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'कोरोना रिपोर्टिंग से कोरोना पर जीत की मेरी अपनी कहानी'

याद रखें मन के हारे हार है, मन के जीते जीत और अगर आप मन में जीत ठान चुके हैं, तो कोरोना से आप आसानी से जीतेंगे। आप कोरोना विजेता बनकर वापस लौटेंगे, मुस्कुराते हुए, हंसते हुए.....।

Yogesh Mishra- 9329905333
  • Apr 27 2021 2:29PM
खबरों के लिए फील्ड में रहने के दौरान हम पत्रकारों को अपनों से ज्यादा औरों की समस्या समझनी पड़ती है, औरों के लिए आवाज बुलंद करना पड़ता है। लेकिन कभी-कभी औरों के समस्याओं को सुलझाते समय हम खुद समस्याग्रस्त हो जाते हैं, हम खुद संक्रमित हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ। जिसे आज आपके साथ एक अनुभव के रुप में साझा कर रहा हूँ।



....अप्रैल 2021 के पहले सप्ताह में शरीर कुछ थका सा, असहज़ सा लगातार लग रहा था। 5 अप्रैल को तो ये थकावट और शरीर का दर्द, शरीर का बुखार और बढ़ता महसूस हुआ। मेरा शरीर कुछ असहज महसूस कर रहा था। शरीर ख़ूब तप रहा था, मुंह से स्वाद गायब होने जैसा लग रहा था, खुशबू सुगंध सब मुझसे दूर हो गई थी। मुझे लगा कि मैं अन्य कोरोना संक्रमित लोगों की तरह संक्रमित हो गया हूँ। शरीर भीतर से जवाब देने लगा था।  
इसी बीच अब मैंने ख़ुदसे कहा कि बिना देरी किये अपनी अपनी कोरोना जांच कराऊंगा। और 6 अप्रैल को सुबह जब मैं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में अपनी कोरोना जाँच कराने पहुंचा। तब एंटीजन टेस्ट कराने के बाद डॉक्टर ने मुझे बताया कि 'आप कोरोना संक्रमित हो गये हैं' यानी कि कोरोना के चपेट आ गया हूं। डॉक्टर ने मुझे कहा कि आपको बहुत ज्यादा वायरस में चपेट में ले लिया है, इसलिए आप बिना विलंब किए खुद को आइसोलेट कर लीजिये। 
मैंने बिना समय गवाएं अपने आप को समझाया और इस बात को स्वीकारा कि 'हां....अब मैं कोरोना संक्रमित हो गया हूँ।' 
जब मैं अस्पताल जांच कराने जा रहा था, तो मेरे स्वास्थ्य को जानने वाले मेरे परिवार के लोग और कुछ मित्र, जो लगातार मुझ पर नजर रखे हुए थे, मेरा रिपोर्ट जानना चाह रहे थे। इसी बीच जैसे ही मेरा रिपोर्ट आया, घरवालों ने फोन किया, तब मैंने उन्हें कहा कि 'मैं घर आ कर बताता हूं'। 
उसके बाद मेरे एक मित्र अभिषेक मिश्रा ने मुझे फोन किया। उन्होंने पूछा- भैया, क्या आया रिपोर्ट में? कैसे हो? तो मैंने मुस्कुराकर कहा-'मस्त हूं और रिपोर्ट पॉजिटिव आ गया है। मेरी बात सुनकर हंसकर अभिषेक ने कह-'भैया, आपका रिपोर्ट पॉजिटिव आया है और आप मस्त हूं कह रहे हो!' 
दरअसल तभी से मेरे अंदर एक सकारात्मकता और कोरोना से लड़ने का आत्मबल पैदा हो चुका था। मैंने इस बात को स्वीकार तो लिया था कि मैं कोरोना संक्रमित हूं। मैंने इस बात को भी स्वीकारा कि मैं कोरोना संक्रमण का शिकार जरूर हो गया हूं, लेकिन मैं हार नहीं मानूँगा, डरूँगा नहीं, मैं कोरोना से लड़ूंग और जीतूंगा। 

उसके बाद 6 अप्रैल को सुबह 11 बजे हॉस्पिटल से मैं अपने घर पहुंचा। सबसे मैं खुद को आइसोलेट कर लिया। मेरा रिपोर्ट पॉजिटिव जानकर अम्मा, नानी, बहनें रोने लगीं। कुछ देर बाद जानकारी मिली कि मेरी मुझे जन्म देने वाली मां और मेरी छोटी बहन प्रज्ञा भी कोरोना संक्रमित हो गई हैं। जिसके बाद घरवालों ने परिस्थिति को समझा, ख़ुदको सम्हाला। फिर अम्मा और छोटी बहन को हौसला देने लगीं।
रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद मेरी मां और छोटी बहन के चेहरे पर मुझे शिकन बिल्कुल नजर नहीं आई, बल्कि हमने इसको एक अवसर समझा, एक दूसरे के साथ समय बिताने का। क्योंकि मैं बीते 10 वर्षों से लगातार घर से दूर रायपुर में रहकर पत्रकारिता कर रहा हूं। ऐसे में मुझे बहुत कम समय मिला है, परिवार के साथ समय व्यतीत करने का। लिहाजा मुझे लगा कि भगवान ने शायद कोरोना संक्रमित करके मुझे अवसर दिया है कि मैं अपने माँ, अपनी बहन और अपने परिवार के साथ समय व्यतीत कर सकूँ। उनसे निश्चिन्तता से, आराम से बातें कर सकूं, माँ की सेवा कर सकूं। ऐसे में 6 अप्रैल कि सुबह 11 बजे से शुरू हुआ शेड्यूल 17 दिनों तक चला। इस दौरान अस्पताल से कुछ एलोपैथिक दवाइयां मिली। इस दौरान मैंने अपने चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके जी और सुदर्शन परिवार को सूचित किया कि मैं कोरोना संक्रमित हो गया हूं। सुदर्शन परिवार के सदस्यों ने मेरे स्वास्थ्य लाभ की कामना की। 
इस दौरान चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके जी का मेरे पास फोन आया। उन्होंने मेरा हालचाल पूछा और मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि 'तुम बहुत जल्दी अच्छे हो जाओगे, मनोबल बरकरार रखना, सकारात्मक सोचना....'।
उन्होंने कुछ उपचार विधि भी बताई। ऐसे में 6 अप्रैल से लेकर के लगातार हमारा घर में ही स्वउपचार चलता रहा। 7 अप्रैल की सुबह उठते ही पहले सूरज की रोशनी लेना, व्यायाम करना, सुबह उठकर काढ़ा पीना, भाप लेना, तुलसी पत्ता खाना, गरम पानी पीना, गरारा करना थोड़ा बहुत एक्सरसाइज करना इत्यादि यही सिलसिला लगातार चलता रहा। इस बीच हम सबने गरमा गरम भोजन ही ग्रहण किये। घर के लोगों ने जूस इत्यादि देकर शारीरिक तौर पर मजबूत करने का प्रयास किया। मैंने और इसी तरह मां और बहन के साथ समय बिताते हुए हंसते मुस्कुराते और मानसिक रूप से मजबूत होकर कोरोना से लड़ते हुए 17 दिन बिताये। 
धीरे-धीरे हम तीनों का बुखार भी उतरने लगा, लक्षण खत्म होने लगा, शरीर में उर्जा आने लगी, शरीर मजबूत होने लगा, तन मजबूत होने लगा, मन और मजबूत होने लगा। इस बीच संक्रमण से लड़ने पूरे परिवार ने मानसिक रुप से मदद किया। संक्रमण से लड़ने के बाद अब हम संक्रमण के दायरे से बाहर आ चुके हैं और अपने परिवार के साथ खुशियों के पल बिता रहे हैं। 

इस बीच यह सबक जरूर मिला कि अनावश्यक भीड़ में जाने से बचना चाहिए। कोशिश करना चाहिए की बेवजह भीड़ में ना जाएं। मास्क पहनें। सैनिटाइजर को उपयोग करें। लेकिन इसके साथ में अगर आप संक्रमित हो जाते हैं, तो डरें बिल्कुल भी नहीं, बल्कि मुस्कुराकर उसे स्वीकार करें। सोचें कि आम दिनों में जैसे हमें सर्दी-बुखार होता है। ठीक वैसे ही कुछ हुआ है। यह भी ठीक हो जाएगा और उसके बाद अस्पताल की दवाइयों पर आश्रित रहने के बजाय खुद को मजबूत करना सीखें। देसी उपचार लेना सीखें, गरारा करें, भाप लें, तुलसी पत्ता खायें, लहसुन, लॉन्ग इत्यादि खाएं, गरमा गरम पानी पीयें, एक्सरसाइज करें, योगा करें और सबसे बड़ी बात अपने आपको इस बात को स्वीकारने दें कि हां हम जीतेंगे। याद रखें मन के हारे हार है, मन के जीते जीत और अगर आप मन में जीत ठान चुके हैं, तो कोरोना से आप आसानी से जीतेंगे। आप कोरोना विजेता बनकर वापस लौटेंगे, मुस्कुराते हुए, हंसते हुए.....।
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