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जन्म पंजीकरण जिहाद नागरिकता का महाघोटाला

जन्म पंजीकरण जिहाद से आपके क्षेत्र के डेमोग्राफीकस को बदला जारहा है. आइये अब हम प्रयागराज के डेमोग्राफीकस पर नजर डालते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार प्रयागराज में मुसलमानों की कुल जनसँख्या 20% थी. मगर C.A.A के बाद कराई गई पंजीकरणों के आकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि अब प्रयागराज में इनका अनुपात 40% तक हो गया है. जिसे आप ऊपर दिखाए गए ग्राफिक्स समझ सकते हैं. CAA से पहले ये आकड़ा 16 प्रतिशत था. ऐसे में ये साबित होता है की कैसे प्रयागराज को एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बनाने का महाषड्यंत्र है. ये सिर्फ उत्तरप्रदेश तक हीं सिमित नहीं है बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र तक ये पूरा जाल फैला हुआ है. मुस्लिम बाहुल्य राज्यों में ये खेल काफी तेजी से चल रहा है. लखनऊ में जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने वालों की संख्या में 3 गुना वृद्धि हुई है. इसमें 40 से 60 साल तक के उम्र वाले लोग भी जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए फर्जीवाड़े का सहारा ले रहे हैं. लखनऊ नगर निगम में जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण विभाग के रजिस्ट्रार के अनुसार जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने वालों की संख्या में पहले की तुलना में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है.

Jitendra Pratap Singh @JitendraStv
  • Sep 22 2021 3:23PM

जिहादी साजिशों की महाघोटाला पर इसबार हमने एक बड़ा खुलासा किया है. इसबार हमने एक ऐसा ज्वलंत विषय देश के सामने रखा जो आजादी के बाद का सबसे बड़ा नागरिकता घोटाला के रूप में समाने आया. C.A.A कानून आने के बाद से देशभर में फर्जी जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने की साजिश चल रही है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है जन्म प्रमाण पत्र का नागरिकता की प्रमाण के लिए सबसे प्रभावी साबुत के रूप में इसकी स्वीकृति. C.A.A आने के बाद से मुसलमानों की फर्जी जन्म प्रमाण पत्र की बाढ़ आगई है. इसमें अचानक से बेहताशा बढ़ोतरी हो गई है. ऐसे तो ये फर्जीवाड़ा देशभर में चल रहा है. मगर सबसे चौकाने वाला तथ्य उत्तरप्रदेश के प्रयागराज से सामने आया है. अगर सिर्फ एक दिन की C.A.A से पहले और C.A.A के बाद की सैम्पल पर नजर डालें तो ये अपने आप में  चौकाने वाला तथ्य नजर आता है. अब आईये हम आपको इन आकड़ों की मदद से समझते हैं कि कैसे ये फर्जी पंजीकरण का सैलाब आगया है. प्रयागराज नगर निगम में.

C.A.A से पहले और बाद के पंजीकरणों का विश्लेषण

28 अगस्त 2018 को यानी कि C.A.A से पहले का एक दिन के सभी पंजीकरणों का हमने विश्लेष्ण किया
इसी प्रकार हमने 10 जनवरी 2020 यानी C.A.A के बाद एक दिन के सभी पंजीकरणों का विश्लेषण किया
28 अगस्त 2018 और 10 जनवरी 2020 के आकड़ें में जमीन- आसमान का अंतर सामने आया
आइये अब हम आपको एक और ग्राफ़िक्स के जरिये समझाते हैं की C.A.A आने के बाद कुल पंजीकरणों की संख्या में कितना ज्यादा विष्फोटक वृद्धि हुई है. C.A.A आने के पहले एक दिन में एक नगरपालिका के अन्दर जहां पहले लगभग 85 लोग पंजीकरण कराते थे, वहीँ C.A.A आने के बाद उसी नगरपालिका के अन्दर अब लगभग 213 लोग प्रतिदिन पंजीकरण करा रहे हैं. यानि 250 प्रतिशत की वृद्धि.

अब यही आकड़े हम मुसलमानों के द्वारा कराए गए पंजीकरणों का दिखाते हैं. C.A.A आने के पहले एक दिन में एक नगरपालिका के अन्दर जहां पहले लगभग 14 मुसलमान पंजीकरण कराते थे, वहीँ C.A.A आने के बाद उसी नगरपालिका के अन्दर अब लगभग 85 मुसलमान लोग प्रतिदिन पंजीकरण करा रहे हैं. यानि 600 प्रतिशत की वृद्धि.

तो अब इन आकड़ों को देखने के बाद खुद समझ गए होंगे की ये कितनी बड़ी धांधली चल रही है.

