कुम्भ मेले का प्राचीनतम और सबसे बड़ा जूना अखाड़ा।
प्रस्तावना: भारतीय आध्यात्मिकता और जूना अखाड़ा का महत्व
जूना अखाड़ा, भारतीय सनातन धर्म की शैव परंपरा का सबसे प्राचीन और बड़ा अखाड़ा है।
* यह अखाड़ा भारतीय धर्म, समाज, और संस्कृति की आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराई का प्रतीक है।
* भगवान शिव की निराकार उपासना, कठोर तपस्या, और धर्म की रक्षा का दायित्व इसे विशिष्ट बनाते हैं।
* कुम्भ मेले में इसकी भूमिका केवल धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और संस्कृति के मूलभूत आदर्शों को संरक्षित करता है।
1. जूना अखाड़ा का ऐतिहासिक विकास
1.1 स्थापना और उद्देश्य
* 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा जूना अखाड़े की स्थापना की गई।
* उद्देश्य: सनातन धर्म की रक्षा, साधुओं का संगठन, और समाज में धर्म की पुनर्स्थापना।
* उस समय विदेशी आक्रमणों और धर्म परिवर्तन के ख़तरे के मद्देनज़र, अखाड़े ने धर्म और संस्कृति की रक्षा का बीड़ा उठाया।
* जूना अखाड़ा का पहला केंद्र द्वारका पीठ (गुजरात) में स्थापित हुआ।
* “जूना” का अर्थ “पुराना” है, जो इस अखाड़े की सनातन परंपराओं और मूलभूत शिक्षाओं का प्रतीक है।
1.2 ऐतिहासिक योगदान
* मध्यकालीन भारत में मुगल आक्रमणों के समय नागा साधुओं ने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए हथियार उठाए।
* अखाड़े के साधुओं ने काशी, मथुरा, और प्रयागराज जैसे धार्मिक स्थलों की रक्षा की।
* यह अखाड़ा धर्म के साथ-साथ समाज के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और भौतिक संरक्षण का केंद्र बना।
2. ग्रंथों में जूना अखाड़े का उल्लेख
* वेद:
* ऋग्वेद में शिव को “रुद्र” और “महादेव” के रूप में वर्णित किया गया है। जूना अखाड़ा इन्हीं शैव परंपराओं का अनुयायी है।
* पुराण:
* शिवपुराण और स्कंदपुराण में अखाड़ों की परंपरा और उनकी भूमिका का उल्लेख मिलता है।
* महाभारत:
* शस्त्र और शास्त्र में पारंगत ऋषियों का वर्णन, जो अखाड़ों की पारंपरिक साधना का हिस्सा है।
* योग ग्रंथ:
* पतंजलि योगसूत्र और शिव संहिता में योग और तपस्या का उल्लेख, जो जूना अखाड़े की साधना पद्धति का आधार है।
3. दर्शन और साधना पद्धति
3.1 शिव की निराकार उपासना
* जूना अखाड़ा अद्वैत वेदांत पर आधारित है और शिव को “निराकार ब्रह्म” के रूप में मान्यता देता है।
* यहाँ साधु सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर शिव की साधना में लीन रहते हैं।
3.2 कठोर तपस्या और योग
* धूनी साधना:
* अग्नि के पास बैठकर ध्यान और मंत्रजप।
* योग और तंत्र:
* नागा साधु प्राणायाम, ध्यान, और तंत्र साधनाओं में निपुण होते हैं।
* वैराग्य और त्याग:
* सांसारिक मोह-माया से पूर्ण मुक्ति।
* शस्त्र और शास्त्र:
* साधु धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने के साथ-साथ शस्त्र विद्या में भी निपुण होते हैं।
4. कुम्भ मेला में भूमिका
4.1 शाही स्नान में नेतृत्व
* जूना अखाड़ा शाही स्नान का नेतृत्व करता है और सबसे पहले संगम में स्नान करता है।
