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6 अगस्त: जन्मजयंती क्रांतिवीर रामफल मंडल जी. फांसी से पहले बता कर गये थे- "हमारा दुश्मन सीमा पार नहीं बल्कि अंदर ही है"

अमर बलिदानी रामफल मंडल का जीवन और बलिदान सभी बुद्धिजीवियों से एक सवाल है कि क्या सच में मिली है हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल ?

Abhay Pratap
  • Aug 6 2021 11:37AM
वो नाम जिन्हे खुद तो लिया भी नहीं और किसी और को लेने भी नहीं दिया गया .. वो नाम जिन्होंने केवल और केवल हमारे लिए अपने आप से आगे बढ़ कर फांसी का फंदा चूम लिया और अमर हो गए .. वो नाम जिन्होंने अपने पराक्रम से ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया था उनको इतिहास से ऐसे गायब करा दिया गया जैसे वो ही चरखे तकली वाली कहानी के सबसे बड़े शत्रु रहे हों .. उन तमाम ज्ञात और अज्ञात वीरों में से एक थे परम बलिदानी रामफल मंडल जी जिनका सौभाग्य से आज अर्थात ६ अगस्त को पावन जन्म दिवस है .और उन्हें सुदर्शन न्यूज की तरफ से बारम्बार नमन व् वंदन और अभिनंदन है.

अमर बलिदानी रामफल मंडल, आजादी के आन्दोलन में बिहार की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, फिर भी वर्तमान बिहार के स्वतंत्रता आंदोलन आकलन में इतिहासकारों की लेखनी से साफ़ होता है की उन्होंने वीरों की इस भूमि के इतिहास से न्याय नहीं किया है ख़ास कर उनके भी साथ जिन्होंने अपनी कुर्बानी फांसी को गले लगाकर आजाद भारत के निर्माण में अपना सर्वस्व लुटा कर योगदान दिया था। वैसे तो सम्पूर्ण भारत के निवासियों ने अपने-अपने स्तर पर देश की आज़ादी में अपनी अपनी भूमिका निभायी, जिसमें उस समय के तत्कालीन बिहार की भूमिका भी अग्रणी रही है। उस समय के बिहार का चाहे "देवघर विद्रोह"(1857), "दानापुर विद्रोह"(1857) , "विरसा मुंडा आन्दोलन, खूंटी"(1900), "चंपारण सत्याग्रह" (1918 -19), "अंग्रेजो भारत छोड़ो" एवं "करेंगे या मरेंगे" (1942) आन्दोलन हो, सभी में बिहार ने अग्रणी भूमिका अदा की है। लाठियां और गोलियां खायी है और फांसी को गले लगाया है। गोली से मारे गये शहीदों की संख्या हजारों में है, जबकि फांसी पर लटकाए गए बलिदानियों की संख्या सैकड़ों में।

अवगत है कि अमर शहीद रामफल मंडल जी ने बाजपट्टी, सीतामढ़ी में 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभायी। आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेजो द्वारा सीतामढ़ी गोलीकांड हुई बच्चे, बूढ़े और औरत गोलीकांड में मारे गए, विरोध स्वरुप वीर सपूत रामफल मंडल ने गोलीकांड के जबाबदेह अंग्रेजी हुक्मरानों के तत्कालीन एस.डी.ओ. एवं अन्य दो सिपाही को गडासा से कुट्टी-कुट्टी काट दिया था और आजाद भारत/बिहार के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभायी थी। ये वो लोग थे जो थे तो भारत के ही परिधान और नामों से पर भारत के ही खिलाफ मात्र कुछ सिक्कों या मेडल के लालच में कार्य कर रहे थे.. इन पर 24 अगस्त 1942 को बाज़पट्टी चौक पर अंग्रेज सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काटकर हत्या करने का आरोप था।

वर्तमान बिहार के सन्दर्भ में फांसी पर लटकाए गए बलिदानियों को खंगालना शुरू किया तो एक तथ्य सामने आयी है कि अमर शहीद रामफल मंडल वर्तमान बिहार के 1942 क्रांति के प्रथम बिहारी सपूत है जिन्हें फांसी पर लटकाया गया जिन्हे अंग्रेजों के गुलाम टट्टुओं और भारत में ही जन्म ले कर भारत को ही गुलाम बनाये रखने वालो को मारने जैसे पावन कार्य को भी अपराध मान कर अंग्रेजी शासन ने 23 अगस्त 1943 को भागलपुर जेल में शहीद रामफल मंडल को फासी की सजा दी गई..

गुमनाम बलिदानी रामफल मंडल जी को आज उनके जन्म दिवस पर सुदर्शन न्यूज का बारम्बार नमन वंदन और अभिनन्द है जिसने बहुत पहले ही ये राज जान लिया था की भारत के असली दुश्मन वो नहीं जो सीमाओं के उस पार बैठे हैं अपितु भारत के वातविक शत्रु वो हैं जो भारत के ही अंदर रह कर भारतीयों के ही वेश बना कर भारत को ही घाव दे रहे हैं . ऐसे क्रांतिवीर से शिक्षा ना लेना बिहार ही नहीं सम्पूर्ण मानव जाति के लिए दुर्भाग्य का विषय है . मात्र 20 वर्ष की आयु में फांसी के फंदे को हंस कर चूम लेने वाले इस बिहार के रत्न से निवेदन है कि हो सके तो एक बार फिर लौट आया. अमर बलिदानी रामफल मंडल का जीवन और बलिदान उन सभी बुद्धिजीवियों से एक सवाल है कि क्या सच में मिली है हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल ?

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