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असैदुद्दीन ओवैसी को मुस्लिम क्यों नहीं वोट देते?

स्लिम समाज की सोच पर इस तथ्य से  फर्क नहीं पड़ता कि बीजेपी की केंद्र सरकार और उसकी राज्य सरकारों द्बारा मुस्लिम समाज की कहीं भी उपेक्षा नहीं की गई

Vidyarthi Shivam
  • Jan 19 2022 5:38PM

असैदुद्दीन ओवैसी मुस्लिमों का खुल कर पक्ष लेते हैं और डंके की चोट पर कहते है कि तथाकथित सेकुलरिस्ट पार्टियां मसलन  कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी आदि ने मुस्लिमों का वोट तो लिया लेकिन मुस्लिमों का भला नहीं किया। इसके बावजूद भी ओवैसी साहब को मुस्लिमों का वोट नहीं मिलता। क्यों? क्या  मुस्लिम समाज को यह विश्वास है कि तथाकथित सेकुलरिस्ट पार्टियों ने उनका जितना भला किया है, उतना ओवैसी नहीं कर पाएंगे? यदि ऐसा नहीं हैं तो क्या मुस्लिम मतदाता इतने महान हैं कि ओवैसी की संकीर्ण बातों का समर्थन नहीं करते? इन दोनों प्रश्नों का उत्तर यह है कि मुस्लिम मतदाताओं को ओवैसी सबसे अधिक अपील करते हैं। मगर चूंकि अपवादों को छोड़कर मुस्लिम समाज को न विकास से मतलब है और न ही अपनी स्थिति में सुधार से, इस लिए वे ओवैसी साहब से सहमत होते हुए भी ओवैसी साहब को वोट नहीं देते। आजादी के पहले से ही मुस्लिम नेताओं के नेतृत्व में मुस्लिम समाज ने हिंदू समाज की मुखालफत की है जिसका परिणाण पाकिस्तान का अस्तित्व है। आज के परिपेक्ष्य में भी  उन्हें यह लगता है कि देश में सिर्फ और सिर्फ बीजेपी ही ऐसी है जो हिन्दुओं से हमदर्दी रखती है। राहुल- प्रियंका-अखिलेश-मायावती- लालू- ममता आदि अपने आपको सच्चा हिंदू साबित करने की लाख कोशिश करें, सिर्फ इनके समर्थकों के अलावा अन्य हिन्दुओं और आम मुस्लिमों- दोनों को यह लगता है कि ये लोग हिंदू समाज के आस्तीन के सांप हैं और हिन्दुओं को डसने के लिए सच्चा हिंदू होने का ढोंग करते हैं। हिन्दुओं में कुछ लोग ऐसे हैं कि जो इनके जाल में फंस जाते हैं, मगर चालाक मुस्लिम समाज इनके जाल में नहीं फंसता और इन्हें सच्चा हिंदू नहीं मानता। वह मानता है कि जाति- वर्ग में बुरी तरफ बंटे हिंदू समाज को मूर्ख बनाने के लिए ही वे नेता सच्चा हिंदू होने का स्वांग रचते हैं। 
      मुस्लिम समाज की सोच पर इस तथ्य से  फर्क नहीं पड़ता कि बीजेपी की केंद्र सरकार और उसकी राज्य सरकारों द्बारा मुस्लिम समाज की कहीं भी उपेक्षा नहीं की गई। उन्हें तो सिर्फ इससे मतलब है कि आजादी के पहले से चली आ रही तुष्टीकरण की परंपरा में  बीजेपी सरकारों ने व्यवधान क्यों उत्पन्न कर दिया? उन्हें तो सिर्फ इससे मतलब है कि  बीजेपी सरकारें बाबर, औरंगजेब, टीपू सुल्तान आदि की महानता? पर चोट क्यों कर रही हैं- क्यों शिवाजी और महाराणा प्रताप को महान बताया जा रहा है? उनको तो इस बात से चिढ़ है कि हिंदुस्तान को यह क्यों बताया गया  कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना का महिमा मंडन तो होता है मगर जिस जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय लिए जमीन दी उनका नाम लेने वाला भी कोई नहीं था? 