षड्यंत्र के तहत आपके क्षेत्र का डेमोग्राफीकस को बदला जारहा है

आपने अबतक देखा की कैसे ये पूरा पंजीकरण का धांधली चल रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं की इस धांधली के पीछे कितना बड़ा षड्यंत्र है.
 

इस षड्यंत्र से आपके क्षेत्र के डेमोग्राफीकस को बदला जारहा है. आइये अब हम प्रयागराज के डेमोग्राफीकस पर नजर डालते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार प्रयागराज में मुसलमानों की कुल जनसँख्या 20% थी. मगर C.A.A के बाद कराई गई पंजीकरणों के आकड़ों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि अब प्रयागराज में इनका अनुपात 40% तक हो गया है. जिसे आप ऊपर दिखाए गए ग्राफिक्स समझ सकते हैं. CAA से पहले ये आकड़ा 16 प्रतिशत था. ऐसे में ये साबित होता है की कैसे प्रयागराज को एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बनाने का महाषड्यंत्र है.

इस बेहताशा वृद्धि की जब हमने पड़ताल की तो कई सारे चौकाने वाले तथ्य सामने आए. दरअसल फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाने वाले रैकेट इसके पीछे काम कर रहा  है. ये विशाल रैकेट देश के कई शहरों में फैला हुआ है. इस रैकेट से जुड़े हुए कुछ मीडिया रिपोर्ट की बात करें तो 11 जनवरी 2020 को छपी टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश के कई सारे शहरों में फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाएं जा रहे हैं.

ये सिर्फ उत्तरप्रदेश तक हीं सिमित नहीं है बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र तक ये पूरा जाल फैला हुआ है. मुस्लिम बाहुल्य राज्यों में ये खेल काफी तेजी से चल रहा है. लखनऊ में जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने वालों की संख्या में 3 गुना वृद्धि हुई है. इसमें 40 से 60 साल तक के उम्र वाले लोग भी जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए फर्जीवाड़े का सहारा ले रहे हैं. लखनऊ नगर निगम में जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण विभाग के रजिस्ट्रार के अनुसार जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने वालों की संख्या में पहले की तुलना में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है.

प्रयागराज नगरनिगम में लिपिक अरुण कुमार जैन बताते हैं कि C.A.A के बाद लोगों ने सबसे ज्यादा जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए बड़ी संख्या में आवेदन किए थे. समाजवादी पार्टी के M.L.A रफीक अंसारी का कहना है कि उनके पास हर दिन 400 से 500 लोग निवास प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए आरहे है. आपको यहाँ बता दें की स्थानीय सांसद और विधायक जन्म एवं निवास को प्रमाणित करने के लिए अधिकृत है. आब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जब कोई आवेदनकर्ता इनके पास जाता होगा तो क्या वो खाली हाथ लौटता होगा ? हमारे माननीय खुद वोट बैंक की राजनीति में ठप्पा लगा हीं देते होंगे!

फर्जी रैकेट का भंडाफोड़

हम आपको पहले हीं दिखा चुके हैं कि कैसे फर्जी जन्म पंजीकरण का खेल चल रहा है. अब इसी धंधे से जुड़े एक रैकेट के बारे में आपको बताने जारहे हैं जो उत्तरप्रदेश के बरेली में चल रहा था. दरअसल इस पूरे मामले से पर्दा तब उठा जब बरेली पुलिस ने बरेली नगरनिगम के स्वास्थ्य अधिकारी संजीव प्रधान के द्वारा दर्ज कराई गई एक रिपोर्ट की तहकीकात करने पहुंची. इस रैकेट से कई तरह के लोग जुड़े हुए थे जिनमे से कुछ साइबर कैफे चालाने वाले भी थे.

नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि जब हमने कुछ जन्म प्रमाण पत्रों को ई-सुविधा केंद्र पर जाँच किए तो पता चला कि लोगों द्वारा बनवाये गए प्रमाण पत्र के रजिस्ट्रेशन नंबर फर्जी थे. आमतौर पर जन्म प्रमाणपत्रों की नामांकन क्रमांक उत्तर प्रदेश में 10 नंबर का होता है, मगर ई-सुविधा केंद्र से जो जन्म प्रमाणपत्र जारी किया गया था उसमे यूनुस, आहील, सुमैरा और आयशा के जन्म प्रमाणपत्र के रजिस्ट्रेशन नंबर 9 अंकों थे, जो कि पूरी तरीके से फर्जी थे.

