्मदिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है .