सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

अग्नि परीक्षा से गुजरेंगे सिद्धू

क्या ऐसे स्पष्ट रूप से दो खेमों में बंटी कांग्रेस चुनाव में मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर पाएगी? कांग्रेस का एक हिस्सा मानकर चल रहा है कि चूंकि सिद्धू की एक क्रिकेटर और सिलेब्रिटी के रूप में व्यापक पहचान है, संवाद की अपनी एक शैली है और वह खुद को कैप्टन और बादल दोनों के खिलाफ बताते रहे हैं तो एंटी इनकंबेंसी फीलिंग और विपक्ष की चुनौती दोनों की काट साबित हो सकते हैं।

Mchavhanke
  • Jul 21 2021 4:19PM

आखिर कांग्रेस नेतृत्व ने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला कर लिया। इससे पिछले करीब दो महीने से पंजाब कांग्रेस में चल रही उथल-पुथल और अनिश्चितता दूर हुई है, लेकिन यह नया सवाल भी खड़ा हो गया है कि अनिश्चितता दूर करने की यह कोशिश कहीं पंजाब कांग्रेस में किसी और बड़े तूफान का कारण तो नहीं बन जाएगी। यह कोई छिपी बात नहीं है कि पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच लंबे समय से छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है। कैप्टन किसी भी सूरत में सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष पद पर नहीं देखना चाहते थे, पर सिद्धू उससे कम पर राजी नहीं थे। रविवार को जब यह लगभग तय हो गया कि सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष होंगे, तब भी कैप्टन खेमे की तरफ से इस फैसले को रुकवाने की कोशिशें होती रहीं। वैसे भी नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की साथ में औपचारिक तस्वीर भी न आना बताता है कि कैप्टन इस फैसले के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर भले कुछ न कहें, पर इसे पचाना उनके लिए मुश्किल है।

आलाकमान भी कुछ हद तक इस आशंका को स्वीकार करते हुए चल रहा है। सिद्धू के साथ ही चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर पार्टी हाईकमान ने कैप्टन और अन्य वरिष्ठ नेताओं की सामाजिक समीकरण बनाए रखने की दलील को जरूर सम्मान दिया है। मुख्यमंत्री और नए प्रदेश अध्यक्ष दोनों जाट सिख समुदाय से हैं, इसलिए कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अन्य समुदायों को नुमाइंदगी देने की बात समझी जा सकती है, लेकिन चाहे जिस समुदाय से भी हों वे कैप्टन के करीबी नहीं माने जाते हैं। ऐसे में कैप्टन को भेजा गया यह संदेश स्पष्ट है कि अब आलाकमान की उनकी सुनने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। क्या कैप्टन चुपचाप इस संदेश को स्वीकार कर लेंगे? अगर नहीं तो वह क्या करेंगे? पंजाब कांग्रेस का आगे का घटनाक्रम बहुत कुछ इसी सवाल पर निर्भर करेगा। लेकिन इससे आगे का सवाल यह भी है कि जो भी घटनाक्रम होगा, उसका पंजाब कांग्रेस के चुनावी प्रदर्शन पर क्या असर होगा? क्या ऐसे स्पष्ट रूप से दो खेमों में बंटी कांग्रेस चुनाव में मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर पाएगी? कांग्रेस का एक हिस्सा मानकर चल रहा है कि चूंकि सिद्धू की एक क्रिकेटर और सिलेब्रिटी के रूप में व्यापक पहचान है, संवाद की अपनी एक शैली है और वह खुद को कैप्टन और बादल दोनों के खिलाफ बताते रहे हैं तो एंटी इनकंबेंसी फीलिंग और विपक्ष की चुनौती दोनों की काट साबित हो सकते हैं। लेकिन यही बातें पार्टी के खिलाफ भी जा सकती हैं। आखिर पांच साल चली अपनी सरकार के कामकाज को खारिज करते हुए कोई पार्टी वोटरों का सामना कैसे कर सकती है? कुल मिलाकर जिस भूलभुलैया में पंजाब कांग्रेस फंसी हुई दिख रही है, उससे निकलने की कोई आसान राह नहीं है।

 

0 Comments

संबंधि‍त ख़बरें

अभी अभी