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कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर शपथ क्यों खिलाते हैं, रामायण पर क्यों नहीं

भगवान राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में कभी असत्य नहीं कहा और ना ही छल किया जबकि भगवान कृष्ण ने युद्ध में छल का मार्ग अपनाया फिर भी कोर्ट में रामायण की शपथ नहीं ली जाती है।

Mchavhanke
  • Jul 14 2021 6:10PM

भगवान राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में कभी असत्य नहीं कहा और ना ही छल किया जबकि भगवान कृष्ण ने युद्ध में छल का मार्ग अपनाया फिर भी कोर्ट में रामायण की शपथ नहीं ली जाती है। इसके पीछे तर्क यह हो सकता है कि रामायण में भगवान श्रीराम के जीवन का वर्णन है, रामायण से लोग आदर्श जीवन की प्रेरणा लेते हैं तथा रामायण लोगों को आदर्श जीवन मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है और इसका एक अन्य कारण ये भी हो सकता है कि हमारे देश में रामायण को 300 लेखकों ने अपने अनुसार लिखा है तो इनमें से किस की शपथ दिलाई जाए।

गीता हिन्दुओं का एक ऐसा पवित्रतम ग्रंथ है, जिसमें जीवन के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध कराया गया है। गीता में केवल महाभारत का ही विवरण नहीं है अपितु इसमें मानव जीवन से संबंधित हर समस्या का समाधान है। गीता में सत्य की स्थापना के लिए मनुष्य को किस प्रकार के आचरण करने चाहिए इसका विस्तार से विवरण है। हिंदू धर्म में गीता, मुस्लिम धर्म में कुरान और क्रिस्चन में बाईबल समान रूप से मानव जीवन को मार्गदर्शन करने वाले धर्म ग्रंथ माने जाते हैं।

 

उत्तर प्रदेश के प्रख्यात पत्रकार श्री हेमन्त सिंह की एक स्टडी के अनुसार भारत में मुगल शासकों ने सन् 1873 में एक एक्ट पास किया जिसमें कोर्ट में धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा शुरू की। सन् 1969 में भारत में यह प्रथा समाप्त कर दी गई।

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