   दर असल तुष्टीकरण के चलते भारत का विभाजन तो हुआ ही तुष्टीकरण के चलते हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज का वर्चस्व कायम रहा और बहुसंख्यक हिंदू समाज उपेक्षा का शिकार होता रहा। अखिलेश यादव ने गाजियाबाद में हज हाउस बनाया तो मुस्लिम समाज को अखिलेश यादव अच्छे लगे। मगर  योगी आदित्यनाथ ने मानसरोवर भवन  बनाया तो वे उन्हें कैसे अच्छे लग सकते हैं? 
     जो भी विकास का काम हुआ है, उसका फल मुस्लिम समाज को भी मिल रहा है। लेकिन उनकी आँख में राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडर का निर्माण, मथुरा- वृंदावन को तीर्थ-क्षेत्र बनाना, वंदे भारत एक्सप्रेस, रामायण एक्सप्रेस आदि चुभ रहे हैं। जब वंदे भारत एक्सप्रेस चली थी, उस पर पथराव भी किया गया था। दुर्भाग्य से हिन्दुओं में एक बड़ा वर्ग है, जो खुद को सेकुलर कहता है, उसको हज हाउस बनाने पर अखिलेश यादव सांप्रदायिक नहीं लगते जबकि मानसरोवर भवन बनाने और मथुरा- वृंदावन तथा ब्रज क्षेत्र को तीर्थ-क्षेत्र बनाने पर योगी आदित्यनाथ सांप्रदायिक लगते है। उसी तरह 
राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन, काशी  विश्वनाथ कॉरिडर का निर्माण, वंदे भारत एक्सप्रेस का संचालन, राम पथ गमन का निर्माण, रामायण एक्सप्रेस का संचालन और इसी तरह के अनेक कार्यों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक लगते है। यही नहीं, जो भी व्यक्ति हिंदू, हिंदुत्व, सनातन धर्म और सनातन संस्कृति की बात करता है, वह व्यक्ति इन सेकुलरिस्टों को सांप्रदायिक लगता है।
    अधिकांश मुस्लिमों की तरह सेकुलरिस्टों और  जाति आधारित तथा क्षेत्रीय पार्टियों के पिच्छ्लगू हिन्दुओं को न लोकतंत्र से मतलब है न देश या राज्य के विकास से मतलब है और न ही इससे मतलब है कि समाज, देश और उनके अस्तित्व को किससे और कितना बड़ा खतरा है। उनको मतलब है सिर्फ उस पार्टी से जिसका शीर्ष नेतृत्व ऐसे लोगों की जाति का है। मसलन समाजवादी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अखिलेश यादव, उनका परिवार और उनके रिश्तेदार हैं। अतः कुछ अपवादों को छोड़कर उत्तर प्रदेश का यादव समाज समाजवादी पार्टी के पीछे चलता है। इस समाज को न विकास से, न राम से, न कृष्ण से, न शिव से, न देश से, न समाज से, न हिंदू से, न मुस्लिम से, न अपने बच्चों के भविष्य से  और न ही इसी तरह के अन्य मसलों से मतलब है। उसको मतलब है सिर्फ और सिर्फ अखिलेश यादव से, भले ही अखिलेश यादव से उन्हें कोई फायदा न हो। यादव समाज के ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि पहले वे हिंदू हैं और बाद में यादव हैं। 
   जो बात यादव समाज पर लागू है वही बात कुछ अन्य जातियों पर भी लागू होती है। मसलन ब्राह्मणों के एक वर्ग ने जनेश्वर मिश्रा के कारण, राजपूतों के एक वर्ग ने सिर्फ और सिर्फ अमर सिंह और बाद में नीरज शेखर के कारण तथा वैश्य समाज के एक वर्ग ने सिर्फ और सिर्फ नरेश अग्रवाल के कारण समाजवादी पार्टी का साथ दिया। उसी तरह ब्राह्मणों के एक वर्ग ने सिर्फ और सिर्फ सतीशचन्द्र मिश्रा के कारण बीएसपी का साथ दिया। जाट समाज के एक वर्ग के बारे में भी यह सत्य है। जाट समाज का यह वर्ग उस दिशा में चल पड़ा जिस दिशा में अजीत सिंह चल पड़े। वह ट्रेंड आज भी बना हुआ।
