यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥4-7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4-8॥
मैं अवतार लेता हूं. मैं प्रकट होता हूं. जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों का विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं.
श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोक जीवन के सार और सत्य को बताता है. निराशा के घने बादलों के बीच ज्ञान की एक रोशनी की तरह है यह श्लोक. यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के प्रमुख श्लोकों में से एक है जिसके माध्यम से धर्मरक्षक योगेश्वर भगवान हमें धर्मपथ पर चलते हुए, ईश्वर का स्मरण करते हुए कर्म करते रहने का संदेश देते हैं. आज उन्हीं योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है.
जन्मदिवस पर नमन है उन योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण को जिन्होंने कभी माखन चुराकर, कभी रास रचाकर, कभी बंशी बजाकर, कभी चीर बढ़ाकर, कभी सुदर्शन चक्र चलाकर, कभी रणछोड़ बनकर तो कभी गीता का ज्ञान देकर धर्म की स्थापना की. जन्मदिवस पर नमन है उन योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण को जिन्होंने हमें ये भी संदेश दिया कि अगर हमारे अपने भी अधर्म, अनीति व अन्याय के पथ पर हों तो उनका भी एक समय पर प्रतिकार करना चाहिए. अगर तुम धर्मपथ पर चलते हुए ऐसा करोगे तो मैं तुम्हारा साथ दूंगा.
आजयोगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव, जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है, को देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर के धर्मनिष्ठ लोग पूरे धूमधाम से मना रहे हैं. गाँव गाँव गली गली में श्रीकृष्ण की झांकिया सजी हुई हैं तथा धर्मावलंबी अपने आराध्य रणछोड़दास को, अपने कान्हा को याद कर रहे हैं, उन्हें नमन वंदन कर रहे हैं.
सुदर्शन परिवार संसार के धर्मनिष्ठों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई तथा मंगलकामनाएं देता है तथा ये संकल्प लेता है कि हम श्रीकृष्ण को ह्रदय में धारण कर धर्म की रक्षा के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहेंगे.