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क्या पंजाब सियासत में बदलेगा 'चेहरा' ? कांग्रेस विधायक दल की बैठक आज

लगभग 6 महीने बाद चुनावी रणभूमि में उतर रहे पंजाब में कांग्रेस की सियासत में अभी से ही आपसी तनातनी का माहौल बनते दिख रहा है। इसी लिए कांग्रेस ने आज राज्य में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई है।

कार्तिकेय
  • Sep 18 2021 1:08PM

कांग्रेस की पंजाब इकाई में जारी तनातनी के बीच कांग्रेस ने आज राज्य के कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई है। एआईसीसी के महासचिव एवं पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश रावत ने शुक्रवार रात को इस बारे में घोषणा की। बताया जा रहा है कि बैठक में सभी विधायकों की बात सुनी जाएगी। कैप्टन से निराश 40 विधायकों के पत्र के बाद कांग्रेस आलाकमान ने एक बड़ा फैसला लेते हुए आज शाम पांच बजे चंडीगढ़ के पंजाब कांग्रेस भवन में विधायक दल की बैठक बुलाई है।

गौरतलब है कि तीन दिन पहले करीब 40 विधायकों ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ अविश्वास जता दिया था। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा था कि और भी कई विधायक उनके खिलाफ हैं, लेकिन जब तक वह सीएम रहेंगे,कोई भी खुलकर उनके खिलाफ नहीं बोलेगा। ऐसे में विधायक दल की मीटिंग बुलानी जरूरी है जिसमें दो केंद्रीय पर्यवेक्षक भी हों। 

इस चिट्ठी के आधार पर हरीश रावत ने कांग्रेस की प्रधान सोनिया गांधी से मुलाकात की और शुक्रवार देर रात को उन्होंने पंजाब कांग्रेस कमेटी से आज शाम को पांच बजे विधायक दल की मीटिंग बुलाने को कहा। इसमें केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर अजय माकन और हरीश राय चौधरी को भेजा जा रहा है।  सुबह से यह तय हो गया था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अपने निकटवर्ती विधायकों की बैठक फार्म हाउस पर बुलाने जा रहे हैं ।

  कांग्रेस के सामने चुनौतीपूर्ण स्थिति

अभी तक हाईकमान का संदेश न अमरिंदर सिंह समझने की कोशिश कर रहे हैं और न ही सिद्धू मुख्यमंत्री पर हमले बंद कर रहे हैं। ऐसे में चुनावी समय में दोनों नेताओं की खींचतान ने कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा हो गई है। यदि इस झगड़े को जल्द नहीं सुलझाया गया तो पार्टी को इसका नुकसान हो सकता है। दिक्कत यह है कि सिद्धू में संयम नहीं है, वहीं दूसरी तरफ कैप्टन राज घराने से आते हैं, उन्हें ज्यादा दूसरों को सुनने की, उस पर गौर करने की आदत नहीं है।’ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बनाकर पार्टी ने एक बड़ा जोखिम लिया है। यदि कैप्टन को भरोसे में लिए बिना जिस तरह सिद्धू को नेतृत्व हस्तांतरित किया गया है और भी दूसरे तरीके से किया जा सकता था। सिद्दू पार्टी के लिए सेल्फ गोल साबित हो सकते हैं। लेकिन अब जब उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई है तो दोनों नेताओं को मिल कर चलना चाहिए था।

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