     दलित वर्ग की कहानी भी वही रही है। कुछ अपवादों को छोड़कर यह वर्ग भी परंपरागत रूप से मायावती के साथ रहा है। यह वर्ग भी आँख मूंद कर बसपा को वोट देता रहा है। इस वर्ग को भी विकास, देश, धर्म आदि से कुछ भी लेना देना नहीं रहा है। 
इन जातियों के उक्त वर्गो के कारण ही उत्तर प्रदेश विकास के क्षेत्र में अन्य राज्यों से बहुत पीछे रहा। 
मुस्लिम समाज ने उक्त स्थिति का खूब फायदा उठाया और समय समय पर राजनीति के रुख को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाबी हासिल की। 
    हिन्दुओं की तरह मुस्लिम समाज भी जाति के दलदल में फंसा हुआ है। मुस्लिम समाज में भी ऊँच नीच की भावना व्याप्त है। मुस्लिम समाज में भी अंतर्जातीय विवाह नहीं होते। लेकिन मुस्लिम समाज को अपनी जाति या वर्ग से इस्लाम का वर्चस्व प्यारा है। उसके विपरीत हिंदू समाज को धर्म से अधिक उनकी जाति प्यारी है। 
     जब चुनाव आता है तो मुस्लिम समाज 
सबकुछ भूलकर संगठित हो जाता है और अपनी सारी ऊर्जा उस पार्टी को हराने में लगा देता है जिस पर हिंदू परस्त होने का ठप्पा लगा है और जिसके खिलाफ हिन्दुओं ने ही अपने तुच्छ स्वार्थ हेतु नफरत का माहौल पैदा किया हुआ है। उसके विपरीत जाति के दलदल में फंसा हिंदू समाज कभी ध्रुवित नहीं हो पाता। सतह पर लगता तो है कि हिंदू समाज के अन्दर हिंदू चेतना का विकास हुआ है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। हिंदू समाज में कुछ जातियाँ ऐसी हैं जो जिस डाली ( हिंदू धर्म ) पर बैठी हैं उसी डाली को काट रही हैं और मुस्लिम समाज मजा  ले रहा है। 
    मुस्लिम समाज के बहुसंख्यक लोगों के लिए अखिलेश यादव ने कुछ किया हो या न किया हो, उनको सिर्फ इस बात से संतोष होता है कि अखिलेश जी के शासनकाल में हिंदू समाज के लोगों को खुद को हिंदू कहने में भी शर्म आती है जबकि मुस्लिम समाज गर्व से कहता है कि वह उस शासक वर्ग  से संबंध रखता है जिसने चार सौ साल से अधिसंख्य हिंदू समाज को अपने पैरों तले दबाए रखा। चूंकि मोदी- योगी काल में हिंदू बिना मुस्लिम समाज की भावनाओं को आहत किए हुए खुद को 'हिंदू' कहने में संकोच नहीं करता और मुस्लिम समाज का एक वर्ग यह महसूस करने लगा है कि उसके पूर्वज अत्याचारी मुगल नहीं बल्कि अति सहिष्णु और मानवता वादी हिंदू थे, इस लिए मुस्लिम समाज की चौधराहट खतरे में पड़ने लगी है और वे किसी भी कीमत पर मोदी-योगी की जान के पीछे  पड़ गए है। जाति और क्षेत्र आधारित पार्टियाँ-  जैसे कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बीएसपी, आरएलडी, तथा अन्य छोटी पार्टियाँ; हरियाणा में आईएनएलडी;  बिहार में आरएलडी, जेडेयू आदि; बंगाल में टीएमसी मुस्लिम समाज की तमन्ना पूरी करने में सबसे आगे हैं। 
    हिन्दुओं, जागो और पहचानों खुद को। किसी का अहित करने के लिए नहीं बल्कि सनातन धर्म, सनातन संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए संगठित होओ। विश्व कल्याण के लिए तुम्हारा संगठित होना जरूरी हैं। कृष्ण तुम्हारे अंतर में निहित हैं। उनको अपना सारथी बनाओ और चुनाव रूपी धर्म युद्ध में प्रेम से प्रवृत हो जाओ।

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