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महाराणा प्रताप को क्यों याद किया जाना चाहिए

हम सभी जानते हैं कि इतिहास एक शोध का विषय है जिसमें हमेशा नए तथ्यों के सामने आने कि गुंजाइश बची ही रहती है और उसी के चलते 2 वर्ष पूर्व यह बात साबित हो चुकी है कि अंतिम विजय महाराणा प्रताप सिंह की ही हुई थी उनके जीवन के अंतिम 15 वर्ष (1582-1597) तक अकबर की हिम्मत ही नही हुई कि मेवाड़ की ओर आँख उठाकर देख सके ।

sudarshan Desk
  • May 9 2020 2:42PM
आज वह सब जो आपको अवश्य पढ़ना चाहिए जानना चाहिए व समझना चाहिए । 

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, अकबर, हल्दी घाटी वगैरह यह सब हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं इसलिए यह सब पुनः लिखकर पाठकों का कीमती समय नहीं लेना चाहता । 

हम सभी जानते हैं कि इतिहास एक शोध का विषय है जिसमें हमेशा नए तथ्यों के सामने आने कि गुंजाइश बची ही रहती है और उसी के चलते 2 वर्ष पूर्व यह बात साबित हो चुकी है कि अंतिम विजय महाराणा प्रताप सिंह की ही हुई थी उनके जीवन के अंतिम 15 वर्ष (1582-1597) तक अकबर की हिम्मत ही नही हुई कि मेवाड़ की ओर आँख उठाकर देख सके ।

हो सकता है सत्तापक्ष व विपक्ष के लिए यह वोट बैंक का मुद्दा हो लेकिन मेरे व आपके लिए नहीं ।

वास्तविकता में महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी व दिवेर युद्धों तक ही सीमित कर हम महाराणा प्रताप के साथ अन्याय करते हैं । मेरे व्यक्तिगत जीवन में प्रताप एक आदर्श व्यक्तित्व है जिसे मैं तात्कालिक व वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्वश्रेष्ठ मानता हूं लेकिन केवल इसलिए नहीं कि उसने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी ।

अब सीधे विषय पर आते हैं  कि महाराणा प्रताप को क्यों याद किया जाना चाहिए, और क्यों हल्दी घाटी व अकबर से परे भी महाराणा प्रताप हमारे आदर्श है -

क्योंकि वह उस समय का लोकतांत्रिक राजा था, मतलब जनता द्वारा चुना गया था अर्थात प्रताप के पिता उदय सिंह जी ने कुँवर प्रताप को राजा नहीं बनाकर अपने छोटे बेटे जगमाल को राजा बनाया था ।

महाराणा प्रताप हमारे लिए देवतुल्य है क्योंकि दिवेर के युद्ध से पूर्व अकबर की तरफ से युद्ध करने आए रहीम जी की बेगमों को जब शेरपुर में कुँवर अमर सिंह द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था तब उस समय महाराणा प्रताप द्वारा अमर सिंह को डांटना व गिरफ्तार औरतों को ससम्मान वापस भेज देना महाराणा प्रताप के महिला सम्मान व चरित्र के उच्च आयामों को दर्शाता है जैसे वह 16 वीं सदी का नहीं कोई सतयुग का राजा हो क्योंकि 16 वीं सदी में तो दुश्मन कि बेगमों को गिरफ्तार कर अपनी दासी बना लेना आम बात थी ।

जाति पन्थ से ऊपर मानवता के समर्थकों के महाराणा प्रताप हमेशा प्रेरणापुंज रहे है ,क्योंकि जिस धर्मनिरपेक्ष शब्द को भारत के संविधान में 42 वें संविधान संसोधन द्वारा 1976 में जोड़कर भारत को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया । जबकि वास्तविकता यह है कि सभी धर्मों के अच्छे लोगों का सम्मान और संरक्षण तो  महाराणा प्रताप के राज्य में 16 वीं शताब्दी में मौजूद थी जिसका प्रमाण एक हिंदू राजा प्रताप के दरबार में नासिरूद्दीन जैसे मुस्लिम चित्रकार व हेमरत्न सूरी जैसे जैन धर्म को मानने वाले लेखक होना है । अतः सभी धर्मों का आदर धर्म निरपेक्षता से नही बल्कि महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज जैसे हिन्दू राजाओं के राज्य में ही हो सकता है ।