मुस्लिम समुदाय के लोगों ने फर्जी जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए अलग-अलग तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. बरेली के स्वास्थ्य अधिकारी संजीव प्रधान का कहना है की हररोज लगभग 200 आवेदनकर्ता जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए आरहे है. नगर स्वास्थ्य अधिकारी से जब इस संबंध में बात की गई तो पता चला कि एक फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाने के लिए पांच सौ से लेकर एक हजार रूपये तक लोगों से वसूला जा रहा है. ये पूरा रैकेट शहर के अलग-अलग गली मोहल्ले में फैला हुआ है. जहां पर हर रोज सैकड़ो की संख्या में लोग इस पूरे गोरखधंधा का शिकार हो रहे हैं. बरेली म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारी का कहना है कि दरअसल साइबर कैफ़े चलाने वाले सही सर्टिफिकेट जारी नहीं कर रहे हैं. उसमे नाम और पते का हेराफेरी करके फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बना रहे हैं जो की पूरी तरीके से गलत है.

बरेली नगर निगम के अधिकारी खालिद अहमद का कहना है कि हमने इस संबंध में कई सारे शिकायत प्राप्त किये हैं, जिसके बारे में पुलिस को सूचित किया गया है. खालिद के मुताबिक अधिकतर लोग मुस्लिम समुदाय से हैं जो इसतरह के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए आते हैं. 

राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा

हम इस रिपोर्ट में कुछ ऐसे खुलासे करने जा रहे हैं जिनमे बहुत से चौकाने वाले तथ्य शामिल है. ये कुछ ऐसे षड्यंत्र हैं जो राष्ट्र और समाज के लिए बेहद हीं खतरनाक है. एक ऐसा षड्यंत्र जिसके जरिये हिन्दुस्थान की धरती पर एक नापाक साजिश को रचा जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों में बहुत बड़ी असुरक्षा पैदा होने की संभावना है. ये पूरा मामला सिर्फ एक जन्म प्रमाण पत्र तक हीं सिमित नहीं है बल्कि अवैध तरीके से सरकारी रजिस्टर में जन्म पंजीकरण भारी संख्या में कराया जा रहा है.

कोई भी व्यक्ति जब एक फर्जी जन्म प्रमाण पत्र हासिल करता है तो उसे कुछ हद तक तो पकड़ा जा सकता है, मगर जब वही आदमी अपना जन्म पंजीकरण पंजीयक रजिस्टर में दर्ज करवा लेता है तो उसे पकड़ना बेहद हीं मुस्किल और असंभव हो जाता है. इस जन्म पंजीकरण के आधार पर हर तरह के पहचान पत्र हासिल किए जा सकते है, जैसे पासपोर्ट, आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र इत्यादि. किसी भी आदमी के पास जब ये सभी दस्तावेज होंगे तो वह कोई भी सरकार की योजना का लाभ उठा सकता है. साथ हीं सभी प्रकार के लाभार्थी बन सकता है जो इस देश के मूल नागरिकों को मिलता है. ऐसे में ये देश और राष्ट्र की अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती भी साबित होने वाली है. 

इसमें सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात ये है की कोई भी उसके नागरिकता पर न तो सवाल उठा सकता है और ना हीं उसे आसानी से रद्द हीं करा सकता है. हमारे देश का कानून और संविधान भी इसको लेकर इतना सख्त और संवेदनशील नहीं है कि उसे पकड़ सके और सजा दिला सके. तो ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं की फर्जीवाड़ा ये पूरा रैकेट कितना घातक और गंभीर है. एक बार जब कोई जन्म पंजीकरण कर लेता है तो NRC लागू होने पर उसके नागरिकता पर कोई भी सवाल नहीं उठा पाएगा और ना हीं उसे देश से बाहर निकाल पाएगा. मतलब वह पूरी तरह से मूल भारतीय के भांति अपना सभी अधिकार प्राप्त कर लेगा.

क्या है जन्म पंजीकरण अधिनियम और कैसे उठाते हैं इसका फायेदा

 

फर्जीवाड़े की ये पूरी प्रक्रिया कैसे चलती है अब हम आपको उसके बारे में समझाते हैं और इसके सरकारी लूपहोल का फायदा एक विशेष समुदाय के लोगों के द्वारा उठाया जारहा. जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 में मौजूद खामियां हीं इसकी बड़ी कारण है. ऐसे में इस कानून को भी जानना बेहद जरुरी है. 

देशभर में सभी जन्म पंजीकरण केन्द्रीय कानून ‘जन्म व मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969’ के अंतर्गत हीं होते हैं.
जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 के प्रावधानों के तहद कोई भी राज्य इस अधिनियम के धारा 30 के अंतर्गत अपना नियम बना सकता है.
भारत सरकार ने 1999 में पंजीकरण की प्रक्रिया के लिए जन्म एवं मृत्यु के पंजीकरण हेतु एक मॉडल रजिस्ट्रेशन नियम बनाया था.
इस मॉडल रजिस्ट्रेशन को सभी राज्यों ने अपने यहां लागू कर दिया है.

