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29 मई - 14 हजार फिट की ऊंचाई पर छिपे दुश्मनों को बिल से निकाल कर मारा और अमर हो गए बटालिक के वीर मेजर सर्वनन. शव मिला था 45 दिन बाद

हिमालय में आज भी गूँज रही है शौर्य की वो महान गाथा.

Rahul Pandey
  • May 29 2021 10:37AM
जिस लाइन को राष्ट्र निर्माण के अध्यक्ष श्री सुरेश चव्हाणके जी लगभग अपने हर मंच से दोहराते हैं वो कुछ यूं है - "हमारी सेना ने ७० सालों में पाकिस्तान और चीन को एक इंच भी नहीं घुसने दिया भारत के अंदर" .. जी हाँ . एक बार फिर से दोहराते हैं उसी लाइन को क्योकि राष्ट्र के इंच इंच की रक्षा करने वालों में से एक थे आज ही अमरता को प्राप्त करने वाले बटालिक के वीर मेजर सर्वनन जी .. 

इनकी गौरवगाथा को भले ही भारत के कुछ तथाकथित पत्थरबाज समर्थक भूल चुके हों लेकिन निश्चित रूप से इनके कार्यों को आज तक भारत का सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान याद करता होगा .. और करे भी क्यों ना , उसके भेजे चूहों को बिलों ने निकाल कर मारने वाले उन तमाम योद्धओं में एक ये भी थे .

अमर योद्धा मेजर सर्वनन जी का जन्म 10 अगस्त 1972 तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था . बचपन से ही सेना में जाने के सपने देखने वाले इस जाबाज़ ने स्नातक के समय ही NCC ज्वाइन कर ली और आख़िरकार वो समय आ ही गया था जब इन्हे सेना में भर्ती होने का अवसर मिल गया और इन्हे पोस्टिंग बिहार रेजिमेंट में मिली थी . 

उस समय ये ख़ुशी से फूले नहीं समाय थे लेकिन उसके साथ इन्हे तलाश थी उस दिन की जब भारत के दुश्मनो से ये आमने सामने की जंग लड़ सकें . आख़िरकार वो दिन आ ही गया था और जब असम में पोस्ट इस वीर को कश्मीर आने का आदेश मिला तो ये ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था क्योकि दुश्मन की गार्डन दबोचने का इनका सपना पूरा होने जा रहा था .

सरकार की तरफ से रणभेरी बजने के बाद सम्भवतः कारगिल युद्ध में बलिवेदी पर चढ़ने वाले पहले सैन्य अधिकारी मेजर सर्वनन ही थे . इस से पहले ये असम में पोस्ट थे लेकिन युद्ध के उद्घोष के साथ इन्हे फ़ौरन कश्मीर बुलाया गया था . इनको ड्यूटी दी गयी थी 14229 फुट की ऊंचाई पर मौजूद बटालिक पहाड़ों पर छिपे दुश्मन को मार गिराने की और वापस इस चोटी को भारत में मिलाने की . 

इन्होने ख़ुशी ख़ुशी इस लक्ष्य को स्वीकार किया और निकल पड़े भारत माता के पावन हिस्से से नापाक आतंकियों और पाकिस्तानी सैनिको को खदेड़ने के लिए . मेजर सर्वनन जी भारतीय फ़ौज के बिहार रेजिमेंट के जांबाज़ थे . जांबाज़ अपने कुछ साथियो को ले कर निकल दिया बटालिक की चोटी पर अपने अभियान पर ..

इस आतंक सफाये के लिए छेड़े गए अभियान का नाम रखा गया था "आपरेशन चंगेज खान" . सीधे और खड़ी चढ़ाई पर चढ़ने के लिए उनके पास अपनी बंदूकों के अलावा और भारी गोला बारूद था . उनके हाथों में राकेट लांचर थे . दुश्मन सीधे ऊपर था जो इनकी एक एक गतिविधि पर नजर रख रहा था .. 

वहां एक गिरा एक पत्थर भी गोली के बराबर असर कर रहा था . इसके बाद भी तमाम आयुध ले कर मेजर सर्वनन अपने साथियो के साथ निकल दिए अभियान पर . दुश्मन के पास खड़ी चढ़ाई पर रेंगते हुए वहां देखा गया की इन्होने बंकर तक बना लिए थे जिसमे छिप कर वो पूरी तरह से सुरक्षित थे . 

वो 28 1999 को निकले थे उस लगभग असंभव लक्ष्य पर . दुश्मन के बंकर तक सुरक्षित पहुंच कर मेजर ने उनके बंकरो की तरफ अपने राकेट लांचर का मुँह किया और उस से निकले बारूद ने बंकर को ध्वस्त करने के साथ दो आतंकियों को उसी बंकर में दफन कर दिया . 

ये युद्ध पॉइंट 4268 पर चल रहा था . दो नापको के मारे जानके के बाद उधर से तमाम ऑटोमैटिक बंदूके और मोर्टार आदि मेजर सर्वनन के ऊपर चला दिए गए . इस हमले में मेजर को गोलियां लग गयी तो उनके सैनिको ने उन्हें वापस चलने का आवेदन किया लेकिन उन्होंने इंच भर भी पीछे हटने से मना कर दिया और गोलियां बरसाते रहे . 

उनके निशाने पर था एक और बंकर जिसमे से छिप कर दो पाकिस्तानी गोलियां बरसा रहे थे . घायल मेजर ने एक और वार किया जिसके बाद दो और दुश्मन वहीँ दफन हो गए . इस समय मेजर सर्वनन मात्र एक हाथ से गोलियां चला रहे थे क्योकि उनका दूसरा हाथ बुरी तरह से घायल हो गया था . 

मात्र एक हाथ से गोलियां बरसाते हुए उन्होंने बंकर में छिपे दो पाकिस्तानियो को मारा जिसके चलते ही उनके बटालिक का हीरो पदवी दी गयी .. इस युद्ध में उनके वार से थर्रा गए थे वो तमाम नापाक जो केवल मज़हबी भावना ले कर देश की सीमाओं पर कब्ज़ा जमाने आये थे . 

घायल मेजर अंत समय तक लड़ते रहे और आख़िरकार वहीँ वीरगति को प्राप्त हो गए ..उनका पार्थिव शरीर 45 दिन बाद मिल पाया था क्योकि उस पोस्ट पर भारतीय जांबाज़ों और पाकिस्तानी नापाकों की जंग लम्बे समय तक चली थी . वैसे उनका अंतिम संस्कार तब हुआ जब राष्ट्र की भूमि उन नापको से मुक्त हो गयी थी . 

यकीनन उनकी अंतिम इच्छा भी यही रही होगी . वो ३ जुलाई का दिन था जब उनका शव उनके घर लाया गया था .. ये वो युद्ध था जिसका पहला वार मेजर सर्वनन ने किया था और आज ही अर्थात 29 मई को प्राप्त की थी अमरता ... वीरगतिउपरांत इन्हे इनके अदम्य साहस और अद्भुद युद्ध कौशल के चलते वीर च्रक से सम्मानित किया गया था.

इस सर्वोच्च सम्मान को इनकी माता जी ने राष्ट्रपति महोदय से बहुत भावुक पलों में स्वीकार किया था .. आज वीरता के उस शक्तिपुंज मेजर सर्वनन को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन और वंदन करते हुए बटालिक के इस हीरो की गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है . 

मेजर सर्वनन अमर रहें .. जय हिन्द की सेना .

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