अब जबकि अयोध्या में प्रभु श्री राम की मंदिर के निर्माण की अंतिम प्रक्रिया चल रही है तब उस समय वह तमाम लोग और तमाम नाम एक-एक करके याद आ रहे हैं जिन्होंने इस मामले में अदालत के बाहर सही और उचित समाधान देने का प्रयास किया था। विशेषकर मुसलमानों के वह नाम जो यह चाह रहे थे सही सलामत रहे भारत की धर्मनिरपेक्षता उसमें प्रमुख हैं कि के मोहम्मद जो बहुत पहले से मुसलमानों से यह निवेदन करते आ रहे थे कि अयोध्या हिंदुओं के परम आराध्य भगवान श्री राम की जन्मभूमि है और मुसलमानों को कानूनी अड़चनों ने उसे फंसाने के बजाए सीधे-सीधे हिंदुओं को शिक्षा और प्रेम से उनके श्रीराम का जन्म स्थान सौंप देना चाहिए । लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड जैसी संस्थाओं के चलते उनकी बात नहीं मानी गई और लुटेरे वा हत्यारे बाबर के लिए अदालत ने एक लंबा संघर्ष किया गया जिसका परिणाम आखिरकार आज सबके आगे है.
अयोध्या श्रीराम मंदिर मामले की नियमित सुनवाई के बीच आर्कियॉलजिस्ट केके मोहम्मद ने कहा था कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि बाबरी मस्जिद से पहले वहां एक मंदिर था इसलिए मुस्लिम पक्ष को चाहिए कि वो खुशी खुशी अयोध्या जन्मभूमि को हिन्दू पक्ष को सौंप दें. पर उनकी बात को अनदेखा कर दिया गया था..बता दें कि केके मोहम्मद नॉर्थ एएसआई के आंचलिक निदेशक रह चुके हैं और 1976-77 में मंदिर-मस्जिद मामले में हुई जांच के समय वह टीम का हिस्सा थे. के के मोहम्मद ने कहा था कि मुस्लिमों को अपनी इच्छा से अयोध्या की विवादित भूमि सौंप देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि विवादित बाबरी मस्जिद के नीचे मिले सबूतों से पता चलता है कि वहां एक बड़ा मंदिर था. उन्होंने बताया, ‘1976-77 में बीबी लाल की अगुआई में पहली बार उत्खनन किया गया. मुझे याद है कि मैं अकेला ही मुसलमान उस टीम में था.
उन्होंने बताया था कि यह खुदाई तब हुई थी जब इतिहासकार सैयद नुरुल हसन सांस्कृतिक मामलों के केंद्रीय मंत्री थे. केके मोहम्मद ने बताया था कि पूरा इलाका पुलिस के कब्जे में था और आम लोगों को जाने की इजाजत नहीं थी. हमने देखा कि मस्जिद के 12 स्तंभ ऐसे थे जो कि मंदिर के अवशेष थे. ये पिलर मंदिर के ही थे. इस मामले में तर्क देते हुए मोहम्मद ने कहा कि 12वीं और 13वीं शताब्दी के अधिकतर मंदिरों के स्तंभों में आधार पूर्ण कलश के जैसा होता था जो कि हिंदू धर्म में समृद्धि का प्रतीक है. इसे अष्ट मंगल चिह्न के रूप में जाना जाता है जो कि आठ पवित्र चिह्नों में से एक है.