यहीं से शुरू होता है ये पूरा खेल. इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी बच्चे के जन्म की सूचना 21 दिन में देना अनिवार्य है. अगर बच्चे का जन्म अस्पताल में होता है तो यह अस्पताल के प्रबंधन का दायित्व होता है की वह 21 दिन के अन्दर जन्म के सूचना अपने स्थानीय जन्म पंजीकरण रजिस्ट्रार को उपलब्ध कराए और अगर बच्चे का जन्म घर पर होता है तो यह परिवार के सबसे वरिष्ट सदस्य की जिमेद्दारी होती है कि वह जन्म का पंजीकरण कराए. लेकिन किसी कारणवश जन्म का पंजीकरण 21 दिन के अन्दर नहीं होता है तो इसके बाद अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत बिलंब से पंजीकरण कराने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया में बिलंब के लिए तीन स्लैब का प्रवधान रखा गया है.

•        स्लैब-1 के अनुसार 21 से 30 दिन के अन्दर
•        स्लैब-2 के अनुसार जन्म के 30 दिन से 1 साल के अन्दर
•        स्लैब- 3 के अनुसार जन्म के 1 साल के बाद

ये तीसरा स्लैब सबसे महत्वपूर्ण है. क्योंकि सारा फर्जीवाड़ा का खेल इसी स्लैब की खामियों के लाभ उठा कर हो रहा है. जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 के उपधारा 13 (3) के अंतर्गत इस स्लैब के अंदर यानि एक साल से ज्यादा के बाद का पंजीकरण S.D.M के आदेश होने पर हीं किया जायेगा. साथ हीं S.D.M ये आदेश जन्म की सत्यापन के बाद हीं कर सकते हैं. मगर देश में कहीं भी इस कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं हो रहा बल्कि इसका जमकर उलंघन हो रहा है.

देश के कई राज्यों में बिना किसी सत्यापन के S.D.M तत्काल आदेश जारी कर रहे हैं. S.D.M के स्टाम्प लगते ही आवेदनकर्ता का पंजीकरण पंजीयक रजिस्टर में हो रहा है. इस पंजीकरण के होते हीं आवेदनकर्ता को इस देश की नागरिकता हासिल हो जाति है चाहे वह इस देश के रोहिंगीया हो, बांग्लादेशी हो या फिर किसी भी अन्य देश के नागरिक ही क्यों न हो. अगर ये सबकुछ ऐसा ही चलते रहा तो कुछ समय बाद पूरा देश घुसपैठियों से भर जाएगा. मगर फिर भी अभी तक राज्य सरकारें वोट बैंक के लालच में कुम्भकरण की नींद से सो रही है. 

 

जन्म एक राज्य में और पंजीकरण कई राज्यों में

हमने इससे पहले जो भी तथ्य आपके सामने रखे उसे हुबहू सतप्रतिशत सच साबित करने के लिए हमारे पास कुछ उदहारण है. अब आईए आपको समझाते है कि कैसे चुटकी भर में ये सारा खेल निपट जाता है. प्रयागराज के उप जिलाधिकारी को एक महिला आवेदनकर्ता ने जन्म पंजीकरण के लिए आवेदन दिया. आवेदनकर्ता के माँ ने यह बताते हुए आवेदन दिया कि जन्म के समय उसने अपने पुत्र का पंजीकरण कराना भूल गई थी. उसके पुत्र का जन्म 2 साल पहले इलाहाबाद में घर पर हुआ था. इस पर प्रयागराज के S.D.M ने बिना कोई सत्यापन किए जन्म के पंजीकरण करने का आदेश दे दिया.

उसी दिन आवेदनकर्ता ने S.D.M के आदेश को आधार बनाते हुए इलाहाबाद नगर निगम में जन्म पंजीकरण फॉर्म भरकर जमा कर दिया. उसी दिन इलाहाबाद नगर निगम ने उसका तत्तकाल पंजीकरण कर लिया साथ ही उसी दिन आवेदनकर्ता के पुत्र का जन्म पंजीकरण हो गया. साथ हीं उसी दिन जन्म प्रमाण पत्र भी उसे जरी कर दिया गया.

जब हमने इस पंजीकरण की पड़ताल की तो पता चला की उस लड़के का पजीकरण पहले हीं नार्थ दिल्ली नगर निगम में हो रखा था. इस बच्चे का जन्म घर पर नहीं बल्कि दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में हुआ था. इतना हीं नहीं उस बच्चे का जन्म तिथि इलाहाबाद नगर निगम में 27.02.2009 दर्ज कराया गया था, जबकि बच्चे का वास्तविक जन्म तिथि 02.04.2009 है जो कि नार्थ दिल्ली नगर निगम के रिकॉर्ड में दर्ज हैं. क्योंकि यही जन्म तिथि सर गंगाराम अस्पातल द्वारा नार्थ दिल्ली नगर निगम को उपलब्ध करायी गई थी.

