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पाकिस्तान परस्त अभिनेता दिलीप कुमार (यूसुफ खान) की मौत पर विशेष

हिंदी सिनेमा का इस्लामीकरण करने के गुनहगार थे दिलीप कुमार, भारत नहीं पाकिस्तान के लिए धडकता था दिलीप कुमार(युसूफ खान) का दिल?

Acharya Vishnu Gupt
  • Jul 7 2021 6:47PM

सच बहुत ही कड़वा होता है, अप्रिय होता है, सबको पचता नहीं हैसब को स्वीकार नहीं होता. सच बोलने वाले को बागी या नकारात्मक करार देकर अलग-थलग कर दिया जाता है, खासकर किसी की मृत्यु पर सच बोलना तो और भी गुनाह है. चाहे मृत्यु का प्राप्त शख्सियत घोर अनैतिक क्यों ना हो, दुर्दांत अपराधी क्यों ना हो, राष्ट्र द्रोही क्यों ना होहिंसक और बर्बर क्यों ना हो, दुश्मन देश का मोहरा मुखौटा क्यों ना हो  पैरवी कार क्यों ना होअपने धर्म का जिहादी क्यों ना हो, मृत्यु के उपरांत उसकी बुराई नहीं, उसकी प्रशंसा की भारतीय परंपरा एक ऐसी बुराई है जिसके अधिकतर लोग सहचर है.

इस कसौटी पर हम फिल्मी अभिनेता दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान को ही देखते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि दिलीप कुमार भारतीय हिंदी सिनेमा के एक बेजोड़ और बेहतरीन हीरो थे. अभी-अभी उनकी मृत्यु हुई है. उनकी मृत्यु पर उनके अभिनय की गाथा गाई जा रही है , उनकी प्रशंसा में लोग कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, उन्हें अति महान, अति पूज्यनीय ,अतुलनीय बताने की कोशिश जारी है. खान की प्रशंसा में लगे लोग उस भीड़ के सामान हैं जो बर्बर होती है, हिंसक होती है, अमानवीय  होती है और सच से बहुत दूर होती है. युसूफ खान की कई ऐसी परतें जमीन में गड़ी है, कई ऐसे पहलू है जिनके विश्लेषण से यह प्रतीत होता है कि दिलीप कुमार सही में ना तो निष्पक्ष थे और ना ही उनके लिए भारत की धर्मनिरपेक्षता  महत्व रखती थी और ना ही मानवता के प्रति उनकी कोई उल्लेखनीय जिम्मेदारी थी.

भ्रष्टाचार के प्रति उनकी सोच भी भ्रष्टाचारी थी. राष्ट्रभक्ति के प्रति उनकी सोच बेईमानी से जुड़ती थी, दुश्मन देश के साथ जुड़ती थी, जिहाद से जुड़ती थी. वह जिहादी इस्लाम के प्रति समर्पित थे, इसके एक नहीं बल्कि अनेकानेक प्रमाण है. पहले हम दिलीप कुमार की भ्रष्टाचारी चरित्र के प्रति नजर डालते हैं, पड़ताल करते हैं. अगर कोई व्यक्ति निष्पक्ष होगा, भ्रष्टाचार के प्रति सचेत और संज्ञान सील होगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रियता रखता होगा तो फिर वह कभी भी ना तो भ्रष्टाचारी का समर्थन कर सकता है और ना ही भ्रष्टाचारी व्यक्ति का सम्मान कर सकता है. दिलीप कुमार  ने अति अनैतिक और देश को भ्रष्टाचार में डुबोने वाले, भ्रष्टाचार की शुरुआत करने वाले व्यक्ति का गुणगान किया थाउसका साथ दिया था, उसके लिए प्रचार किया थाउसे लोकसभा चुनाव में जिताने का काम किया था और महान नैतिकतावादीभ्रष्टाचार विरोधी शख्सियत को चुनाव में हरवाने का काम किया था.

