जबलपुर । 19 फ़रवरी शुक्रवार को मां नर्मदा की जयंती को पूरे शहर भर में धूमधाम से मनाया गया।जगह जगह भंडारों का आयोजन किया गया शहरवासीयो ने नर्मदा तट पर पहोच मा नर्मदा के पूजन अर्चन कर आशीर्वाद लिया व अपनि मनोकामनाएं पूर्व करने प्राथना की। संपूर्ण शहर में भक्ति और आस्था का अदभुद नज़ारा नजर आया मगर इसका एक अलग पहलू शनिवार को देखने को मिला जहां जगह जगह कूड़ा कचर फैला दिखाई दिया। जीवन दायिनी मां नर्मदा के तटो पर तो पन्नी,प्लास्टिक,प्लास्टिक कोडेड दोनो,और निर्माल्य सामग्री जैसे विशेले प्रधात से माँ नर्मदा के आँचल को प्रदूषित किया।यह दृश्य देख समाज और श्रद्धालुओं पर कई सवाल खड़े होते है। क्या आस्था के लिए मां के आंचल को प्रदूषित करना उचित है? क्या नर्मदा तटो पर स्वच्छता व साफ सफाई की जवाबदारी हमारी स्वयं की नहीं है? कहीं हम पुण्य करते करते पाप के भागीदार नहीं बन रहे है?
खतरे में मा नर्मदा का अस्तित्व
लगातार बढ़ता प्रदूषण जहां नर्मदा के शुद्ध जल को जहरीला बना रहा है. किनारों पर अवैध उत्खनन उसका सीना छलनी कर रहा है. बांधों के लालच ने न केवल लाखों एकड़ के जंगल तबाह कर दिए, बल्कि डूब के कारण विस्थापन और जैवविविधता के विनाश का बड़ा दर्द नर्मदा को दिया है।विकास के नाम पर किए जा रहे खिलवाड़ के कारण उसकी सांसें उखडऩे लगी हैं. लगातार बढ़ता प्रदूषण (pollution) जहां नर्मदा के शुद्ध जल को जहरीला बना रहा है. वहीं किनारों पर अवैध उत्खनन उसका सीना छलनी किये दे रहा हैं. बांधों के लालच ने न केवल लाखों एकड़ के जंगल तबाह कर दिए, बल्कि डूब के कारण विस्थापन और जैवविविधता के विनाश का बड़ा दर्द नर्मदा को दिया है. इतिहास, पर्यावरणीय मुद्दों के जानकार, विश्लेषक और सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि नर्मदा पथ बनाने, जयंती के दिन चुनरी चढ़ाने या परिक्रमा, दीपदान लोगों की आस्था के विषय हो सकते हैं, लेकिन नर्मदा का संरक्षण इन सबसे नहीं होगा. संरक्षण उस पर विनाश का तांडव कर रहे कारकों को खत्म करने से होगा.