2 बच्चों के जन्म तिथि के बिच सिर्फ 2 महीने से कम का अंतर

इस फर्जीवाड़े की हम एक और उदहारण आपको दिखाते हैं कि कैसे एक आदमी ने अपने तीन बच्चों का जन्म पजीकरण 10 जनवरी 2020 यानी की C.A.A के बाद कराया. इसमें सबसे हास्यपद और चौकाने वाली बात ये है कि 2 बच्चों का जन्म तिथि के बिच सिर्फ 2 महीने से कम का अंतर है. सिमरन खान, अल्फिया खान, गुलशन बानो ये तीनों लड़कियां मोहम्मद जलील और शार्दून निशा की है. सिमरन खान की जन्म तिथि 04.09.2010 है और इसका पंजीकरण 10 जनवरी 2020 को कराई गई. यानी जन्म के तकरीबन 10 साल बाद, वहीँ अल्फिया खान का जन्म तिथि 9 फरवरी 2004 है.

इसका पंजीकरण 16 साल बाद कराया गया. गुलशन बानो का भी पंजीकरण उसी दिन कराया गया. जिसकी जन्म तिथि थी 4 अप्रैल 2004 मतलब इसका भी पंजीकरण 16 साल बिलंब के बाद हुआ. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अल्फिया खान और गुलशन बानो की जन्म में 2 महीने से कम का अंतर है. तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या गुलशन बानो का जन्म उसके माँ के प्रसव के 2 महीने बाद हीं हो गया..?  

इस पूरे फर्जीवाड़े में एक और बात गौर करनेवाली ये है कि मोहम्मद जलील के तीनों बेटियों के पंजीकरण का पता तो एक हीं है. मगर सिमरन खान और अल्फिया खान का पंजीकरण करेली वार्ड में किया गया. जबकि गुलशन बानो का खुल्दाबाद वार्ड में पंजीकरण किया गया. ये दोनों वार्ड इलाहाबाद में हीं है. तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है की जब पता एक है तारीख एक है तो फिर अलग-अलग वार्ड में पंजीकरण क्यों किया गया..? इससे साबित होता है की किसी भी पंजीकरण का कोई भी सत्यापन नहीं हो रहा है...साथ हीं ये फर्जीवाड़ा धड़ल्ले से चल रहा है. 

जब हमने प्रयागराज सहित देश की कई राज्यों के रिकॉर्ड को खंगाला तो पता चला की तक़रीबन सभी जन्म पजीकरण जन्म के एक साल से ज्यादा बिलंब के साथ ही कराया जा रहा है. इनमे से ज्यादातर बच्चों के जन्म स्थान घर पर ही दिखाया जा रहा है. इससे साबित होता है की अस्पतालों में दर्ज कराई गई तिथि को या तो छुपाया जा रहा है या फिर विदेशी घुसपैठियों को देश में बड़े पैमाने पर साजिश के तहत बसाया जा रहा है. घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता हासिल करवाने वाला ये पूरा रैकेट देशभर में फैला हुआ है. इस पूरे फर्जीवाड़े से देश की सुरक्षा खतरे में है. साथ ही बड़े पैमाने पर देश में मूल आम नागरिकों के सरकारी लाभ को इस घुसपैठ के जरिये हड़पा जा रहा है.    

एक साल से ज्यादा के बाद कराए गए पंजीकरण में सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा

जन्म पंजीकरण को लेकर हमने अबतक कई तरह के खुलासे दिखाए. अब हम आपको एक रिपोर्ट दिखा रहे हैं जिसमे आपको पता चलेगा कि 1 साल से ज्यादा के बाद या फिर घर पर जन्म लेने वाले बच्चों का जन्म पंजीकरण में कैसे फर्जीवाड़ा हो रहा है. इनमे से अधिकतर पंजीकरण फर्जी तरीके से कराए जा रहे है. 

C.A.A आने के बाद अचानक से इसमें काफी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. हमने C.A.A के बाद मुसलमानों के पंजीकरण का विश्लेषण किया. इसमें हमने देखा की 79% मुसलमानों का पंजीकरण 1 साल के बिलंब के बाद कराए गए हैं. यानी की 85 में से 67 पंजीकरण 1 साल से ज्यादा के विलंब के बाद कराए गये थे. इसी प्रकार से केवल 85 में से 6 पंजीकरण यानी की 7% पंजीकरण जन्म के 21 दिन के अन्दर कराए गए. औसतन मुसलमानों की पंजीकरण में बिलंब 7.25 साल था. इसी प्रकार हमने देखा कि 3 चौथाई यानी की 75% मुसलमानों के जन्म स्थान घर पर दिखाया गया है.