जिस भ्रष्टाचारी को लोकसभा चुनाव में जिताने का काम किया था उस भ्रष्टाचारी का नाम कृष्ण मेनन था. कृष्ण मैनन पहला भ्रष्टाचार का घोटाला जीप घोटाला  किया था. जीप घोटाला का अभियुक्त थाउसके खिलाफ पूरे देश में वातावरण बना था, राजनीति और सत्ता से दूर रखने का देश भर में अभियान चलाया था. उसे 1962 के लोकसभा चुनाव में जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी. जवाहरलाल नेहरू बहुत चिंतित थे. उन्होंने कृष्ण मेनन को चुनाव में जीतने के लिए  पैतारेबाजी दिखाई थी. दिलीप कुमार को लोभ लालच देकर कृष्ण मेनन के पक्ष में चुनाव प्रचार कराया गया था.  दिलीप कुमार के मुंह से ईमानदारी की बात कराई जाती हैं. दिलीप कुमार का सिनेमाई छवि काम कर जाती है, लोगों पर जादू कर जाती है और कृष्ण मेनन चुनाव जीत जाते हैं. नेहरू और कृष्ण मेनन के भ्रष्टाचार के प्रति आंदोलन चलाने वाले  महान समाजवादी नेता कृपलानी चुनाव हार जाते हैं.

राष्ट्रभक्ति की कसौटी देखिए. राष्ट्र का हर व्यक्ति अपने राष्ट्र के प्रति भक्ति उत्पन्न करने, राष्ट्रभक्ति के लिए समर्पित रहने, राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर देशद्रोहियों का विध्वंस करनेदुश्मन देश के प्रति नफरत करनेदुश्मन देश के हर चीज को अस्वीकार करने जो अपने देश को नुकसान करने वाले कारक होते हैं, के प्रति सजग होते है. पर क्या दिलीप कुमार ने राष्ट्रभक्ति दिखाई थी, दुश्मन देश के प्रति राष्ट्रभक्ति के कर्तव्य को निभाया था, क्या राष्ट्रभक्ति के कर्तव्य सिर्फ सिनेमातक ही सीमित था? इसका भी विश्लेषण जरूरी है. दुश्मन देश पाकिस्तान भारत को पराजित करने, भारत का विध्वंस करनेभारत को इस्लामिक राष्ट्र के रूप में तब्दील करने, भारत को खंड खंड में विभाजित करने की सबसे बड़ी जिहादी प्रक्रिया चलाता हैयह भी अस्पष्ट उल्लेखनीय और दुनिया भर में कुचर्चित है. इसके लिए पाकिस्तान को भारत में बैठे हुए भारत विरोधी लोगों की जरूरत थी.

खासकर हिंदी सिनेमा में पाकिस्तान परस्त लोगों को स्थापित करने और पाकिस्तान एवं इस्लाम के प्रति भारतीय सिनेमा को जिम्मेवार बनाने की अप्रत्यक्ष शख्सियतों की जरूरत थी. चूंकि दिलीप कुमार विख्यात हो चुके थे. दिलीप कुमार का अभिनय भारत के नागरिकों के सिर पर चढ़कर बोलता थाइसलिए पाकिस्तान ने दिलीप कुमार को मोहरा बनाया और दिलीप कुमार को अपना सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार निशान ए पाकिस्तान दिया. निशाने ए पाकिस्तान की अवधारणा क्या हैनिशाने ए पाकिस्तान का जिहाद क्या है ? इसके प्रति पाकिस्तान की सोच क्या है ?आखिर पाकिस्तान ने इस पुरस्कार को देने के लिए क्या क्या अहर्ताए तय की थी. यह भी जानने की जरूरत है. पाकिस्तान का यह पुरस्कार  सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार में गिना  जाता है. यह पुरस्कार वैसे पाकिस्तानी नागरिकों को दिया जाता है जो पाकिस्तान के लिए सर्वश्रेष्ठ काम करता है. पाकिस्तान के इस्लामी संस्कृति के प्रति समर्पित है, पाकिस्तान के इस्लामिक जिहाद के प्रति समर्पित है और पाकिस्तान के दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए कार्य करता है, पाकिस्तान के दुश्मनों से नफरत करता है.