आज महाराणा प्रताप को छुआछुत को दूर करने वाले राजा के रूप में भी याद किया जाना चाहिए क्योंकि जिस छुआछुत को हम 21 वीं सदी में भी दूर नहीं कर पाए उसे प्रताप ने 16 वीं सदी में अपने देश मेवाड़ में दूर कर दिया था । हम सभी जानते हैं कि वर्तमान की अनुसूचित जनजातियां (भील, गाड़िया लुहार) प्रताप की सेना में लडा़ करती थी, तब यह तो संभव नहीं कि वो लोग युद्ध के दौरान या युद्ध विराम के दौरान क्षत्रिय सैनिकों के स्पर्श ना होते हों या उनके लिए भोजन व चिकित्सा आदि का प्रबंध अलग से किया जाता हो । 16 वीं सदी में उच्च जातियों को इस स्तर पर मना पाना व सभी को एक साथ ला पाना कल्पना से परे है ।

महाराणा प्रताप स्वतन्त्रता संग्राम में आजादी के दिवानों का आदर्श इसलिए नहीं बना कि उसने हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा बल्कि इसलिए बना कि राजतन्त्र में जहां आम जनता को युद्धों से या राजा से कोई विशेष मतलब नहीं होता था वहां प्रताप ने आम जनता में राष्ट्रवाद की भावना पैदा की जिससे आम जनता एक होकर युद्ध में उतर आई थी ।

हल्दीघाटी के युद्ध में ग्वालियर के राजा रामशाह तँवर, हाकिम खां सूर व पूंजा भील का शामिल होना तथा दिवेर के युद्ध में डूंगरपुर, बांसवाडा़, प्रतापगढ़ व ईडर रियासतों का शामिल होना प्रताप कि संगठन बनाने कि क्षमता दर्शाता है जबकि प्रताप के पास लोभ के रूप में इन्हें देने को कुछ नहीं था ।

महाराणा प्रताप हमारे आदर्श इसलिए होने चाहिए क्योंकि अकबर के अनेक प्रलोभनों के बावजूद आजीवन संधि ना करना प्रताप की अपने कर्म के प्रति ईमानदारी व राष्ट्रवाद की भावना की उच्च कसौटी को दर्शाता है ।

आजीवन युद्धरत रहने के बावजूद प्रताप के दरबार में चक्रपाणि मिश्र, हेमरत्न सूरी, सादुलनाथ द्विवेदी, नासिरूद्दीन, माला सांदू व रामा सांदू का होना यह दर्शाता है कि प्रताप एक विद्वानों का संरक्षक राजा था ।

जिस सेनापति फरीद खाँ ने कसम खायी कि प्रताप के खून से मेरी तलवार नहायेगी । प्रताप द्वारा उस सेनापति को पकड़ कर छोड़ दिया जाना प्रताप की उदारता को दर्शाता है इससे प्रताप ने यह साबित किया कि क्षमा वीरों का आभूषण है । 

इतना ही नहीं प्रताप के समय चावण्ड से मेवाड़ की चित्रकला का आरम्भ होना उसकी सांस्कृतिक उपलब्धि को दर्शाता है । इसलिए एक संस्कृति प्रेमी राजा के रूप में प्रताप को याद किया जाना चाहिए ।

और इन सबके साथ प्रताप को मेवाड़ की थर्मोपोली (हल्दीघाटी) व मेवाड़ के मेराथन (दिवेर) युद्धों में दिखाई वीरता के लिए भी अवश्य याद किया जाए लेकिन प्रताप के व्यक्तित्व को इन दो युद्धों तक ही सीमित कर प्रताप के साथ अन्याय नहीं किया जाना चाहिए ।

स्वाभिमान, स्वतंत्रता, बलिदान, शौर्य, पराक्रम व सहिष्णुता के प्रतीक, क्षत्रिय कुलभूषण, हिंदुआ सूरज, एकलिंगजी के दीवान, मातृशक्ति के रक्षक, मेवाड़ के गौरव, वीरपुरोधा, प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप जी की जयन्ती पर एक बार पुनः कोटि कोटि नमन !
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