आज शनिवार का दिन हिन्दू सनातन परंपरा में अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक है। वैशाख शुक्ल सप्तमी यानी गंगा सप्तमी, वो पावन तिथि जब मां गंगा ने स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण कर समस्त पापों का नाश किया था। भारतभूमि पर अवतरित हुईं गंगा माता केवल एक नदी नहीं, बल्कि सनातन धर्म की जीवंत शक्ति और मुक्ति का स्रोत हैं।
भगीरथ का तप और गंगावतरण
शास्त्रों के अनुसार, जब महाराज सगर के साठ हजार पुत्र भगवान कपिल की तपस्या में विघ्न डाल बैठे और पाताल में भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा भगीरथ ने वर्षों तक घोर तपस्या की। इस तप ने स्वर्गलोक की जलधारा मां गंगा को पृथ्वी पर लाने को बाध्य कर दिया। परंतु, गंगा का वेग इतना प्रचंड था कि भगवान शिव को उसे अपनी जटाओं में समेटना पड़ा- यही सनातन की शक्ति है!
मां गंगा का यह अवतरण न केवल मृतात्माओं को मुक्ति दिलाने के लिए हुआ, बल्कि धरती के पाप और कलुषता को धोने के लिए भी था। यही कारण है कि गंगा जल को आज भी अमृत के समान पवित्र माना जाता है।
गंगाजल- न केवल जल, बल्कि देवत्व का प्रसाद
-गंगाजल में मौजूद दिव्य गुण वैज्ञानिक शोधों को भी हैरान कर चुके हैं। यह जल वर्षों तक खराब नहीं होता। इसमें रोगनाशक शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय समावेश होता है।
- गंगा सप्तमी पर स्नान, दान, जप और ध्यान- ये चार कार्य महापुण्यकारी माने जाते हैं।
- घर में गंगाजल का छिड़काव करें, और तांबे के लोटे में गंगाजल रखकर गायत्री मंत्र का जाप करें।
गंगा सप्तमी की पूजन विधि- आस्था के साथ आत्मशुद्धि का पर्व
-सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें। यदि संभव हो तो गंगाजल से स्नान करें या नहाने के जल में गंगाजल मिलाएं।
-घर के मंदिर में मां गंगा और राजा भगीरथ की प्रतिमा या चित्र की पूजा करें।
-धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य और अक्षत से अर्पण करें। फिर “ॐ नमः शिवाय” और “गंगे च यमुने चैव…” मंत्रों का जाप करें।
-संध्या के समय गंगा आरती करें और गंगा जल का छिड़काव पूरे घर में करें।
गंगाजल: पूजन से लेकर आरोग्य तक
-हर सोमवार को शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करना विशेष लाभकारी होता है।
-मंत्र जाप करते हुए जल चढ़ाएं—“ॐ नमः शिवाय” या “महामृत्युंजय मंत्र”।
-इससे आरोग्य, दीर्घायु और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
गंगाजल रखने के नियम-जिससे बनी रहे उसकी पवित्रता
-गंगाजल को केवल तांबा या पीतल के पात्र में रखें।
-इसे ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में रखें।
-अशुद्ध हाथों से इसका स्पर्श न करें।
-पूजा के बाद बचे गंगाजल का प्रयोग घर में शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा फैलाने के लिए करें।
गंगा सप्तमी वह अवसर है जब हर सनातनी को मां गंगा का स्मरण कर, आत्मशुद्धि और लोककल्याण का संकल्प लेना चाहिए। यह पर्व सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का जागरण है।