अगर दिलीप कुमार पाकिस्तान के दुश्मनों से नफरत नहीं करता, पाकिस्तान के इस्लामिक संस्कृति के प्रति समर्पित नहीं होतापाकिस्तान की इस्लामिक जिहाद की नीति के प्रति जिम्मेवारी नहीं दिखाता तो क्या यह पुरस्कार पाकिस्तान उसे देताक्या कभी आपने सुना है कि पाकिस्तान ने अपने विरोधियों को भी निशाने ए पाकिस्तान से नवाजा है ? पाकिस्तान से  तो लालकृष्ण आडवाणी  भी आए थे. बहुत सारे अन्य लोग भी पाकिस्तान से भारत आए थे, जो विभाजन की विध्वंस कारी इस्लामिक प्रक्रिया से आहत होकर भारत आए थे. क्या पाकिस्तान ने लालकृष्ण आडवाणी या अन्य शख्सियतों को निशाने  ए पाकिस्तान का पुरस्कार दिया? जब आप इस प्रश्न का उत्तर  तलाशने और पता करने की कोशिश करेंगे तब पता चलेगा कि आखिर दिलीप कुमार को यह पुरस्कार क्यों मिला?

दिलीप कुमार ही नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा में ऐसे सैकड़ों शख्सियतें रही हैं, जिनका काम पाकिस्तान और इस्लामिक संस्कृति के प्रति हमदर्दी जताना, राष्ट्रभक्ति की कब्र खोदना और भारत विरोधी भावनाओं को स्थापित करना तथा खासकर हिंदुत्व को बदनाम करना, लक्षित करना रहा है. भारतीय सिनेमा जगत में जानबूझकर प्रत्यारोपित तौर पर ऐसी ऐसी कहानियां गढ़ी जाती हैलिखवाई जाती हैंजिसमें पाकिस्तान और इस्लाम के प्रति हमदर्दी हो और हिंदुत्व के प्रति खतरनाक भी हों. ऐरे गैरे पाकिस्तानी कलाकारों की भारतीय सिनेमा जगत में उपस्थिति का मुख्य कारण भी यही है. आज हिंदी सिनेमा जगत में विवादास्पद ग्रस्त इस्लाम के प्रति जिहाद दिखाने वाले आमिर खान शाहरुख खान, सैफ अली खान आदि जो कार्य कर रहे हैं, वही कार दिलीप कुमार भी अपने दौर में करते थे. शाहरुख खान, सैफ अली खान, आमिर खान को भारत में डर लगता है, भारत में असहिष्णुता दिखाई देती है, भारत की कानून व्यवस्था चौपट दिखाई देती है, भारत की संस्कृति ने विध्वंस कारी दिखाई देती है पर इन्हें इस्लाम में कोई बुराई नहीं दिखाई देती.

इस्लाम की बुराइयां इनके लिए फिल्मी कहानियां नहीं बनती, फिल्मी पात्र के कारक नहीं बनती. आपने कभी यह देखा है कि आमिर खान, सैफ अली खान , शाहरुख खान आदि ने कभी भी इस्लाम आधारित बुराइयों पर कोई फिल्म बनाई है किसी फिल्म में काम किया है या फिर उस पर कोई चोट की है. आमिर खान हिंदुत्व की बुराइयों को लेकर बहुत बड़ी सीरियल लेकर के आए थे पर उस सीरियल में इस्लाम की बुराइयों का कोई अता पता नहीं था,. तीन तलाक हलाला और जिहाद के प्रति कथित मुसलमानों का प्रेम आमिर खान की सीरियल का  विषय क्यों नहीं बनाखुद विचार कर सकते हैं. दिलीप कुमार के संबंध में जानकारियां यह भी है कि वह खुद भी फिल्मी कहानियां लिखते थे, फिल्मी डायलॉग लिखते थे पर उन्होंने कभी इस्लाम आधारित बुराइयों पर कोई फिल्मी पटकथा क्यों नहीं लिखी?

दिलीप कुमार को भारतीय सेना की वीरता भी कचोटती थी, भारतीय सेना का पराक्रम भी उन्हें हिंसक लगता था , इसका उदाहरण कारगिल युद्ध है. कारगिल युद्ध की साजिश पाकिस्तान ने किस प्रकार से रखी थी , पाकिस्तान ने कारगिल को कब्जा करने के लिए किस प्रकार से हिंसक आक्रमण किया था यह भी उल्लेखनीय है. पाकिस्तान ने कारगिल में अपनी कारस्तानी दिखाई थी, प्रत्यारोपित किया था था कि हमने नहीं बल्कि कश्मीरी आतंकवादियों की घुसपैठ की टीम ने कारगिल पर कब्जा किया है, घुसपैठिए हैंजिनकी मांग और जिहाद कश्मीर की आजादी है. जबकि दुनिया यह जानती थी कि पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए घुसपैठियों का रूप धारण कर कारगिल पर कब्जा किया है. कारगिल में बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को वापस करने के लिए भारत की सेना ने किस प्रकार से वीरता दिखाई थी, किस प्रकार से पराक्रम दिखाई थी, किस प्रकार से अपना सर्वश्रेष्ठ बलिदान दी थी ,यह भी जगजाहिर है. कारगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिएपाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारतीय सैनिकों ने अहम भूमिका निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी. 500 से अधिक भारतीय सैनिक बलिदान हुए थे.

