ऐसे बहुत कम लोग हैं,
जो देश का नाम करते हैं
इसीलिए हम,
"लाल बहादुर शास्त्री जी" का सम्मान करते हैं...
देश के दूसरे प्रधानमंत्री 'लाल बहादुर शास्त्री' जी का आज जन्मदिन है। वही शास्त्री जी जिन्होंने अकाल के समय लोगो को व्रत रखने का आव्हान भी किया और लड़ाई के समय पकिस्तान को धूल भी चटाई। लेकिन आज कल के परिवेश में ऐसा लगता है जैसे भारत के ऐसे महानतम व्यक्ति को देशवासियो ने अपनी स्मृति से विस्मृत कर दिया है। इसीलिए देश के महानतम इंसान को याद करके, आज देश के दूसरे प्रधानमंत्री 'लाल बहादुर शास्त्री' जी के बारे में यहाँ जानिये...
शास्त्री जी का बचपन
श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं। उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता। उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। घर पर सब उन्हें नन्हे के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।
जब रेल दुर्घटना के कारण शास्त्री जी ने दिया था रेल मंत्री के पद से इस्तीफा
एक रेल दुर्घटना, जिसमें कई लोग मारे गए थे, के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा; “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”
जब शास्त्री ने अपना वेतन लेना कर दिया था बंद
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश में अन्न की कमी हो गई। देश भुखमरी की समस्या से गुजरने लगा था। इस संकट के समय में लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी तनख्वाह लेनी बंद कर दी और उन्होंने देश के लोगों से अपील की कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक्त व्रत रखें। उनकी अपील को अच्छी प्रतिक्रिया मिली और सोमवार शाम को भोजनालयों ने शटर बंद कर दिए और जल्द ही लोगों ने इसे 'शास्त्री व्रत' कहना शुरू कर दिया।
जब पाकिस्तान को ललकारा था
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरांन ही वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय सेना के जवानों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए जय जवान जय किसान का नारा दिया और उनका ये नारा आज भी बहुत प्रचलित है | श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की सूझबूझ से ही पाकिस्तान भारत से वर्ष 1965 में युद्ध हार गया था जो कि सोचता था कि वर्ष 1962 में मिली चीन की हार से भारत कमजोर हो गया होगा | शास्त्री जी ने पाकिस्तान से युद्ध के बाद देश में हो रही अनाज की कमी और अमेरिका द्वारा भारत को अनाज ना देने की धमकी के बाद सभी देशवासियों से हफ्ते में 1 दिन का खाना 1 वक्त के लिए छोड़ने की अपील की थी
आज भी अनसुलझी है शास्त्री जी की मौत की 'मिस्ट्री'
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हुई आकस्मिक मृत्यु आजतक एक रहस्य है जहाँ वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के साथ ताशकंद शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने गये थे | जहाँ एक ओर उनकी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया वही उनके परिवार वाले उनकी जहर देकर हत्या करने की बात कहते है जो कि आज तक अनसुलझा है |