पंजाब में हो रही सियासी हलचल ने अब ऐसा रुख अख्तियार कर लिया,जिसको लेकर कांग्रेस के आलाकमानों को खासी दिक्क्त होने लगी होगी। पंजाब के पूर्व 'कप्तान' अब कांग्रेस का हाथ छोड़ रहे है। अमरिंदर के खिलाफ लगातार होती सियासत ने 'कैप्टन' को वो करने पर मज़बूर कर दिया जो शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा।
कई महीनो पहले, एक कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया था कि राजनीती से रिटायर होने का उनका क्या इरादा है, तब उस सवाल का हर्षपूर्ण जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि अभी तो उनमे सियासत बाकी है। लेकिन उस समय अमरिंदर को शायद ये नहीं पता होगा कि कुछ ही दिन बाद में उन्हें अपनी पार्टी का साथ भी छोड़ना पड़ेगा।
दरअसल, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पिछले तीन दिनों से दिल्ली में सक्रिय हैं। इससे पंजाब की सियासत में हलचल बढ़ गई है। कैप्टन अमरिंदर ने बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की।
कैप्टन की दिल्ली में सक्रियता से पंजाब में उनके अगले कदम को लेकर कयासबाजी तेज हो गई है। उधर, कुछ टीवी चैनलों के अनुसार, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह कांग्रेस छोड़ देंगे। बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल्ली एयरपोर्ट से चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए हैं।
एक टीवी चैनल और समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उन्होंने (कांग्रेस नेतृत्व) ने मुझ़े अपमानित किया। मैं कांग्रेस छोड़ दूंगा। उन्होंने कहा कि अब अपमान सहन नहीं होता है।इसके बाद ही अब इस बात पर उन्होंने मुहर लगा दी है कि वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे लेकिन आगे कांग्रेस में भी रहने का इरादा नहीं है. वरिष्ठ नेताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है और उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है. वरिष्ठ नेताओं को पूरी तरह दरकिनार करने से कांग्रेस का पतन हो रहा है. कैप्टन ने आगे के रुख को लेकर कहा कि अभी भी इस पर विचार जारी है.
'कैप्टन का सियासी सफर'
अपने विरोधियों को कमजोर करके साइड लाइन करने में माहिर कैप्टन अमरिंदर सिंह 52 साल के राजनीतिक सफर में पहली बार खुद ही हार गए। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही कई कमजोरियां रहीं, जिनको मुद्दा बनाकर विरोधियों ने उनकी कुर्सी पर संकट खड़ा करने की पटकथा तैयार की।
राजीव गांधी के करीबी दोस्त रह चुके हैं अमरिंदर
दिवंगत राजीव गांधी के करीबी दोस्त माने जाने वाले सिंह का राजनीतिक कॅरियर जनवरी 1980 में सांसद चुने जाने के साथ शुरू हुआ. लेकिन उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश के खिलाफ लोकसभा और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.
अगस्त 1985 में वह अकाली दल में शामिल हो गए और 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर राज्य विधानसभा में पहुंचे. कांग्रेस में वापसी के बाद वह पहली बार 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे थे और इस दौरान उनकी सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से पंजाब के जल बंटवारा समझौते को समाप्त करने वाला राज्य का कानून पारित किया.पिछले साल उनकी सरकार संसद से पारित केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में चार विधेयक लाई, जिन्हें बाद में पारित कर दिया गया.
1980 में शुरू किया राजनीतिक करियर
कैप्टन ने पहली बार 1980 में कांग्रेस का दामन थामा था। वर्ष 1980 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद कैप्टन ने वर्ष 1984 में कांग्रेस छोड़कर अकाली दल का दामन थाम दिया। अकाली दल में वह राज्यसभा सदस्य रहे। बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्ष 1999 से 2002 तक पंजाब कांग्रेस के प्रधान रहे। इसके बाद वह 2002 से 2007 तक पंजाब के सीएम रहे।
वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा। राज्य में लगातार दो बार अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन वर्ष 2014 में कैप्टन ने एक बार फिर कांग्रेस के लिए सत्ता का सूखा खत्म किया। कैप्टन के नेतृत्व में कांग्रेस ने धमाकेदार जीत हासिल की। लेकिन, नवजोत सिंह सिद्धू की पार्टी मेें एंट्री के बाद कैप्टन को चुनौती मिलने लगी। आखिरकार वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले कैप्टन को पद छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।