कारगिल युद्ध के दौरान दिलीप कुमार से यह अपील की गई थी कि आप पाकिस्तान से मिले निशाने ए पाकिस्तान पुरस्कार को वापस कर देक्योंकि पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर हिंसक गुनाह किया है. पर दिलीप कुमार ने पाकिस्तान से मिले निशाने  ए पाकिस्तान पुरस्कार को वापस करने से इंकार कर दिया था. दुनिया में अगर कोई और भी देश होता तो इस गुनाह के लिए दिलीप कुमार को अपनी नागरिकता छीन लेताउसे या तो जेल में डाल दिया जाता या फिर दुश्मन देश जिससे उसे प्यार है उसी देश में उसे भेज देता. एक अन्य घटना का भी यहां उल्लेख करना बहुत ही जरूरी है. नेपाल से जब भारतीय विमान का अपहरण किया गया था. पाकिस्तानी आतंकवादी भारतीय विमान का अपहरण कर उसे अफगानिस्तान ले गए थे तब दिलीप कुमार और अन्य मुस्लिम शख्सियतों से पाकिस्तानी आतंकवादियों की निंदा करने की अपील की गई थी पर दिलीप कुमार ने पाकिस्तानी आतंकवादियों की निंदा करने से इंकार कर दिया था.

दिलीप कुमार के लिए विमान में बंधक बनाए गए भारतीय नागरिकों की जान और सुरक्षा की कोई कीमत नहीं थी. इस अमानवीय घटना के प्रति भी दिलीप कुमार की सोच घोर अमानवीय और जिहादी इस्लामिक सोच से मिलती जुलती थी. बर्बर जिहादी इस्लाम की घटनाएं भारत में और पूरी दुनिया में किस प्रकार से हिंसा फैलाती हैं, मानवता का खून करती हैंगैर इस्लामिक समूहों में डर और भय का वातावरण कायम करती हैंयह भी एक प्रश्न है. जिस प्रश्न की कसौटी पर दिलीप कुमार कभी भी सकारात्मक नहीं दिखे , कभी भी उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद की आलोचना नहीं की, कभी भी इस पर कोई सबक कारी बयान तक नहीं दिया. दिलीप कुमार अगर निष्पक्ष होतेधर्मनिरपेक्ष होतेहिंसा के प्रति नफरत करतेमुस्लिम आतंकवाद के प्रति नफरत करते, तो फिर ऐसी हिंसा और ऐसी हिंसा में लगे इस्लामिक तत्वों पर भी सबककारी बयान देते, फिल्म बनाने लायक कहानियां लिखते डायलॉग लिखते पर ऐसा काम उन्होंने नहीं किया. इसलिए उनका अभिनय एकांकी सोच और फिर इस्लाम के प्रति जवाबदेही समर्पणकारी था.

दिलीप कुमार की मृत्यु पर अगर आप उनकी प्रशंसा में चरण वंदना कर रहे हैं तो फिर उनकी बुराइयां भी आपको जानने की जरूरत है. उनकी  बुराइयों की पड़ताल भी करनी जरूरी है. उनका पाकिस्तान प्रेम और इस्लाम के प्रति समर्पण कारी भाव रखने की जानकारी भी आपको रखनी चाहिए. हिंदुत्व और देश की कब्र खोदने वाली कहानियां और अभिनय की आधारशिला रखने वाली दिलीप कुमार की सोच तथा हिंदी सिनेमा जगत को इस्लामिक संस्कृति में ढालने के उनके प्रयास की आलोचना भी होनी चाहिए.

लेखक- आचार्य विष्णुगुप्त 

 

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