CAA के समय मुसलमानों द्वारा कराए गए पंजीकरणों के आकड़े

CAA के बाद मुसलमानों के पंजीकरणों के प्रतिदिन कुल संख्या 85
एक साल से ज्यादा के बिलंब के बाद पंजीकरण 67 यानी 79 %
21 दिन के अन्दर पंजीकरण 6 यानी 7 %
औसतन पंजीकरण में बिलंब 7.25 वर्ष
घर पर जन्म 64 यानी 75 %

यह बात अपने आप में बेहद ही चौकाने वाली है. क्या आज के समय में संभव है की 75% बच्चे घर पर पैदा हो सकते हैं..? जब हमने इस दावे की भी पड़ताल की तो पता चला की केन्द्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने जो सर्वे कराया है. उसके अनुसार घर पर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या शहरी क्षेत्रों में केवल 11 प्रतिशत है जबकि ये संख्या ग्रामीण भारत में 25% है. तो अब ऐसे में सवाल खड़ा होता है की फिर मुसलमानों द्वारा दिखाए गए 75% बच्चों का जन्म घर पर कैसे हो सकता है..?


इससे साफ़ जाहिर होता है की मुसलमानों द्वारा प्रयागराज सहित देश के कई हिस्सों में फर्जी तरीके से जन्म पंजीकरण कराया जा रहा है. इस फर्जीवाड़े की पूरी रिपोर्ट हम आपको इस कार्यक्रम में पहले ही दिखा चुके हैं.

फर्जीवाड़े का सबसे बड़ा कारण सरकारी लूप होल

फर्जी जन्म पंजीकरण में जो धांधली चल रही है उसके पीछे एक बहुत बड़ा सरकारी व्यवस्था का लूपहोल है. जिसे आपके लिए जानना आवश्यक है. साथ ही कुछ ऐसे लापरवाह अधिकारी भी हैं जो अपने कर्तब्यों का निर्वहन ठीक ढंग से नहीं कर रहे हैं. आप पहले ही हमारे रिपोर्ट में देख चुके है की कैसे अधिनियम की उप धारा 13 (3) के अनुसार 1 साल से जयादा के बिलंब से कराए गए पंजीकरण का सत्यापन S.D.M द्वारा कराया जाना अनिवार्य है.

इसे लेकर राज्य सरकारों द्वारा कानूनी तरीके से प्रावधान भी किया गया है. अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाँ पर नियम ये है कि घर में जन्म होने की स्थिति में क्षेत्र के पार्षद निकाय के महापौर, विधायक या सांसद के हस्ताक्षर एवं मोहर के साथ दिया गया पत्र हो. साथ ही नोटरी द्वारा 10 रूपये के स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर किये हुए शपथ पत्र जिसमे बिलंब का कारण दिया गया हो. इसके अलावे संबंधित S.D.M की अनुमति और 10 रूपये बिलंब शुल्क के साथ आवेदन में बिजली बिल, आधार कार्ड, पासपोर्ट, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, सरकार द्वारा मान्यता दी गई कोई भी एक पते का प्रमाण पत्र देना अनिवार्य है.

मगर सच्चाई ये है की ना तो कोई संलग्न दस्तावेज जमा करा रहा है या ना ही S.D.M साहब कोई इसका सत्यापन कर रहे हैं...बस कुछ आवेदनकर्ता के मनमाफिक धड़ल्ले से बेरोकटोक ये पूरा साजिश चल रहा है...बस हो रहा है तो सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप या फिर कहें की हर कोई एक दूसरे पर टाल रहा है.

इस संबंध में क्या कहता है इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश

जन्म एवं पंजीकरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट भी एक निर्णय दे चुका है. इस संबंध में RTI के द्वारा हमे ये भी पता चला की यदि कोई जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण कपटपूर्ण अथवा अनुचित तरीके से किया गया है तो उसे रद्द कर देना चाहिए. दरअसल ये पूरा मामला एक लव जिहाद से जुड़ा हुआ था. जिसमे एक नाबालिग हिन्दू लड़की की कानपुर नगर निगम से फर्जी जन्म पंजीकरण कराया गया था. जिसमे लड़की की जन्म तिथि में हेराफेरी कर के धर्मान्तरण कराया गया. और मुस्लिम युवक से शादी करा दी गई.

ऐसे फर्जीवाड़े के तमाम सारे उदाहरण हैं जो इस फर्जी पंजीकरण के माध्यम से चल रहा है. कोर्ट खुद अपने ऑब्जरवेशन में पाया और कहा की जन्म पंजीकरण ‘जन्म एवं मृत्यु अधिनियम 1969 की धारा 13 (3) के तहत नहीं बना था. इसलिए इसे तत्काल प्रभाव से रद्द कर देना चाहिए. मगर फिर भी कानपुर नगर निगम ने ऐसा नहीं किया. कोर्ट ने आगे ये भी कहा था की अगर इस तरह से फर्जीबाड़ा चलता रहा तो ये एक बहुत बड़ी समस्या बन जाएगी.  

