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16 जुलाई- 2011 में आज ही भारत सरकार जनगणना आयुक्त ने किया था सावधान - "शहरों में गांवों के मुकाबले ढाई गुना तेजी से बढ़ रही आबादी"

फिर भी इसको किया गया नजरअंदाज क्योंकि मामला था वोटबैंक का..

Rahul Pandey
  • Jul 16 2020 7:05AM

यह खतरे की घंटी थी जो 2011 में ही बजा दी गई थी। यदि ऐसे अलार्म 2011 ही नहीं भारत या शादी के बाद से ही बजते रहे हैं।  कभी असम में बजे तो कभी कश्मीर में बजे। परंतु न जाने वह कौन भाईचारे अर्थात तथाकथित सेकुलरिज्म का सिद्धांत था जो कुछ करना तो दूर बोलने पर भी रोक लगाया करता था। इसी के चलते बेतहाशा आबादी एक पक्ष की बड़ी और धीरे-धीरे कश्मीर केरल पश्चिम बंगाल असम आज ऐसे हालात में पहुंच गए जहां वहां के मूल निवासियों को जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ा।   वह संघर्ष घटने की वजह आज भी ज्यों का त्यों जारी है और   उसमें ज्यादा नुकसान उनका हो रहा है जो सदियों ही नहीं बल्कि   यह भी कहना गलत ना हो के अनादि काल से उस जमीन के मालिक हुआ करते थे।

 कश्मीर के हिंदुओं ने जिस प्रकार से पाकिस्तानी घुसपैठ के साथ आंतरिक गद्दारी को झेला और अपना घर बार त्याग कर शरणार्थी कैंपों में रहने को विवश हुए उससे ज्यादा संघर्ष असम और पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने किया और आज भी  वह बंगलादेशी घुसपैठ से जूझ रहे हैं। जिन्हें उन्होंने शरण दी और मानवीयता के आधार पर रहने दिया उन्होंने एक तरफा आवादी बढ़ाते हुए उन हिंदुओं का ही रहना दुश्वार कर दिया। हिंदू  समाज सदा से ही सहिष्णुरहा है और उसे भारत की न्यायपालिका के साथ कार्यपालिका और प्रशासनिक ढांचे पर पूरा विश्वास था और है भी। उसे विश्वास था कि पुलिस सेना खुफिया एजेंसियां मिलकर उसका बाल भी बांका नहीं होने देंगे। लेकिन आखिरकार उनमें से तमाम लोगों की यह सोच गलतफहमी साबित हुई और या तो ने घर बार छोड़कर भागना पड़ा अन्यथा हो मजहबी चरमपंथ के शिकार हो गए।

 फिलहाल अगर मुख्य मुद्दे पर आ जाए तो मनमोहन सिंह जी की सरकार अर्थात कांग्रेस सरकार वर्ष 2011 में थी और उसी समय आज ही के दिन अर्थात 16 जुलाई को भारत सरकार के जनगणना आयुक्त कार्यालय से एक सख्त चेतावनी जारी हुई थी।   इस चेतावनी में साफ-साफ बताया गया था कि यद्यपि गांव में भी   आबादी बढ़ रही है परंतु शहरी क्षेत्रों में गांव के मुकाबले ढाई गुना तेजी से या जनसंख्या बढ़ रही है। देश में पिछले एक दशक में गांवों की तुलना में शहरी आबादी ढाई गुना से भी अधिक तेज़ी से बढ़ी है। भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में देश की जनसंख्या में 17.64 प्रतिशत का इजाफ़ा हुआ है। यह वृद्धि गांवों में 12.18 और शहरी क्षेत्रों में 31.80 प्रतिशत की रही है।

 उस समय फिर से तथाकथित सेकुलरिज्म के सिद्धांत आड़े आ गए और किसी भी कड़ी कार्यवाही के बजाए कहीं न कहीं इस रिपोर्ट को अनदेखा किया गया जिसका दुष्परिणाम आज दिल्ली मुंबई कोलकाता जैसे महानगरों तो दूर  लखनऊ भोपाल जयपुर पटना जैसे अन्य शहरों को भी भुगतना पड़ रहा है।लखनऊ भोपाल फिर भी राजधानियां है । 2011 में जारी इस रिपोर्ट को अनदेखा करने का दुष्परिणाम उन शहरों में भी देखने को मिला जो मूल रूप से वह मुख्य रूप से हिंदू समाज के धर्म स्थल है। हरिद्वार के आसपास क्षेत्रों में तरफ आबादी तेजी से बढ़ी तो जनपद अयोध्या में भी आबादी का अनुपात बढ़ा।

तीर्थराज प्रयाग राज में भी एक तरफा आबादी बढ़ी तो वही पवित्र काशी में भी आबादी में लगातार बढ़ोतरी होती रही और हालात तो यह बने थे कि महादेव की नगरी कहीं जाने वाली काशी से सीएए और एनआरसी विरोध वृहत स्तर पर करने का प्लान बनाया गया था जिसे वहां की पुलिस विशेष कर  इंस्पेक्टर शशिकांत राय नेजावा जी के साथ निष्फल कर दिया था।  अयोध्या मथुरा काशी तो दूर की बात है अगर संभल मुरादाबाद  मालेगाव औरंगाबाद हैदराबाद  जैसे अनगिनत शहरों को देखा जाए तो वहां के हालात वहां की हिंदू बयान करेंगे।2011 में जारी इस रिपोर्ट को जारी हुए लगभग एक दशक बीत चुका है। निश्चित तौर पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज 16 जुलाई 2020 को इस पर चर्चा करते हुए विलंब हो चुका है।

परंतु   जब जागो तभी सवेरा के नियम और सिद्धांत पर अगर चला जाए तो सुरेश चव्हाणके जी के विगत 3 वर्षों से लगातार किए जा रहे प्रयासों को देखना समझना और मंथन करना होगा। जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने के लिए उनके अथक प्रयासोंको मिलकर सामूहिक रूप से बल देना होगा। जनशक्ति , धनशक्ति  का संभल देना होगा क्योंकि लड़ाई बहुत बड़े नेटवर्क व हर प्रकार से सक्षम शत्रु के विरुद्ध है।  यदि बचाना चाहते हैं आप अपने भविष्य को और आने वाली पीढ़ी को देना चाहते हैं शांत व सुरक्षित भारत तो बनी है राष्ट्र निर्माण संस्था और सुरेश जी के सहयोगी और आवाज उठाइए कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून की जो गारंटी होगी आने वाले समय में आप के अस्तित्व की।

 

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