* नागा साधुओं की भव्य शोभायात्रा और उनके अनुशासन कुम्भ मेले का मुख्य आकर्षण हैं।
4.2 धार्मिक और सामाजिक गतिविधियाँ
* योग शिविर, ध्यान केंद्र, और प्रवचनों का आयोजन।
* समाज के लिए नैतिक और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रसार।
* “हरित कुम्भ” अभियान के तहत पर्यावरण संरक्षण और गंगा सफाई।
5. जूना अखाड़े के विख्यात संत और उनके योगदान
5.1 प्राचीन संत
1. कपिल मुनि:
* अद्वैत दर्शन और योग के प्रवर्तक।
2. दत्तात्रेय:
* योग, ध्यान, और वैराग्य के आदर्श।
3. महावतार बाबाजी:
* ध्यान योग और अमरत्व के लिए प्रसिद्ध।
5.2 आधुनिक संत
1. महामंडलेश्वर स्वामी हरीदास जी:
* तपस्या और समाज सेवा के लिए प्रसिद्ध।
2. स्वामी अवधूत भगवतीनंद जी:
* योग और समाज सुधार के लिए जाने जाते हैं।
6. वर्तमान नेतृत्व: आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज
* स्वामी अवधेशानंद गिरी जी वर्तमान में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं।
* वे आध्यात्मिक प्रवचन, समाज सेवा, और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका नेतृत्व सर्वमान्य है एवं सभी साधु संतों को साथ ही राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक उनसे मार्गदर्शन लेते हैं। आपसे मेरा बहुत-बहुत पुर्वी संबंध हैं एवं मैं कई मामलों में आपका मार्गदर्शन लेता हूँ।
* उनके नेतृत्व में जूना अखाड़ा:
* “हरित कुम्भ” अभियान का हिस्सा है।
* युवाओं को योग और ध्यान के माध्यम से धर्म और संस्कृति से जोड़ रहा है।
7. नागा साधुओं का जीवन और प्रशिक्षण
7.1 कठोर जीवनशैली
* नागा साधु सांसारिक सुखों को त्यागकर पूर्ण वैराग्य का पालन करते हैं।
* वे नग्न रहते हैं और अपने शरीर पर भभूत (राख) का लेप करते हैं।
7.2 प्रशिक्षण
* नागा साधुओं को धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, योग, ध्यान, और शस्त्र विद्या में प्रशिक्षित किया जाता है।
* प्रशिक्षण में कठोर अनुशासन का पालन आवश्यक है।
8. आधुनिक समय में जूना अखाड़ा की भूमिका
8.1 पर्यावरण संरक्षण
* “हरित कुम्भ” अभियान के तहत गंगा और अन्य नदियों की सफाई।
* प्लास्टिक मुक्त कुम्भ मेले का समर्थन।
8.2 युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
* योग और ध्यान के माध्यम से युवाओं को धर्म और संस्कृति से जोड़ना।
8.3 वैश्विक मंच पर पहचान
* योग और भारतीय अध्यात्म के प्रचार-प्रसार के माध्यम से जूना अखाड़ा की अंतरराष्ट्रीय पहचान।
9. जूना अखाड़ा की विशिष्टताएँ
* यह अखाड़ा शैव परंपरा और अद्वैत वेदांत का प्रतिनिधित्व करता है।
* नागा साधुओं की कठोर तपस्या और साधना इसे अन्य अखाड़ों से अलग बनाती है।
* कुम्भ मेले में इसकी भूमिका इसे भारतीय धर्म और समाज के जीवंत प्रतीक के रूप में स्थापित करती है।
“जूना अखाड़ा भारतीय धर्म, संस्कृति, और समाज के उन मूल्यों को संरक्षित करता है, जो कुम्भ मेलेकी आत्मा को जीवंत बनाए रखते हैं।”
डॉ सुरेश चव्हाणके ( चेयरमैन एवं मुख्य संपादक सुदर्शन न्यूज़ चैनल)