ऐसे में अब ये कहना गलत नहीं होगा की अब तक जिन नियम-कानूनों की अनदेखी करके जन्म पंजीकरण हुआ है वह सभी अवैध हैं और उन सभी पंजीकरण को तत्काल प्रभाव से रद्द कर देना चाहिए. ये धांधली सिर्फ उत्तर भारत के राज्यों तक ही सिमित नहीं है बल्कि नार्थ ईस्ट के राज्यों में भी ये फर्जीवाड़ा बड़े पैमाने पर चल रहा है. 21 अगस्त को द ट्रिब्यूट में छपे पूर्व IAS अधिकारी गोपालन बालागोपाल और पूर्व डिप्टी रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इण्डिया के. नारायणन उन्नी  ने एक लेख लिखा था. इन दोनों नौकरशाहों ने अपने लेख में लिखा है..

  • •   अरुणांचल प्रदेश में 88% और नागालैंड में 95% तक पंजीकरण एक साल से ज्यादा के बिलंब से कराए जा रहे हैं.
    •    बिलंब से कराए गए ये सभी पंजीकरण अब तक का सबसे बड़ा आइडेंटिटी फ्रॉड है.
    •    अगर हमारे देश की लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसी ध्यान नहीं देगी तो ये बेहद खतरनाक साबित होगा.

•    बांग्लादेशी, रोहिंग्या घुसपैठियों समेत सभी अवैध विदेशी नागरिक भारत की नागरिकता हासिल कर लेंगे.

  • के. नारायणन, पूर्व डिप्टी रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया, गोपालन बालागोपाल, पूर्व IAS अधिकारी

मगर अफ़सोस इस बात का है की हमारे देश की सरकारी व्यवस्था इसपर हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है और ये पूरा फर्जी रैकेट बेरोकटोक जारी है.

सपा नेता आजम खान और उनके पुत्र अब्दुल्ला का फर्जीवाडा

फर्जी पंजीकरण का खेल सिर्फ आम लोगों तक ही नहीं है बल्कि बड़े-बड़े नेता, सांसद और विधायक भी इस फर्जीवाड़े के खेल में जेल की चक्की पिस चुके हैं. हम बात कर रहे हैं सपा के मुस्लिम नेता आजम खान और उनके पुत्र मोहम्मद अब्द्दुल्ला आजम खान की, दरअसल ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से जुड़ा हुआ है. आजम खान के पुत्र मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान 2017 के विधान चुनाव में रामपुर से चुनाव लड़ना चाहता था. मगर उस वक्त मोहम्मद अब्दुल्ला का उम्र 25 वर्ष पूरा नहीं हुआ था, जबकि विधानसभा के चुनाव लड़ने के लिए 25 वर्ष का उम्र होना एक अनिवार्य शर्त है. जिसे पूरा करने के लिए आजम खान के बेटे ने फर्जी तरीके से लखनऊ नगर निगम से जन्म पंजीकरण करा लिया. बेटे के इस फर्जीवाड़े में उसके पिता आजम खान ने मदद की जो की उस वक्त के कैबिनेट मंत्री थे. जिनके पास शहरी विकास प्राधिकरण एवं स्थानीय निकाय मंत्रालय की जिमेद्दारी थी. इसी मंत्रालय के अंतर्गत नगर निगम आता है. ऐसे में पिता के इस पद का फायदा बेटे ने उठाया.

अब्दुल्ला आजम ने चुनाव लड़ा और जित भी गया. मगर अब्दुल्ला के प्रतिद्वंदी ने उस चुनाव को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी इसपर माननीय उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में पाया की अब्दुला का पंजीकरण फर्जी तरीके से कराया गया है जिसके चलते कोर्ट ने अब्दुला के विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी. 

अब्दुल्ला आजम के खिलाफ चुनौती दी गई पूरे इलेक्शन पेटिसन को पढ़ने से पता चलता है की क्या कुछ फर्जीवाड़ा हुआ था, जिसे हम अब बिस्तार से बता रहे हैं. दरअसल अब्दुल्ला खान के 3 जन्म प्रमाण पत्र और 2 जन्म तिथियां थीं. पहला जन्म का प्रमाण पत्र रामपुर CBSE के 10वी कक्षा के पासिंग सर्टिफिकेट था जिसमे उसकी जन्म तिथि 1 जनवरी 1993 दिखाई गई थी, जबकि एक दूसरा जन्म प्रमाण पत्र रामपुर नगर पालिका परिषद् द्वारा जारी किया गया था. उस जन्म प्रमाण पत्र में भी उनकी जन्म तिथि 1 जनवरी 1993 दिखाई गई थी और जन्म स्थान रामपुर दिखाया गया था. ये बहुत हीं आश्चर्य जनक बात है कि अब्दुल्ला खान ने 30 जनवरी 2015 को इस जन्म पंजीकरण को रद्द करवा दिया जबकि आमतौर पर पंजीकरण को रद्द कराना बेहद ही असंभव है और किसी दुरलभ कारणों से अगर कराया जाता है तो उसके लिए वैध कारणों का होना आवश्यक है.

इस संबंध में जब रामपुर नगर पालिका परिषद् से अब्दुल्ला के फर्जी पंजीकरण की प्रति और रद्द करने के कागजातों का जब ब्यौरा माँगा गया...तो रामपुर नगर पालिका परिषद् ने जवाब दिया की मई 2015 में कार्यालय के अंदर आग लगने की वजह से वे सभी कागजात जल गये जिसे अब उपलब्ध करवाना असंभव है.

अब्दुल्ला आजम की तीसरे जन्म प्रमाण पत्र उसकी माँ तजीन फातिमा ने लखनऊ नगर निगम से 21 जनवरी 2015 को बनवाई थी. इस जन्म प्रमाण पत्र में अब्दुल्ला खान की जन्म तिथि 30 सितंबर 1990 और जन्म का स्थान क्वीन मैरी हॉस्पिटल लखनऊ दिखाया गया है. इस प्रमाण पत्र के अनुसार मोहम्मद अब्दुल्ला आजम के यू.पी विधान सभा चुनाव में खड़ा होने के लिए नियुनतम उम्र सीमा 25 वर्ष पूरी होगयी. इस जन्म प्रमाण पत्र के फर्जीवाड़े में बेहद ही हास्यपद और पूरे सिस्टम को ठेंगा दिखाने वाला तथ्य सामने आया. सबसे पहले तो ये पंजीकरण 21 जनवरी 2015 को हुआ था...पर तजीन फातिमा ने अपने बेटे का जन्म पंजीकरण करने के लिए जो आवेदन लखनऊ नगर निगम में दिया था वो अप्रैल 2015 को दिया था...यानी कि पंजीकरण पहले ही हो चुका था मगर पंजीकरण का आवेदन बाद में दिया गया. 

इतना ही नहीं कोर्ट में जो जन्म पंजीकरण रजिस्टर पेश की गई उसमे बहुत से टेम्परिंग भी की गई थी...जिसमे अब्दुल्ला की इंट्री, रजिस्टर के पन्ने में सबसे निचे बचे हुए थोड़ी सी जगह में घुसाई गई थी...और सबसे मजे की बात ये है की मोहम्मद अब्दुल्ला खान का धर्म हिन्दू दिखाया गया था. कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा है की लखनऊ नगर निगम के रजिस्टर में किया गया अब्दुल्ला खान का जन्म पंजीकरण हेराफेरी करके किया गया है, इसलिए वह अमान्य है. परन्तु अब्दुल्ला खान ने लखनऊ नगर निगम के इसी जन्म प्रमाण पत्र को हासिल करके आधार कार्ड, वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया था. साथ हीं उसने पासपोर्ट बनाने के लिए भी आवेदन किया था.

रामपुर BJP के कार्यकर्ता आकाश सक्सेना ने 2019 के शुरुआत में आजम खान, तजीन फातिमा और अब्दुल्ला खान के खिलाफ धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा करने का FIR दर्ज कराया था. इसके बाद से आजम खान का परिवार इधर-उधर भाग रहा था. मगर जब कोर्ट ने आजम खान, उनकी पत्नी तजीन फातिमा और बेटा अब्दुल्ला खान को भगोड़ा घोषित कर दिया तो आखिर में इन सभी आरोपियों को कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा था.

सरकार से हमारी मांगें 

1. देरी से कराई जाने वाली सभी पंजीकरणों का पूरे देशभर में तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाय
2. एक वर्ष की अवधी के बाद कराए गए पंजीकरण प्रकिया में हो रही धांधली की उच्च स्तरीय जांच कराई जाय
3. देशभर में चल रहे फर्जी पंजीकरण रैकेट की धरपकड़ करके कठोर कार्रवाई की जाए
4. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार फर्जी तरीके से कराए गए पंजीकरण को तत्काल रद्द किया जाए
5. जन्म एवं मृत्यु पंजिकरण अधिनियम 1969 के धारा 13 (3) को तुरंत बदला जाए 
6. देश में NRC लागू होने पर बिलंब से कराए गए पंजीकरणों को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाए
7. जन्म पंजीकरण एवं जन्म प्रमाण पत्र के लिए भारत सरकार राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय कानून बनाए
8. जन्म पंजीकरण की पूरी प्रकिया ऑनलाइन किया जाए और प्रमाण पत्र हासिल करने वाले संलग्न दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाए
9. जन्म पंजीकरण में फर्जीवाड़े करने वाले लोगों के लिए सख्त सजा का प्रवधान किया जाए
10. फर्जी प्रमाण पत्र हासिल करने वाले को सभी तरह के सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाए

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